Tejpratap:बंगाल-यूपी में तेज प्रताप की सियासी चाल के मायने, दो राहों पर लालू की विरासत, बिहार में खामोशी और... पढ़िए इनसाइड स्टोरी

बिहार में राजद की हार के सन्नाटे के बीच लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अलग ही सियासी धुन में नजर आ रहे हैं। इसके मायने भी है.....

तो इस कारण बंगाल-यूपी चुनाव पर है तेज प्रताप की नजर- फोटो : Hiresh Kumar

Tejpratap:बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद राष्ट्रीय जनता दल  पर खामोशी का साया है। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव न तो दूसरे राज्यों के चुनावों पर खुलकर बोल रहे हैं और न ही पार्टी की कोई स्पष्ट रणनीति सामने आ रही है। मगर इसी सन्नाटे के बीच लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव अलग ही सियासी धुन में नजर आ रहे हैं। जनशक्ति जनता दल के संरक्षक और पूर्व मंत्री तेज प्रताप का जोश हाई है और उनकी नजर अब बिहार से बाहर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की सियासत पर टिकी है।

सवाल लाज़िमी है जिस तेज प्रताप यादव की पार्टी बिहार में खाता तक नहीं खोल सकी, जो खुद महुआ से चुनाव हारकर तीसरे नंबर पर रहे, वही तेज प्रताप अब दूसरे राज्यों में सियासी जमीन तलाशने क्यों निकले हैं? जवाब सियासत की उस विरासत में छुपा है, जिसे तेज प्रताप अपने तरीके से आगे बढ़ाना चाहते हैं। 

राजनीतिक विश्लेषक कौशलेंद्र प्रियदर्शी  का कहना है कि तेज प्रताप को पता है कि  बिहार के भीतर लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत अब पूरी तरह तेजस्वी यादव के हवाले हो चुकी है। लेकिन बिहार के बाहर, खासकर यूपी और बंगाल जैसे बड़े राज्यों में, लालू की राजनीति का कोई वारिस नहीं है और यही खाली स्पेस तेज प्रताप को लुभा रहा है। वे मानते हैं कि यादव पहचान और लालू के करिश्मे का कुछ असर बिहार के बाहर भी हो सकता है।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक कौशलेंद्र प्रियदर्शी कहते हैं कि तेज प्रताप की सबसे बड़ी पहचान यही है कि वे लालू यादव के बेटे हैं। आरजेडी बिहार से बाहर चुनाव नहीं लड़ती रही, इसलिए तेज प्रताप उस खाली जगह को भरने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि उनका यह भी मानना है कि बिहार में जहां तेज प्रताप प्रभावी नहीं हो पाए, वहां यूपी और बंगाल में बड़ी सफलता की उम्मीद कम है। हां, इतना जरूर हो सकता है कि यूपी में कुछ यादव वोटों में सेंध लगे, जिससे अखिलेश यादव को नुकसान हो।

कौशलेंद्र प्रियदर्शी कहते हैं कि तेज प्रताप और तेजस्वी दो अलग राहों पर चल पड़े हैं। तेजस्वी जहां इंडिया ब्लॉक की राजनीति में व्यस्त हैं, वहीं तेज प्रताप एनडीए खेमे में अपना भविष्य तलाशते दिख रहे हैं। बिहार में हार के बावजूद तेज प्रताप ने एनडीए सरकार को नैतिक समर्थन देकर अपने इरादे साफ कर दिए हैं।

दूसरी ओर, आरजेडी खुद संशय में है। पश्चिम बंगाल और यूपी चुनावों में पार्टी क्या करेगी, इस पर कोई ठोस फैसला नहीं है। आरजेडी प्रवक्ता आरजू खान का कहना है कि प्राथमिकता बिहार है, बाकी राज्यों पर फैसला शीर्ष नेतृत्व करेगा। इधर तेज प्रताप ने व्यंग्य के तीर छोड़ते हुए कहा है कि कुछ लोग चुनाव के बाद मैदान छोड़ चुके हैं, लेकिन मैं डटा हूं। साफ है कि यह सिर्फ राज्यों की लड़ाई नहीं, बल्कि लालू की विरासत पर दो भाइयों की अलग-अलग सियासी जंग है, जिसका असर आने वाले वर्षों में राष्ट्रीय राजनीति पर भी दिख सकता है।