Religion: धन,धर्म और यश ने साथ छोड़ दिया लेकिन जैसे हीं इसने कहा कि मैं भी जा रहा..तो गृहस्थ रोने लगा..पैर पकड़ लिए...फिर क्या हुआ..
Religion:एक सत्यवादी और धर्मनिष्ठ गृहस्थ भगवान विष्णु का परम भक्त था, जिसकी विष्णु जी खूब प्रशंसा करते थे। लक्ष्मी जी ने उसकी परीक्षा लेने की इच्छा जताई। विष्णु जी ने अनुमति दी और लक्ष्मी जी उस व्यक्ति के स्वप्न में प्रकट हुईं।...
Religion: कभी झूठ नहीं बोलनेवाले और बड़े हीं धर्मनिष्ठ एक गृहस्थ इंसान भगवान् के परम भक्त थे और हमेशा सच बोला करते थे।भगवान विष्णु भी उनकी बहुत प्रशंसा करते थे। एक दिन लक्ष्मी जी बोलीं ..स्वामी! आप इस गृहस्थ इंसान की इतनी प्रशंसा करती हैं..मैं तो उसकी परीक्षा लुंगी... क्या वह सचमुच इसके लायक है या नहीं ? ”
भगवान् बोले , “ ठीक है ! अभी वह गहरी निद्रा में है आप उसके स्वप्न में जाएं और उसकी परीक्षा ले लें। ”अगले ही क्षण गृहस्थ इंसान को एक स्वप्न आया।स्वप्न में धन की देवी लक्ष्मी उनके सामने आई और बोली ,” हे मनुष्य ! मैं धन की दात्री लक्ष्मी हूँ।”तो उसने कहा ” हे माता आपने साक्षात अपने दर्शन देकर मेरा जीवन धन्य कर दिया है , बताइये मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?”
कुछ नहीं ! मैं तो बस इतना बताने आयी हूँ कि मेरा स्वाभाव चंचल है, और वर्षों से तुम्हारे भवन में निवास करते-करते मैं ऊब चुकी हूँ और यहाँ से जा रही हूँ। वह बोला.. मेरा आपसे निवेदन है कि आप यहीं रहे , किन्तु अगर आपको यहाँ अच्छा नहीं लग रहा है तो मैं भला आपको कैसे रोक सकता हूँ, आप अपनी इच्छा अनुसार जहाँ चाहें जा सकती हैं। और माँ लक्ष्मी उसके घर से चली गई।थोड़ी देर बाद वे रूप बदल कर पुनः स्वप्न मेँ यश के रूप में आयीं और बोलीं , अरे इंसान मुझे पहचान रहे हो? वह बोला – नहीं महोदय आपको नहीँ पहचाना। यश – मैं यश हूँ , मैं ही तेरी कीर्ति और प्रसिध्दि का कारण हूँ।। लेकिन अब मैं तुम्हारे साथ नहीँ रहना चाहता क्योंकि माँ लक्ष्मी यहाँ से चली गयी हैं अतः मेरा भी यहाँ कोई काम नहीं। वह बोला - ठीक है , यदि आप भी जाना चाहते हैं तो वही सही। ”
गृहस्थ इंसान अभी भी स्वप्न में ही थे और उन्होंने देखा कि वह दरिद्र हो गए हैं और धीरे- धीरे उनके सारे रिश्तेदार व मित्र भी उनसे दूर हो गए हैं। यहाँ तक की जो लोग उनका गुणगान किया करते थे वो भी अब बुराई करने लगे हैं।कुछ और समय बीतने पर माँ लक्ष्मी धर्म का रूप धारण कर पुनः उसके स्वप्न में आयीं और बोलीं , मैँ धर्म हूँ। माँ लक्ष्मी और यश के जाने के बाद मैं भी इस दरिद्रता में तुम्हारा साथ नहीं दे सकता , मैं जा रहा हूँ। ”जैसी आपकी इच्छा , उसने उत्तर दिया। और धर्म भी वहाँ से चला गया।कुछ और समय बीत जाने पर माँ लक्ष्मी सत्य के रूप में स्वप्न में प्रकट हुईं और बोलीं , मैँ सत्य हूँ। लक्ष्मी , यश, और धर्म के जाने के बाद अब मैं भी यहाँ से जाना चाहता हूँ।
ऐसा सुन गृहस्थ ने तुरंत सत्य के पाँव पकड़ लिए और बोले , हे महाराज मैं आपको नहीँ जानेँ दूंगा। भले ही सब मेरा साथ छोड़ दें , मुझे त्याग दें पर कृपया आप ऐसा मत करिये , सत्य के बिना मैँ एक क्षण नहीं रह सकता , यदि आप चले जायेंगे तो मैं तत्काल ही अपने प्राण त्याग दूंगा।लेकिन तुमने बाकी तीनो को बड़ी आसानी से जाने दिया , उन्हें क्यों नहीं रोका। सत्य ने प्रश्न किया। गृहस्थ बोले.. मेरे लिए वे तीनो भी बहुत महत्त्व रखते हैं लेकिन उन तीनो के बिना भी मैं भगवान् के नाम का जाप करते-करते उद्देश्यपूर्ण जीवन जी सकता हूँ , परन्तु यदि आप चले गए तो मेरे जीवन में झूठ प्रवेश कर जाएगा और मेरी वाणी अशुद्ध हो जायेगी , भला ऐसी वाणी से मैं अपने भगवान् की वंदना कैसे कर सकूंगा, मैं तो किसी भी कीमत पर आपके बिना नहीं रह सकता।
गृहस्थ का उत्तर सुन सत्य प्रसन्न हो गया ,और उसने कहा , “तुम्हारी अटूट भक्ति ने मुझे यहाँ रूकने पर विवश कर दिया और अब मै यहाँ से कभी नहीं जाऊँगा और ऐसा कहते हुए सत्य अंतर्ध्यान हो गया।अभी इंसान निद्रा में हीं थे ।थोड़ी देर बाद स्वप्न में हीं धर्म,यश और धर्म की भी वापसी हो गई।सबों ने कहा कि मैं अब तुम्हारे पास ही रहूँगा क्योंकि यहाँ सत्य का निवास है। चुकी कलयुग है झूठ का काफी प्रभाव है ..उसका सहारा लेकर सांसारिक वैभव लोग प्राप्त कर लेते हैं..लेकिन अंत बहुत हीं बुरा होता है.....इसलिए हे प्रभु..झूठ बोलने से बचाइए....
कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...