संतान की लंबी उम्र का पर्व ‘जितिया’ शुरू, आज नहाय-खाय, कल निर्जला उपवास, जानें पूरी परंपरा
Jitiya 2025:जितिया व्रत 2025 आज नहाय-खाय से शुरू हो गया है। मां की ममता का संकल्प और संतान की लंबी उम्र की कामना का पर्व रविवार को निर्जला उपवास के साथ मनाया जाएगा।
Jitiya 2025: हिंदू धर्म में हर व्रत और त्योहार का गहरा आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व है। इन्हीं पर्वों में से एक है जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे संतान की लंबी आयु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि के लिए माताएं पूरे भाव और निष्ठा से करती हैं। इसे जितिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं बल्कि मां की ममता, त्याग और संकल्प का अद्भुत संगम है।जितिया व्रत 2025 आज नहाय-खाय से शुरू हो गया है। मां की ममता का संकल्प और संतान की लंबी उम्र की कामना का पर्व रविवार को निर्जला उपवास के साथ मनाया जाएगा।
जीवित्पुत्रिका व्रत में माताएं 24 घंटे तक निर्जला उपवास करती हैं। इस तपस्या के पीछे भाव यह है कि जिस प्रकार मां जीवनभर अपने बच्चे के सुख के लिए त्याग करती है, उसी प्रकार वह अपनी भूख-प्यास का त्याग करके भगवान से संतान की लंबी उम्र की कामना करती है। यह व्रत मां की गहन ममता और संतान के भविष्य के प्रति उसकी अटूट आस्था का प्रतीक है।
अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह व्रत रखा जाता है। इस वर्ष अष्टमी तिथि 14 सितंबर, रविवार को प्रातः 8:51 बजे से प्रारंभ होकर 15 सितंबर, सोमवार को प्रातः 5:36 बजे तक रहेगी। रविवार को सूर्योदय से पूर्व महिलाएं ओठगन की रस्म निभाकर व्रत आरंभ करती हैं और सोमवार को प्रातः 6:27 बजे के बाद व्रत का पारण करती हैं।
जितिया व्रत से जुड़ी चील और सियारिन की कथा विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मान्यता है कि चील ने नियमपूर्वक व्रत किया और अगले जन्म में शीलावती बनी, जिसे सात पुत्रों का सुख मिला। जबकि सियारिन ने छल किया और कर्पूरावतिका बनी, जिसे संतान सुख नहीं मिला। बाद में भगवान जीमूतवाहन की कृपा और इस व्रत के प्रभाव से उसे भी पुत्र प्राप्त हुआ। तभी से यह व्रत और अधिक पूजनीय हो गया।
व्रत के दिन महिलाएं आंगन में गोबर से पोखर या नदी का प्रतीक बनाकर पाकड़ की डाली रोपती हैं और भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। दिनभर फल, पकवान और भजन-कीर्तन से वातावरण भक्तिमय रहता है। इस अवसर पर बाजारों में व्रत सामग्री की खूब खरीदारी होती है और घर-घर उत्सव का माहौल दिखाई देता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह मां और संतान के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का उत्सव है। मां की निर्जला तपस्या संतान के मंगलमय जीवन की रक्षा कवच बन जाती है। यही कारण है कि यह पर्व बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और बंगाल सहित अनेक राज्यों में अपार श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।