Narak Chaturdashi 2025: इन 4 कामों से बदल जाएगी किस्मत! नरक चतुर्दशी पर मिलेगी लक्ष्मीजी की विशेष कृपा, अंधकार से आलोक की ओर दिव्य यात्रा

Narak Chaturdashi 2025: दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिवस नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है, आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र और शक्तिपूर्ण दिन है।

नरक चतुर्दशी : अंधकार से आलोक की ओर दिव्य यात्रा- फोटो : social Media

Narak Chaturdashi 2025: दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिवस  नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है, आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र और शक्तिपूर्ण दिन है। यह दिवस न केवल बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, बल्कि आत्मा के भीतर बसे अंधकार को ज्ञान और भक्ति के प्रकाश से दूर करने का संदेश भी देता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का संहार कर देवताओं और मनुष्यों को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था। इसीलिए इस तिथि को नरक चतुर्दशी कहा गया — वह दिन जब “नरक” अर्थात अंधकार और पाप का अंत हुआ। तभी से यह दिन बुराई, आलस्य, नकारात्मकता और अशुद्धता को दूर कर प्रकाश, पवित्रता और समृद्धि का स्वागत करने का प्रतीक बन गया।

इस वर्ष नरक चतुर्दशी का शुभ पर्व 19 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। प्रातःकाल से ही घर-आंगन में पवित्रता और उल्लास का वातावरण दिखाई देता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व स्नान कर शरीर और मन की शुद्धि करनी चाहिए। स्नान से पूर्व तिल के तेल का अभ्यंग करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि यह शरीर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर आत्मा को शुद्ध करता है।

इसके पश्चात घर की संपूर्ण सफाई करनी चाहिए। धर्मग्रंथों के अनुसार, इस दिन घर से समस्त अशुद्धता, कबाड़, पुराने टूटे सामान, बेकार वस्तुएं और अनुपयोगी दवाइयां निकाल देना चाहिए। यह केवल भौतिक स्वच्छता नहीं, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि का भी प्रतीक है। जब घर से नकारात्मकता हटती है, तो उसमें लक्ष्मी का वास होता है।

शाम के समय, जब सूर्य अस्त हो जाए, तब घर के मुख्य द्वार के दाहिनी ओर चौमुखा दीपक जलाने की परंपरा है। यह दीपक चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाता है, जो जीवन के हर क्षेत्र में सुख, शांति और समृद्धि का संकेत देता है। मान्यता है कि यह दीपक बुराइयों और अशुभ शक्तियों को घर से दूर करता है तथा देवत्व का आह्वान करता है।

रसोईघर में जहां पानी रखा जाता है, वहां एक दीपक जलाना पितृ तृप्ति का प्रतीक माना गया है। इससे पूर्वज प्रसन्न होते हैं और परिवार पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं। इसी प्रकार घर के प्रत्येक कोने में दीप प्रज्वलित करने से वातावरण शुद्ध होता है और नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।

नरक चतुर्दशी केवल धार्मिक अनुष्ठानों का दिन नहीं, बल्कि एक आंतरिक शुद्धि और आध्यात्मिक जागरण का अवसर है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जैसे भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का अंत कर जग में प्रकाश फैलाया, वैसे ही हमें भी अपने भीतर की अज्ञानता, ईर्ष्या, क्रोध और आलस्य का नाश कर आत्मा का प्रकाश प्रकट करना चाहिए। यही सच्ची रूप चौदस है — जब बाहरी सजावट के साथ-साथ भीतर का प्रकाश भी दमक उठे।

अतः इस नरक चतुर्दशी, अपने जीवन से अंधकार मिटाइए, दीप प्रज्वलित कर आत्मा में प्रकाश भरिए और मां लक्ष्मी के चरणों में अपनी श्रद्धा समर्पित कीजिए। यही है इस पर्व का परम संदेश  “अंधकार से आलोक की ओर दिव्य यात्रा।”