गाय को बचाने में हुए रेल हादसे में बिहार के 800 लोगों की मौत! खून से लाल हो गया था बागमती नदी का पानी
Train Accident: बिहार के इतिहास में रेल सफर का सबसे दर्दनाक हादसा 6 जून 1981 को हुआ था. उस हादसे में नदी का पानी खून से लाल गया था और गैर अधिकारिक तौर पर करीब 800 लोगों की जान गई थी.
Train Accident: 6 जून 1981 की तारीख भारत के सबसे बड़े रेल हादसे का वह दर्दनाक दिन है जब बिहार में उफनती बागमती नदी में ट्रेन गिर गई थी. चलती ट्रेन की 7 बोगियां अचानक से बागमती नदी में समा गई और 800 से ज्यादा लोग उस दिन मारे गए थे. बिहार में हुआ रेल हादसा इतना भयानक था कि इतिहास के पन्नों में उसे भारत के लिए काला दिन कहा जाता है. भारतीय रेल के 170 साल से ज्यादा पुराने इतिहास में ये रेल हादसे काले धब्बे की तरह हैं, जिसे चाहें भी तो भुलाया नहीं जा सकता है. बिहार में 6 जून, साल 1981 के हुए हादसे को पूरी दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल हादसा कहा जाता है.
खगड़िया से सहरसा के बीच मौत का सफर
1981 में जून के महीने में उत्तर बिहार में भारी बारिश हुई थी. बागमती नदी उफनाई हुई थी. वहीं अपने रोजमर्रा के जीवन को चलाने के लिए आम लोग बारिश के बावजूद ट्रेनों में सफर कर गन्तव्य की ओर जा रहे थे. गाड़ी नंबर 416 डाउन मानसी से सहरसा की ओर जा रही थी. उस समय यह अकेली ऐसी ट्रेन थी जो खगड़िया से सहरसा तक का सफर तय करती थी. 9 बोगियों वाली पैसेंजर ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी. ट्रेन में भीड़ ऐसी कि अंदर से लेकर बाहर तक लोग लदे और लटके हुए थे. बोगियों के अंदर सीटों पर ही नहीं बल्कि ट्रेन के दरवाजों, खिड़कियों पर लटक कर सफर करने के लिए सैंकड़ों यात्री मजबूर थे. यहां तक कि ट्रेन के इंजन और बोगियों की छतों पर भी यात्री सवार थे. तो खचाखच यात्रियों से भरी ट्रेन सहरसा की ओर जा रही थी.
खिलौने की तरह पुल से गिर गई ट्रेन
कहते हैं उस सफर के दौरान अचानक ट्रेन में जोरदार झटका लगा. सभी यात्री अपनी सीट से इधर-उधर जा गिरते हैं. दरअसल, ड्राइवर ने अचानक ब्रेक मार दिया था. इससे जोरदार झटका लगा. ट्रेन के अंदर बैठे यात्री जब तक कुछ समझ पाते, तब तक ट्रेन के कई डिब्बे पटरी से उतर चुके थे. जिस जगह ट्रेन के डिब्बे बेपटरी हुए उस जगह ट्रेन बागमती नदी पर बने पुल से गुजर रही थी. और फिर पलक झपकते ही 9 बोगियों वाली पैसेंजर ट्रेन खिलौने की तरह पुल से गिर गई. पूरी ट्रेन बागमती नदी में समा गई. जिस जगह पर यह हादसा हुआ वह मानसी से आगे बढ़कर बदला घाट के पास की जगह थी और धमारा घाट के पास रेल के पुल संख्या 51 के पास हादसा हुआ.
खून से लाल हुई नदी
तेज आंधी और जोरदार बारिश के बीच चीख पुखर का ऐसा दर्दनाक मंजर कि हर ओर खून, अधकटे लोग और लाश से बागमती नदी भर गई. कहते हैं नदी में जिस जगह ट्रेन गिरी थी वहां का पानी खून से लाल हो गया था. 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन के साथ हुई इस घटना में करीब 300 लोगों की मौत की बात सामने आयी थी. हालांकि स्थानीय लोगों का कहना था कि मरने वालों की संख्या करीब 800 थी. इसे लेकर कोई अधिकारिक पुष्टि कभी नहीं की गई. लेकिन घटना के बाद नदी से शवों के मिलने के सिलसिला हफ्तों तक चलता रहा. यहां तक कि इस भीषण हादसे में बिहार के कई परिवार समूल खत्म हो गए. वैसे सरकारी आंकड़े बताते हैं कि हादसे में 300 लोगों की जानें गईं.
गाय बचाने में गई जान !
तब की मीडिया रिपोर्टों में यह बात सामने आई थी कि बागमती नदी पर बने पुल से जब 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन गुजर रही थी तब पहले तेज आंधी शुरू हो गयी और जोरदार बारिश पड़ने लगी. मौसम बिगड़ा तो सबने अपनी खिड़कियों और शीशों को बंद कर लिया. अपुष्ट खबरों के अनुसार कहा जाता है कि इसी बीच अचानक से एक गाय पुल पर आ गई जिसे देखते ही लोको पायलट ने ब्रेक मार दिया था. हालांकि कुछ लोग किसी अन्य मवेशी के पुल पर आने की बातें कहते हैं. अचानक लगे ब्रेक से तेज गति से जा रही ट्रेन का संतुलन बिगड़ा और गाय को बचाने के चक्कर में ट्रेन के सात डिब्बे बेपटरी हुए. चूकी नीचे उफनती बागमती बह रही थी तो उसी में सारे डिब्बे समा गए. इस तरह यह बिहार में घटित भारत का सबसे बड़ा रेल हादसा साबित हुआ जिसके 44 साल बीत जाने के बाद भी उसका गम आज भी पीड़ितों के जेहन में है.