Naxal news: देवजी, गणपति और बेसरा कौन? 76 जवानों के हत्याकांड के तीन छुपे चेहरे, हिड़मा ढेर, पर असली दिमाग अभी जंगलों में जिंदा, नक्सली मूवमेंट का असली खेल इन तीन किंगपिनों के सर कटने पर ही होगा ख़त्म

पुलिस-फोर्स की नज़र में हिड़मा संगठन का सबसे धारदार हिटमैन था, जो जंगल की कटिया-स्लिट से निकलकर जवानों पर ऐसा वार करता था कि पूरी फोर्स हिल जाती। ...

76 जवानों के हत्याकांड के तीन छुपे चेहरे- फोटो : social Media

Naxal news: नक्सल दुनिया की अंडरग्राउंड हिड़मा को हमेशा एग्जीक्यूटर कहा गया यानी मैदान में उतरकर ऑपरेशन को अंजाम देने वाला खूंखार लड़ाका, पर डिसीजन मेकर कभी नहीं। पुलिस-फोर्स की नज़र में वो संगठन का सबसे धारदार हिटमैन था, जो जंगल की कटिया-स्लिट से निकलकर जवानों पर ऐसा वार करता था कि पूरी फोर्स हिल जाती। उसके एनकाउंटर को एंटी-नक्सल ऑपरेशन की टॉप अचीवमेंट माना जा रहा है, लेकिन सिस्टम के मुताबिक असली कामयाबी तब होगी, जब इस पूरे खूनी खेल के ब्रेन मास्टर्स देवजी, गणपति और बेसरा यानी तीनों टॉप मोस्ट रणनीतिकार या तो सरेंडर करेंगे या ठोंक दिए जाएंगे।

18 नवंबर को एक करोड़ी इनामी माड़वी हिड़मा की मौत को दहशत के गिरोह पर बड़ा सर्जिकल हिट कहा जा रहा है। पर बस्तर आजी पी. सुंदरराज कहते हैं कि गेम अभी खत्म नहीं… हिड़मा तो सिर्फ फील्ड का दो नंबर वॉरियर था, असली कमांड रूम में बैठे 11–12 नाम अभी सांस ले रहे हैं। इनमें तीन तो टॉप-टीयर मास्टरमाइंड हैंइनकी गर्दन टूटेगी तभी मूवमेंट की रीढ़ ध्वस्त मानी जाएगी।

पहला नाम है थिप्परी तिरुपति उर्फ देवजी नक्सली दुनिया का साइलेंट स्ट्रैटेजिस्ट। तेलंगाना के दलित परिवार से निकला ये शख़्स बसवाराजू की मौत के बाद पोलित ब्यूरो का महासचिव बना और संगठन की हर बड़ी वार-मीटिंग का हिस्सा रहा। ताड़मेटला और रानीबोदली जैसे खौफनाक हमलों की सोच, प्लॉट और ब्लूप्रिंट इसी के दिमाग से बना। 15 मार्च 2007 का रानीबोदली हमला जहां सोते हुए 55 जवानों को चार घंटे तक गोलियों और बमों की बरसात में जला दिया गया देवजी का सबसे बेरहम ऑपरेशन मॉडल था। इसका एक-एक मूव सरकार को संदेश देता था कि यह सिर्फ वार नहीं, सलवा जुडूम को खुला जवाब है।

दूसरा दिमाग है मुप्पल्ला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति तकरीबन तीन दशक तक CPI माओवादी का सुप्रीमो। 1992–2018 तक जितने भी हाई-वोल्टेज नक्सली हमले हुए, गणपति ने या तो आइडिया दिया या प्लान पास किया। चंद्रबाबू नायडू पर 2003 का हमला भी इसी का सिग्नेचर ऑपरेशन था, जिसे कई पोलित ब्यूरो मेंबर्स ने खुद रिस्की बताया, पर गणपति पीछे नहीं हटा। इस पर कई राज्यों ने मिलाकर करोड़ों का इनाम टाँग रखा है।

तीसरा और सबसे खतरनाक प्लानर है मिशिर बेसरा उर्फ भास्कर संगठन का मिलिट्री ब्रेन, लेवी कलेक्टर और एंबुश मास्टर। इसकी खासियत है पहले इलाके का 360 डिग्री रेक्की, फिर घेरा बनाना, और आख़िर में ऐसा एंबुश लगाना कि फोर्स के पास पोज़िशन बदलने का मौका तक न बचे। झारखंड-बिहार-ओडिशा में जिस-जिस जगह पुलिस के बड़े दस्ते ढेर हुए, वहां बेसरा की परछाई जरूर मिली। 2002 के चाईबासा और 2004 बालिबा हमले में पुलिस के 80 से ज्यादा जवान मारे गए—इसकी प्लानिंग इतनी क्लीन कट थी कि फोर्स को पता तक नहीं चला कि किस दिशा से आग बरसी।

उधर हिड़मा जिसने 26 से ज्यादा बड़े हमले प्लान या एग्जीक्यूट किए उसके सरेंडर की आखिरी कोशिश डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने खुद की थी। परिवार से अपील करवाकर उसे रास्ता दिया गया, पर हिड़मा ने कोड ऑफ ग्रुप तोड़ने से इनकार कर दिया। और फिर 18 नवंबर को छत्तीसगढ़-आंध्र की बॉर्डर पर मारेडुमिल्ली के जंगल में एनकाउंटर में वो और उसकी टीम ढेर कर दी गई।