Bihar Health System Helpless:स्वास्थ्य मंत्री के जिले में ही स्वास्थ्य व्यवस्था लाचार? मौत-कुव्यवस्था की खबर पर पत्रकार किया गया कैद, सदर अस्पताल की बदइंतज़ामी छुपाने में जुटे अस्पताल अधीक्षक!
सदर अस्पताल की असलियत दिखाने पहुंचे पत्रकारों के साथ जो हुआ, उसने लोकतंत्र को शर्मसार कर दिया। गार्ड ने न सिर्फ़ हाथ पकड़कर बाहर करने की कोशिश की, बल्कि मोबाइल छीनने और हाथ मरोड़ने का प्रयास किया। विरोध करने पर पत्रकार को कमरे में बंद कर दिया गया।
Bihar Health System Helpless:स्वास्थ्य मंत्री के हुकुम के गृह जिला सिवान के सदर अस्पताल की ताज़ा तस्वीरें बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था का आईना बनकर सामने आई हैं। यह वही अस्पताल है, जिसका उद्घाटन स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने चकाचौंध और भाषणों के बीच 4 अप्रैल को किया था। 2 करोड़ 89 लाख की लागत से बना 39 बेड का पीकू और एसएनसीयू वार्ड—महज़ 48 घंटे में ही खोखला साबित हो गया।
बिना डॉक्टर, बिना उपकरण – खाली बेडों का साम्राज्य
शनिवार को कागज़ों पर वार्ड चालू हुआ, सोमवार को हकीकत सामने आ गई। न डॉक्टर, न मशीनें, न दवा मरीज वार्ड से इमरजेंसी और फिर वापस इमरजेंसी तक चक्कर काटते रहे। एक महिला कर्मी ने डॉक्टर की गैरहाज़िरी की पुष्टि की, लेकिन नाम बताने से डर गई। बेड तो थे, पर सिर्फ गिनती के लिए।
पत्रकारों को कैद, गार्ड का तांडव
अस्पताल की असलियत दिखाने पहुंचे पत्रकारों के साथ जो हुआ, उसने लोकतंत्र को शर्मसार कर दिया। गार्ड ने न सिर्फ़ हाथ पकड़कर बाहर करने की कोशिश की, बल्कि मोबाइल छीनने और हाथ मरोड़ने का प्रयास किया। विरोध करने पर पत्रकार को कमरे में बंद कर दिया गया। आधे घंटे तक वे वहीं कैद रहे और तब जाकर साथी पत्रकारों और डॉक्टरों के हस्तक्षेप से बाहर निकल पाए।हैरानी की बात इस दौरान अधीक्षक डॉ. अनिल कुमार सिंह और सिविल सर्जन डॉ. श्रीनिवास प्रसाद मौजूद थे, लेकिन दोनों ने चुप्पी साध ली।
अधीक्षक डॉ. अनिल कुमार सिंह की तैनाती के बाद से पत्रकारों को रोकने के लिए नित नए बहाने
कथित तौर पर मीडिया से टकराव यहां कोई नई बात नहीं है। अधीक्षक डॉ. अनिल कुमार सिंह की तैनाती के बाद से पत्रकारों को रोकने के लिए नित नए बहाने गढ़े जाते हैं, कभी पहचान पत्र की मांग, कभी अनुमति की शर्त, तो कभी क्षेत्राधिकार का हवाला। सिर्फ पत्रकार ही नहीं, कई डॉक्टर भी उनके रवैये से खिन्न हैं। असर यह कि चहेते और रसूखदार डॉक्टरों को आरामदायक ड्यूटी मिलती है, जबकि बाकी लगातार बिना विश्राम काम करने को मजबूर हैं। नतीजतन अस्पताल की सेवाओं की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है।
डॉक्टरों का इस्तीफ़ा और मरीजों की भटकन
सूत्र बताते हैं कि वार्ड के लिए नियुक्त डॉ. रोहित और डॉ. जय प्रकाश उद्घाटन के अगले ही दिन इस्तीफ़ा दे गए। एक ने लिखित तो दूसरे ने मौखिक त्यागपत्र दिया। परिणाम बच्चों का पीकू वार्ड और नवजातों का एसएनसीयू, दोनों बिना डॉक्टर के।
गंदगी, संक्रमण और ‘गुंडागर्दी’
अस्पताल की चादरें दिनों से नहीं धुलीं, गंदी और बदबूदार कपड़े मरीजों पर बिछे हैं। संक्रमण हर कोने में मंडरा रहा है। अधीक्षक डॉ. अनिल पर आरोप है कि वे पत्रकारों को रोकने के लिए नए-नए बहाने गढ़ते हैं कभी आईडी की मांग, कभी अनुमति का सवाल। डॉक्टरों के बीच भी असंतोष है; रसूखदार चिकित्सकों को आरामदायक ड्यूटी, बाकी को लगातार थका देने वाला काम।
सबसे बड़ा सवाल – इलाज या दिखावा?
जब स्वास्थ्य मंत्री के गृह जिले के सबसे बड़े अस्पताल में ही यह हाल है जहां डॉक्टर नहीं, उपकरण नहीं, और पत्रकारों को सच दिखाने पर बंधक बना लिया जाता है तो बाकी जिलों के अस्पतालों की हालत समझना मुश्किल नहीं।क्या 2.89 करोड़ का उद्घाटन सिर्फ़ राजनीतिक प्रदर्शन था? क्या गार्ड को यह हिम्मत अस्पताल प्रशासन से नहीं मिली कि पत्रकार को कमरे में बंद कर सके? और क्या मरीजों की जिंदगी अब भी सिर्फ़ कागज़ी योजनाओं के भरोसे है?
सिवान का सदर अस्पताल आज सिर्फ़ बीमार शरीर नहीं, बीमार व्यवस्था का प्रतीक है। यह घटना चेतावनी है कि अगर मंत्री के अपने ज़िले में यही हाल है, तो पूरे बिहार का स्वास्थ्य ढांचा मौत और मज़ाक के बीच झूल रहा है।
रिपोर्ट- ताबिश इरशाद