निशांत को राजनीति में लाने के पीछे सबसे बड़ी वजह क्या? आखिर कौन सा डर सता रहा जेडीयू के कुछ बड़े नेताओं को,कहीं खेल न हो जाए...
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुरू से अपने सियासी सिद्धांतों में भ्रष्टाचार से दूरी और परिवारवादी राजनीति के विरोधी के रूप में रहे हैं. लेकिन अब उनके बेटे निशांत कुमार के जदयू की कमान संभालने को लेकर अटकलें तेज हैं जिसके खास कारण हैं.
Nitish Kumar : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार इस महीने के आरंभ में अपने पिता के साथ गृह क्षेत्र बख्तियारपुर गए थे. निशांत ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि पिता जी ने अच्छा काम किया है, उन्हें जरुर वोट दें और दोबारा मुख्यमंत्री बनाएं. निशांत का यह बयान ऐसे समय में आया जब उनके जदयू की सक्रिय राजनीति में आने को लेकर अटकलें तेज हैं. इसी वर्ष बिहार विधानसभा का चुनाव भी है तो पिता नीतीश को दोबारा सीएम बनाने की निशांत की अपील भी एक सोची-समझी राजनीति का हिस्सा ही माना जा रहा है.
वहीं निशांत को लेकर अब माना जा रहा है कि वे होली के बाद सियासी रंग में रंगे नजर आ सकते हैं. यानी पिता की राजनीतिक विरासत को निशांत संभाल सकते हैं. निशांत आम तौर पर सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर रहते हैं. खासकर राजनीतिक कार्यक्रम में उनकी कभी कोई उपस्थिति नहीं देखी जाती है. यहाँ तक कि वे आखिरी बार साल 2015 में उन्हें पिता नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में देखा गया था. ऐसे में इस बार निशांत कुमार के जदयू की कमान सँभालने की कयासबाजी भी कुछ खास कारणों से है.
जदयू में हो सकता है खेला
जदयू के शुरुआती दौर में निशांत कुमार के साथ ही कई नेता रहे जो इस पार्टी के प्रमुख चेहरे थे. जॉर्ज फर्नांडिस, शरद यादव ऐसे नेता रहे जिन्होंने जदयू को एक खास पहचान दी. हालाँकि बाद के वर्षों में जदयू सिर्फ नीतीश कुमार के आसपास सिमट गई. यहाँ तक कि शरद यादव को जीवन के अंत में राजद के शरण में जाना पड़ा. वहीं जदयू में नीतीश कुमार इतने ताकतवर हुए कि पूरी पार्टी ही उनके चेहरे के अधीन मानी जाती है. पिछले कुछ वर्षों में कई नेताओं को जदयू का नंबर दो नेता माना गया लेकिन कोई भी नीतीश का नंबर दो होने का दावा नहीं कर सकते हैं.
आरसीपी के बाद ललन, मनीष
आरसीपी सिंह जब जदयू के अध्यक्ष रहे तब माना जाता था कि वे नीतीश कुमार के बाद पार्टी के नंबर दो हैं. अब जदयू उन्हीं के चेहरे के सहारे आगे बढ़ेगी. लेकिन नतीजा हुआ कि आरसीपी को जदयू से निकलने के लिए मजबूर होना पड़ा. वहीं केंद्रीय मंत्री ललन सिंह हमेशा ही नीतीश के बाद पार्टी में नंबर दो कहे जाते हैं. लेकिन, उन्हें लेकर भी कई बार विवाद होता रहा है. हाल ही में जब पूर्व आईएएस मनीष कुमार को नीतीश ने पार्टी में शामिल कराया तो उन्हें नीतीश का उत्तराधिकारी बताया जाने लगा. लेकिन फ़िलहाल ऐसी कोई जिम्मेदारी उन्हें नहीं दी गई है जिससे मनीष वर्मा को नीतीश का उत्तराधिकारी कहने पर मुहर लगे. अशोक चौधरी, विजय चौधरी जैसे नेता भी सिर्फ नीतीश कुमार के निकटस्थ की पहचान तक ही सीमित माने जाते हैं.
अम्मा से सबक सीखेंगे नीतीश
नीतीश कुमार के बाद जदयू का कौन रखवारा होगा यह बड़ा पेचीदा सवाल है. ऐसा ही सवाल किसी दौर पर तमिलनाडु में जे. जयललिता की अन्नाद्रमुक को लेकर उठा था. जयललिता के अन्नाद्रमुक प्रमुख रहते तक कोई भी दूसरी पंक्ति का नेतृत्व तैयार नहीं हो पाया. नतीजा हुआ कि पहले जयललिता के जेल जाने और उसके बाद उनके निधन के बाद अन्नाद्रमुक में नेतृत्व का टोटा हो गया. बाद में पार्टी के नेताओं में जोरदार घमासान वाली स्थिति दिखी. अन्नाद्रमुक के अंदरूनी कलह का नतीजा हुआ कि तमिलनाडु में करुणानिधि की पार्टी डीएमके ने लगातार अपना प्रदर्शन सुधारा और करुणानिधि के पुत्र स्टालिन अभी राज्य के मुख्यमंत्री हैं. दूसरी ओर जयललिता का कोई सियासी वारिस नहीं होना अन्नाद्रमुक को भारी पड़ गया. नीतीश कुमार को लेकर कहा जाता है कि वे भी अम्मा के अन्नाद्रमुक से सबक सीख चुके हैं. ऐसे में इस बार निशांत को लेकर कोई बड़ा फैसला कर सकते हैं.
निशांत कितने काबिल
निशांत का जन्म 20 जुलाई 1975 को हुआ. 49 वर्षीय निशांत ने बीआईटी मेसरा से इंजिनयरिंग किए थे. वे नीतीश कुमार के एक मात्र संतान हैं. नीतीश कुमार हमेशा ही अपनी छवि भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति से दुरी बनाकर रखे हैं. ऐसे में निशांत को कभी भी उन्होंने राजनीति में कोई जगह नहीं दी. अब नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. माना जा रहा है कि इन्हीं कारणों से जदयू के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए नीतीश कुमार इस बार निशांत की सियासी एंट्री जदयू में करा सकते हैं.