Bihar Election 2025: बिहार में EC कर रहा 'वोटबंदी', 2 करोड़ मतदाता हो सकते हैं बाहर, चुनाव आयोग से मिलने के बाद क्या बोले विपक्षी नेता जानिए...

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले बवाल जारी है। विपक्ष ने इलेक्शन कमीशन पर वोटबंदी करने का आरोप लगाया है। विपक्षी नेताओं के कहना है कि ईसी 2 करोड़ मतदाताओं के साथ खेला कर सकता है।

बिहार में वोटबंदी - फोटो : social media

Bihar Election 2025: बिहार में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग (ECI) द्वारा कराई जा रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया पर विपक्ष ने गंभीर आपत्ति जताई है। बुधवार को कांग्रेस, राजद, भाकपा, माकपा, भाकपा (माले)-लिबरेशन, सपा और एनसीपी (शरद पवार गुट) समेत INDIA गठबंधन के 11 दलों ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की। उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार को एक संयुक्त ज्ञापन सौंपकर इस प्रक्रिया को वंचित तबकों के मताधिकार पर हमला करार दिया।

वोटर लिस्ट से नाम हटने का खतरा

विपक्षी दलों का आरोप है कि चुनाव आयोग की मौजूदा SIR प्रक्रिया के कारण बिहार के लाखों हाशिए पर खड़े लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हट सकता है। आयोग द्वारा मतदाताओं से स्वयं और उनके माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र मांगे जा रहे हैं। जिससे यह प्रक्रिया बेहद जटिल और अनुचित हो गई है। विपक्ष का कहना है कि इससे राज्य के करीब 8.1 करोड़ मतदाताओं पर भारी बोझ पड़ेगा।

यह तो सीधी वोटबंदी है 

भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने चुनाव आयोग पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि, 2003 की वोटर लिस्ट में नाम नहीं है तो नागरिकता साबित करनी होगी। यह तो सीधी ‘वोटबंदी’ है जो बिना किसी वैध कारण के लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित कर सकती है। चुनाव आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि 2003 की वोटर लिस्ट में दर्ज व्यक्ति स्वतः मतदाता माने जाएंगे, जबकि बाकी को दोबारा नामांकन के लिए दस्तावेज देने होंगे। विपक्ष ने इस आधार को कानूनन अस्पष्ट और भेदभावपूर्ण बताया है।

दो करोड़ मतदाता हो सकते हैं बाहर

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने आशंका जताई कि इस प्रक्रिया में कम से कम दो करोड़ मतदाता बाहर हो सकते हैं। जिनमें विशेष रूप से दलित, आदिवासी, प्रवासी मजदूर और गरीब तबके शामिल होंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी व्यक्ति का नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया तो चुनाव घोषित होने के बाद अदालत में चुनौती देना लगभग असंभव होगा क्योंकि उस दौरान अदालतें चुनाव संबंधी मामलों की सुनवाई से परहेज करती हैं।

क्या पिछले 22 साल के चुनाव गलत थे?

सिंघवी ने चुनाव आयोग से तीखा सवाल पूछा कि 2003 से अब तक चार से पांच विधानसभा चुनाव हुए। अगर तब कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं थी तो अब अचानक इस विशेष संशोधन की जरूरत क्यों पड़ रही है? क्या पिछले 22 सालों में हुए सभी चुनाव गलत थे? विपक्षी नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त से मांग की कि इस विशेष प्रक्रिया को स्थगित किया जाए या पुनर्विचार किया जाए ताकि किसी भी वास्तविक मतदाता का नाम वोटर लिस्ट से न हटे और किसी को अपने नागरिक अधिकारों से वंचित न होना पड़े।