Diwali 2025: धन-संपत्ति पाने का संयोग आज, इस मुहूर्त पर करें लक्ष्मी-गणेश की पूजा, दीवाली के दिन दीपों की अविरल ज्योति से आलोकित होगें घर

Diwali 2025: अमावस्या के प्रदोष तथा महानिशीथ काल प्राप्त हो रहा है, इसलिए आज के दिन दीपावली मनाना अधिक शुभ माना गया है।

धन-संपत्ति पाने का संयोग आज- फोटो : social Media

Diwali 2025: आज पूरे भारत समेत बिहार दीपों की उज्ज्वल आभा से जगमगा उठेगा। घर-घर में दीपक जलेंगे, मंदिरों में घंटियाँ गूंज रही हैं और आसमान में रंग-बिरंगी आतिशबाज़ी के फूल खिलेंगे। इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 20 अक्टूबर की दोपहर 3 बजकर 44 मिनट से आरंभ होकर 21 अक्टूबर की शाम 5 बजकर 55 मिनट तक रहेगी। इसी दो-दिवसीय अवधि के कारण लोगों में यह भ्रम उत्पन्न हुआ कि दीपावली किस दिन मनाई जाए, किन्तु काशी पंचांग के अनुसार 20 अक्टूबर को ही अमावस्या के प्रदोष तथा महानिशीथ काल प्राप्त हो रहा है, इसलिए आज के दिन दीपावली मनाना अधिक शुभ माना गया है।महानिशीथ काल, जो रात्रि का गहनतम और पावनतम समय माना गया है, इस वर्ष 20 अक्टूबर की रात 11 बजकर 41  मिनट से 21 अक्टूबर की रात 12 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। यह वही क्षण है जब सृष्टि की ऊर्जा सबसे सूक्ष्म रूप में सक्रिय होती है और मां लक्ष्मी की कृपा सहज प्राप्त होती है।इस वर्ष लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त संध्याकाल में 7 बजकर 08 मिनट से 8 बजकर 18 मिनट तक है। प्रदोष काल का शुभ समय शाम 5 बजकर 46 मिनट से रात 8 बजकर 18 मिनट तक रहेगा, जबकि वृषभ काल में पूजन का समय 7 बजकर 08 मिनट से 9 बजकर 03 मिनट तक रहेगा। निशीथ काल, जो सबसे पवित्र माना गया है, रात 11 बजकर 41 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक रहेगा। यही वह समय है जब मां लक्ष्मी और मां काली की आराधना सर्वाधिक फलदायी मानी जाती है।

पौराणिक परंपरा के अनुसार, दीपावली के अवसर पर मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। लक्ष्मी धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की देवी हैं, जबकि गणेश विघ्नहर्ता और शुभारंभ के देवता। अतः पहले गणेश की आराधना कर सभी बाधाओं को दूर किया जाता है, तत्पश्चात मां लक्ष्मी का पूजन कर सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।

भारत में दीपावली पांच दिनों का उत्सव है  धनतेरस से आरंभ होकर भाई दूज तक। इन पाँचों दिनों में भारतीय संस्कृति की विविध छवियाँ झलकती हैं। धनतेरस पर स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना के साथ नए बर्तन खरीदे जाते हैं, नरक चतुर्दशी पर नकारात्मकता का अंत और प्रकाश के आगमन का प्रतीक मनाया जाता है, जबकि तीसरे दिन अर्थात् अमावस्या की रात्रि को दीपावली का मुख्य पर्व मनाया जाता है। इसके पश्चात गोवर्धन पूजा और भाई दूज का पर्व आता है।

पूजन से पूर्व घर की संपूर्ण सफाई और विशेषतः पूजा स्थल की पवित्रता का ध्यान रखना आवश्यक है। गंगाजल से शुद्धिकरण करें, फिर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की नई प्रतिमाएं स्थापित करें। गणेश जी को लक्ष्मी जी के दाहिने ओर विराजित करें। पूजा की चौकी पर चावल या गेहूं के ऊपर मिट्टी या तांबे का कलश रखें। घर के मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाएं, जिससे समृद्धि का मार्ग आलोकित हो।

पूजा स्थल को रंगोली, पुष्पों, दीपमालाओं और तोरणों से सजाएं। लकड़ी की चौकी पर लाल या पीले वस्त्र बिछाकर श्री गणेश और मां लक्ष्मी की मूर्तियों की स्थापना करें। सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें और “गणपतये नमः” मंत्र का जाप करें। तत्पश्चात मां लक्ष्मी को पंचामृत स्नान कराकर, रोली, चावल, पुष्प, इत्र एवं मिष्ठान अर्पित करें। “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः” मंत्र का 108 बार जाप करें। अंत में कपूर या घी के दीपक से आरती करें और परिवार सहित लक्ष्मी जी की आराधना करें।

विद्वानों के अनुसार, लक्ष्मी-गणेश-कुबेर पूजन में विशेष सावधानी रखनी चाहिए। स्नान के बाद शुद्ध और उजले वस्त्र धारण करें, चौकी पर मौली बांधें और छह चौमुखे तथा 26 छोटे घी के दीपक प्रज्वलित करें। देवताओं को गंगाजल से स्नान कराने के बाद रोली, अक्षत, धूप, मधु, सफेद मेवा और दीप अर्पित करें। इस प्रकार श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता के साथ की गई पूजा से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और परिवार पर धन, वैभव तथा मंगल की वर्षा करती हैं।

दीपों की यह रात्रि केवल रोशनी का पर्व नहीं, बल्कि अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय का प्रतीक है। हर दीपक इस सत्य की गवाही देता है कि यदि हृदय में विश्वास का प्रकाश जलता रहे, तो जीवन का कोई कोना अंधकारमय नहीं रह सकता।