सावन में भारत के कई मंदिरों में भोग में भगवान को चढ़ता है मांसाहार, जानें क्यों नहीं चलता यहां कोई कानून

सावन में जहां मांसाहार वर्जित रहता है। तो वहीं कई ऐसे मंदिर हैं जहां आज भी भगवान को मांस-मछली का भोग लगाया जाता है। आइए जानते हैं यहां कोई कोनून क्यों नहीं चलता है...

meat and fish are offered in many temples- फोटो : social media

सावन का महीना शुरू हो चुका है। इस पवित्र मास में अधिकतर हिंदू मांस-मदिरा से परहेज करते हैं। मान्यता है कि सावन में मांसाहार करना धार्मिक आचार-विचारों के विरुद्ध है। यही कारण है कि जब भी किसी मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की बात आती है तो उसकी पवित्रता देखी जाती है कि वह शुद्ध, सात्विक और शाकाहारी है या नहीं। लेकिन भारत जैसे विशाल और विविधता भरे देश में हर 100 किलोमीटर पर भाषा, पहनावा, बोली और खानपान ही नहीं, पूजा पद्धतियां और धार्मिक मान्यताएं भी बदल जाती हैं। ऐसे में आपको जानकर हैरानी होगी कि देश में कई मंदिर ऐसे भी हैं, जहां देवी-देवताओं को मांस, मछली और यहां तक कि चिकन-मटन भी भोग के रूप में चढ़ाया जाता है। यही नहीं, इसे भक्तगण प्रसाद मानकर श्रद्धा से ग्रहण भी करते हैं।

कई मंदिरों में आज भी प्रचलित है बलि प्रथा

प्राचीन काल में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए नर बलि तक दी जाती थी। समय बदला तो यह प्रथा पशु बलि में बदल गई। शास्त्रों में भले ही पशु बलि को लेकर अलग-अलग मत हों, लेकिन आज भी देश के कई मंदिरों में जानवरों की बलि दी जाती है और बलि के मांस को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

कहां-कहां चढ़ता है मांस-मछली का प्रसाद?

कामाख्या देवी मंदिर, असम

देश के 51 शक्तिपीठों में शामिल कामाख्या देवी मंदिर को तंत्र विद्या का प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां माता को प्रसन्न करने के लिए भक्त मांस और मछली अर्पित करते हैं। भोग के बाद यही प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाता है।

कालीघाट मंदिर, कोलकाता

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता स्थित कालीघाट मंदिर में भी बकरे की बलि दी जाती है। बलि के बाद यही मांस देवी को अर्पित कर प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।

मुनियांदी स्वामी मंदिर, मदुरई

तमिलनाडु के मदुरई में स्थित मुनियांदी स्वामी मंदिर में भक्त भगवान को चिकन और मटन बिरयानी चढ़ाते हैं। बाद में यही बिरयानी प्रसाद बनकर भक्तों को दी जाती है।

तरकुलहा देवी मंदिर, गोरखपुर

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित तरकुलहा देवी मंदिर में भी मनोकामना पूरी होने पर भक्त बकरे की बलि देते हैं। बाद में मंदिर परिसर में मिट्टी के बर्तनों में इसका मांस पकाया जाता है और मटन प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

दक्षिणेश्वर काली मंदिर, कोलकाता

कोलकाता के प्रसिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर में भी माता को मछली अर्पित की जाती है। यह मछली बाद में भक्तों में प्रसाद के तौर पर बांटी जाती है।

क्यों नहीं चलता कानून?

यह सवाल अक्सर उठता है कि आखिर ऐसे मंदिरों में बलि पर कोई कानूनी रोक क्यों नहीं लगाई जाती? दरअसल भारतीय संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी आस्था व पूजा पद्धति को मानने की पूरी स्वतंत्रता देता है। साथ ही वह क्या खाएगा, यह भी उसके मौलिक अधिकारों में शामिल है। यही वजह है कि कानूनी तौर पर स्वीकृत पशुओं की बलि पर किसी तरह की रोकटोक नहीं है।