Tej pratap on Deepak Prakash: बिना चुनाव जीते मंत्री बने दीपक प्रकाश पर तेजप्रताप ने कसा तंज, कहा - ये “है ना मोदी–नीतीश का जादू?
Tej pratap on Deepak Prakash: बिहार की सियासत में इन दिनों चर्चा का सबसे ताज़ा मुद्दा है बिना चुनाव लड़े मंत्री बने पंचायती राज मंत्री दीपक प्रकाश। ...
Tej pratap on Deepak Prakash: बिहार की सियासत में इन दिनों चर्चा का सबसे ताज़ा मुद्दा है बिना चुनाव लड़े मंत्री बने पंचायती राज मंत्री दीपक प्रकाश। पदभार संभालते ही वे सुर्खियों के केंद्र में आ गए हैं। विपक्ष उन पर तीखा तंज कस रहा है, वहीं सत्ता पक्ष उनकी नियुक्ति को पूरी तरह संवैधानिक, नियमसम्मत बता रहा है।
इसी सिलसिले में जनशक्ति जनता दल के सुप्रीमो तेज प्रताप यादव ने अपने एक्स हैंडल से एक सियासी तीर छोड़ा। तेज प्रताप ने लिखा—“है ना मोदी–नीतीश का जादू?”इसके साथ ही उन्होंने एक और तंज भरी पंक्ति जोड़ी कि “सासाराम में जमानत जब्त कराने वाले निर्दलीय प्रत्याशी नारायण पासवान के काउंटिंग एजेंट बने दीपक प्रकाश बिना चुनाव लड़े नीतीश सरकार में मंत्री बन गए… है ना मोदी–नीतीश का जादू?”
तेज प्रताप का यह पोस्ट राजनीतिक हलकों में सियासी गुफ्तगू और नुक्ताचीनी का नया केंद्र बन गया है।वहीं सत्ता पक्ष के नेता साफ़ कह रहे हैं कि मंत्री बनाना मुख्यमंत्री का अधिकार है और यह नियुक्ति पूरी तरह संवैधानिक-ए-तकरीर के तहत हुई है। लेकिन विपक्ष इसे सियासी मैनेजमेंट और विरासतवाद से जोड़कर पेश कर रहा है।
बता दें कि कि दीपक प्रकाश राज्यसभा सांसद उपेन्द्र कुशवाहा के पुत्र हैं।इसी वजह से उन पर वंशवाद का इल्जाम भी विपक्ष की तरफ़ से लगातार उछाला जा रहा है। सोशल मीडिया पर उन्हें लेकर मीम्स, तंज और आलोचनाओं की बाढ़ आ गई है।विवाद की आग तब और भड़क उठी जब यह सामने आया कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सासाराम सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी नारायण पासवान के काउंटिंग एजेंट दीपक प्रकाश ही थे।नतीजे में नारायण पासवान को कुल 327 वोट मिले और उनकी जमानत भी जब्त हो गई थी।यही तथ्य विपक्ष के लिए राजनीतिक हथियार बन गया है वह पूछ रहा है कि “जिस नेता की काउंटिंग एजेंसी का परिणाम इतना कमजोर रहा, वह बिना जनता के जनादेश के मंत्री कैसे बन गया?”
हालांकि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार मुख्यमंत्री किसी भी व्यक्ति को मंत्री बना सकते हैं, बशर्ते वह छह महीने के भीतर विधानमंडल का सदस्य बन जाए। लेकिन सियासत का मैदान कानून से नहीं, धारणा से चलता है, और इसी धारणा को भुनाने में विपक्ष कोई मौका नहीं छोड़ रहा।बहरहाल बिहार की राजनीतिक हवा में अब एक ही मुद्दा तैर रहा है यह नियुक्ति प्रशासनिक योग्यता का परिणाम है या सियासी करिश्मा? उत्तर जो भी हो, इतना तय है कि दीपक प्रकाश की एंट्री ने बिहार की सियासत में बहस को नए उफान पर पहुंचा दिया है।