Religion: जहां न भाव, वहां न भव-सागर पार, जहाँ प्रेम नहीं, वहाँ ठहरना आत्मा को करता है मलिन

Religion: तुलसीदास जी उस स्थान से, उस संगति से, उस व्यवहार से दूर रहने की प्रेरणा देते हैं जहाँ न हृदय में प्रेम है, न नेत्रों में स्नेह।....

जहां राम का नाम नहीं, वहां सांसों की गिनती भी है व्यर्थ - फोटो : Meta

Religion:"आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।तुलसी वहां न जाइए, चाहे कंचन बरसे मेह॥"

गोस्वामी तुलसीदास जी की यह दिव्य वाणी मानो आत्मा को झकझोर देती है। यहां केवल शब्द नहीं, अपितु चेतना को स्पर्श करने वाली शिक्षा निहित है। तुलसीदास जी उस स्थान से, उस संगति से, उस व्यवहार से दूर रहने की प्रेरणा देते हैं जहाँ न हृदय में प्रेम है, न नेत्रों में स्नेह।

आज का युग भले ही तकनीकी और भौतिक समृद्धि से ओतप्रोत हो, परन्तु यदि वहां भावनात्मक गहराई नहीं, आत्मीयता नहीं, तो वह सब 'बाह्य प्रदर्शन' मात्र है। जीवन की सच्ची दिशा वही है जहाँ अंतःकरण निर्मल हो, व्यवहार निष्कलुष हो, और हृदय में करुणा व भक्ति की धारा प्रवाहित गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य! जहां भाव का अभाव हो एवं कोई काम सिर्फ औपचारिकता के लिए किया जा रहा हो..जहां अहंकार,असभ्यता,काम और वासना का पहरा हो...उसको जानिए और समझीये..उससे बचिए...नहीं तो जिंदगी के जहाज का आज न कल डूबना तय है..।

बाबा तुलसीदास कहते हैं कि चाहे वहाँ सोने की वर्षा हो रही हो, पर यदि वहाँ प्रेम, संवेदना और भक्ति का वातावरण नहीं—तो वह स्थान आत्मा के पतन का कारण बन सकता है। अहंकार, वासना, औपचारिकता और स्वार्थ की दीवारें यदि खड़ी हों, तो वह संगति एक जहरीले कुहासे की भांति मनुष्य के जीवन को अंधकारमय बना देती है।

इसलिए हे जीवात्मा! विवेक से पहचानो—कहाँ आत्मा खिलती है, और कहाँ वह मुरझा जाती है। जहां राम का नाम नहीं, वहां सांसों की गिनती भी व्यर्थ है।

भाव ही भगवान है, और जहां भाव नहीं, वहां भव-सागर से पार उतरना भी कठिन है।जहां अहंकार, असभ्यता, काम और वासना का पहरा हो...उससे बचिए...आज के सामाजिक परिवेश में भी उतना ही प्रासंगिक है जितना उस युग में था।

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से.....