Nitish Kumar : सीएम नीतीश के पुराने मित्र का दावा, सिद्धांतविहीन राजनीति करते हैं जदयू प्रमुख, सरकारी ख़ज़ाने से बिहार का अरबों रुपए किया बर्बाद, पढ़िये बड़ा खुलासा
नीतीश कुमार के पुराने साथी रहे शिवानंद तिवारी ने गुरुवार को कहा कि बिहार के मुख्यमन्त्री सिद्धांत विहीन राजनीति करते हैं। बिहार के खजाने से अरबों रुपये की बर्बादी का भी गंभीर आरोप लगाया।
Nitish Kumar : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पुराने साथी और मौजूदा समय में राजद नेता शिवानंद तिवारी ने गुरुवार को एक सोशल मिडिया पोस्ट में कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि देश के मुख्यमंत्रियों में नीतीश जी गांधी जी का नाम सबसे ज़्यादा लेते हैं. जगह जगह इन्होंने गांधी जी जिनको पाप मानते थे वैसे सात पापों की सूची बड़े बड़े बोर्ड पर लिखवा कर टंगवाई है. लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि उन्होंने स्वयं कभी गांधी के बताए सातों पापों की सूची पढ़ी भी है या नहीं. क्योंकि उन सात पापों में पहला पाप गांधी जी के अनुसार सिद्धांतविहीन राजनीति है. लेकिन स्वयं नीतीश जी अगर अपने जीवन की राजनीतिक यात्रा पर नजर डालेंगे तो उसमें सिद्धांत के अलावा सब कुछ नजर आएगा.
तिवारी ने कहा, गांधी जी ने नीतीश जी जैसे सत्ताधारियों के लिए एक जंतर बताया था. जब कोई कदम उठओ तो देखो कि उस कदम से क़तार में खड़े अंतिम आदमी को क्या लाभ मिलेगा. विकास के मामले नीतीश जी की शोहरत है. सड़क और बिजली के मामले में बिहार में वाक़ई भारी परिवर्तन हुआ है. अब देहात में भी जहां-तहाँ तिलक में एसी भी चढ़ने लगा है.
उन्होंने कहा, व्यक्तिगत खर्च में नीतीश जी बहुत सावधानी बरतते हैं. जेब से दस रूपया भी बहुत सोच समझ कर निकालते हैं. लेकिन सरकारी ख़ज़ाने से खर्च के मामले में 'माले मुफ्त दिले बेरहम' वाली हालत है. बिहार जैसे गरीब राज्य का अरबों रूपया इन्होंने बर्बाद किया है. अभी ही देख लीजिए. बिहार म्यूजियम से पुराने अजायब घर को जोड़ने के लिए ज़मीन के नीचे नीचे भूगर्भ टनल बनवा रहे हैं. डेढ़ किमी के इस टनल को बनाने की लागत 542 करोड़ रुपये है. देश के लगभग सबसे गरीब राज्य के प्रति इसको अपराध नहीं तो और क्या कहा जाएगा !
विकास पर सवाल
तिवारी ने कहा, पटना स्टेशन के सामने नीतीश जी ने ध्यान केंद्र बना दिया है. भरे बाज़ार में ध्यान लगाने का केंद्र नीतीश जी ही बनवा सकते हैं. पहले वह पुराना जेल था. बहुत बड़ा परिसर. इतना बड़ा कि स्टेशन के पास का सारा बाज़ार उसके अंदर आ जाता. बाज़ार ख़ाली हो जाता तो पटना स्टेशन का चेहरा ही बदल जाता.
आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय का हाल देख लीजिए ! जब इसकी शुरुआत हुई थी तब क्या-क्या सपना दिखाया था नीतीश जी ने !अगर इस विश्वविद्यालय पर अबतक हुए ख़र्च का हिसाब लगाया जाये तो वह सैकड़ों करोड़ में चला जाएगा. लेकिन वहाँ एक नियमित वाइसचांसलर तक नहीं है. दशरथ मांझी के नाम पर संस्थान बनाने के लिए करोड़ों रूपए खर्च किए गए हैं. लेकिन अब तक वहाँ कुछ नहीं हुआ है. वह भव्य भवन ढन ढन कर रहा है. एक मर्तबा नीतीश जी को डॉल्फ़िन से मोहब्बत हो गई . कुछ दिन डॉल्फ़िन का जाप चला. उसके शोध के लिए दो ढाई सौ करोड़ रुपये की लागत से भवन बना. वह भवन वैसे ही ढनढना रहा है.
पटना के विरुद्ध मेट्रो
पटना शहर में नीतीश जी मेट्रो बनवा रहे हैं. सुना है इसके लिए सरकार ने पंद्रह हज़ार करोड़ रूपया क़र्ज़ लिया है. मेट्रो पटना की ज़रूरत और शहर के चरित्र के विरुद्ध है. अराजक ढंग से बसा यह शहर मूलतः पैदल वालों का शहर है. लखनऊ पटना से ज़्यादा व्यवस्थित शहर है. लेकिन वहाँ का मेट्रो अब तक घाटे से नहीं निकल पाया है.
गरीबी- पलायन नहीं हुआ दूर
बिहार की ग़रीबी और पलायन दोनों यहाँ की बड़ी समस्याएं हैं. इस मोर्चे पर क्या उपलब्धि है यह पता नहीं है. देश में कहीं भी दुर्घटना होती है मरने वालों में बिहारी का नाम आता ही है. जानवर की तरह लोग वहाँ रहते हैं. सरकार उनकी कोई सुध नहीं लेती है. कोई मरा तो परिवार वालों को दो लाख रुपये का चेक थमा कर सरकार अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेती है. नीतीश जी के लंबे शासनकाल में पलायन में कितनी कमी आई है इसकी कोई जानकारी नहीं है. यह कहा जा सकता है कि सामाजिक क्षेत्र में नीतीश जी ज़रूर कुछ काम किए हैं. लेकिन आरक्षण या दूसरे रास्ते जिन गरीबों और कमजोरों को आगे बढाने का प्रयास किया है सरकारी दफ्तरों में उनकी क्या हालत होती है उसकी पूछिये मत. वहाँ से दूरदुरा कर वहाँ से भगा दिया जाता है.
पुलिस करती है जुल्म
नीतीश जी टेलीविजन शायद कम देखते हैं. कभी-कभी देखना चाहिए. सरकार की पुलिस अपनी समस्याओं को लेकर आवाज़ उठाने वालों को जानवरों की तरह पीटती दिखाई देती है. यह सही है कि विरोध प्रदर्शन करने वाले भी कहीं कहीं अति करते दिखाई देते हैं. लेकिन इसका समाधान क्या उनको जानवरों की तरह पीटना है ? तो फिर विरोध का लोकतांत्रिक अधिकार कहाँ है !
नीतीश जी आभिजात्य दृष्टि वाले नेता हैं. मूल समस्याओं को छुए बग़ैर तड़क भड़क दिखा कर विकास पर अपनी पीठ थपथपाने में उनका कोई सानी नहीं है. ग़रीबी के ढेर पर पटना के नेहरू पथ पर अमीरी की झिलमिलाहट दिखाकर ग़रीबों का अपमान कर रहे हैं वे. राजा की तरह सुरक्षा के तगड़े घेरे में पूरी सरकार लेकर एक राजा की तरह बिहार का मुआयना कर रहे हैं. वाक़ई नीतीश जी का कोई जोड़ नहीं है.