Shortage of Rs 10 TO 50 Notes: 10, 20 और 50 के नोट की किल्लत, आम आदमी की ज़िंदगी हुई मुश्किल, जेब में पैसे, फिर भी परेशानी

Shortage of Rs 10 TO 50 Notes: 10, 20 और 50 रुपये के नोटों की भारी किल्लत पर अखिल भारतीय रिजर्व बैंक कर्मचारी संघ ने खुलकर चिंता जताई है....

10, 20 और 50 के नोट गायब- फोटो : social Media

Shortage of Rs 10 TO 50 Notes: देश के कई हिस्सों में इन दिनों आम आदमी एक अजीब सी परेशानी से जूझ रहा है। जेब में पैसे होने के बावजूद रोज़मर्रा के छोटे-छोटे काम करना मुश्किल होता जा रहा है। वजह है 10, 20 और 50 रुपये के नोटों की भारी किल्लत। इस मसले को लेकर अखिल भारतीय रिजर्व बैंक कर्मचारी संघ (एआईआरबीईए) ने खुलकर चिंता जताई है और इसे आम जनता की ज़िंदगी से जुड़ा गंभीर मामला बताया है।

कर्मचारी संघ का कहना है कि छोटे नोट खासकर कस्बों, गांवों और अर्ध-शहरी इलाकों में लगभग नदारद हो चुके हैं। दूसरी तरफ़ 100, 200 और 500 रुपये के नोट आसानी से मिल रहे हैं। एआईआरबीईए ने इस बारे में भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी. रबी शंकर को पत्र लिखकर आगाह किया है कि एटीएम से ज़्यादातर बड़े नोट ही निकल रहे हैं। नतीजा यह है कि बस का किराया देना हो, सब्ज़ी खरीदनी हो या रोज़मर्रा का छोटा-मोटा खर्च हर जगह लोगों को दिक्क़त का सामना करना पड़ रहा है।

आम आदमी की परेशानी यहीं खत्म नहीं होती। बैंक की शाखाओं में भी छोटे नोट आसानी से नहीं मिल पा रहे हैं। लोग काउंटर पर घंटों खड़े रहते हैं, लेकिन जवाब यही मिलता है कि “छोटे नोट उपलब्ध नहीं हैं।” जबकि हक़ीक़त यह है कि डिजिटल भुगतान के तमाम दावों के बावजूद देश की एक बड़ी आबादी आज भी नकद लेनदेन पर ही निर्भर है। खासकर छोटे दुकानदार, रिक्शा चालक, मज़दूर और ग्रामीण इलाकों के लोग डिजिटल साधनों का हर वक्त इस्तेमाल नहीं कर पाते। सिक्कों को चलन में लाने की कोशिशें भी की गईं, लेकिन एआईआरबीईए के मुताबिक़ सिक्कों की भी पर्याप्त उपलब्धता नहीं है। ऐसे में यह विकल्प भी आम लोगों के लिए कारगर साबित नहीं हो सका।

कर्मचारी संघ ने रिजर्व बैंक से मांग की है कि वह तुरंत हस्तक्षेप करे और वाणिज्यिक बैंकों व आरबीआई काउंटरों के ज़रिये छोटे नोटों का सही वितरण सुनिश्चित करे। साथ ही, सिक्कों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए पहले की तरह ‘कॉइन मेला’ फिर से शुरू करने का सुझाव दिया गया है। ये मेले पंचायतों, सहकारी समितियों, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और स्वयं सहायता समूहों की मदद से लगाए जा सकते हैं।

संघ का साफ़ कहना है कि छोटे नोटों की यह किल्लत अब सिर्फ़ बैंकिंग समस्या नहीं रही, बल्कि आम आदमी और छोटे कारोबारियों के लिए रोज़मर्रा की बड़ी मुसीबत बन चुकी है। अगर वक़्त रहते ठोस क़दम नहीं उठाए गए, तो नकद लेनदेन की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।