Religion:मन का मल न धोया तो अमृत भी विष बन जाएगा, रिश्तों में छल नहीं, सरलता ही है सच्चा धर्म , महात्मा जी का कमंडल..और स्त्री की भिक्षा...

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की महात्मा जी का कमंडल और स्त्री की भिक्षा” एक ऐसी मार्मिक कथा है जो बताती है — जब तक मन शुद्ध नहीं होगा, तब तक अमृत भी विष समान हो जाएगा, और रिश्तों में छल सबसे बड़ा अधर्म है।पढ़िए ...

जब तक मन शुद्ध न हो, तब तक प्रभु का प्रसाद भी व्यर्थ है- फोटो : Meta

Religion: मोहि कपट छल छिद्र न भावा

भगवान भी कहते हैं छल करने वाला...कपट करने वाला ...झूठ बोलने वाला मुझे बिल्कुल पसंद नहीं...आप सब कुछ कीजिए लेकिन अपने रिश्ते नाते और करीबियों से छल न कीजिए कपट न कीजिए झूठ न बोलिए....दोगली जिंदगी जीना महापाप है...फिर भी संसार में उसको लोग जारी रखते हैं...मन बहुत ही बदमाश है...बार बार वह इंसान को वासना काम क्रोध और अहंकार के दलदल में ले जाना चाहता है...

इसीलिए जब तक मन शुद्ध नहीं होगा, तब तक मुक्ति नहीं मिल सकती है। मन अगर शुद्ध हो गया तो चरित्र भी शुद्ध हो जाएगा और अगर चरित्र शुद्ध होगा तो छल कपट और झूठ बोलना भी छूट जाएगा...फिर इस लोक से लेकर परलोक तक के रास्ते सुलभ हो जाएंगे... बाल सुलभ सरलता एवं निश्छलता ही रिश्ते को बचाता है..साथ प्रभु का शरणागति भी देता है।

कर्मेन्द्रियाणि संयम्य य आस्ते मनसा स्मरन्।

इन्द्रियान्विमूढात्मा मिथ्याचारः स उच्यते ॥

कर्म और मन से इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करते हैं, वे निःसन्देह स्वयं को धोखा देते हैं

अब एक कहानी याद आ रही है - एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज लगायी, भिक्षा दे दे माते। घर से महिला बाहर आयी। उसनेउनकी झोली मे भिक्षा डाली और कहा, "महात्माजी, कोई उपदेश दीजिए!"

स्वामीजी बोले, "आज नहीं, कल दूँगा।" दूसरे दिन स्वामीजी ने पुनः उस घर के सामने आवाज दी भिक्षा दे दे माते , उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं थी, जिसमे बादाम पिस्ते भी डाले थे, वह खीर का कटोरा लेकर बाहर आयी। स्वामी जी ने अपना कमंडल आगे कर दिया।

वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ाहै। उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली, "महाराज ! यह कमंडल तो गन्दा है।"

 स्वामीजी बोले, "हाँ, गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।" स्त्री बोली, "नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब हो जायेगी । दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर लाती हूँ।"

स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़ हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न?" स्त्री ने कहा "जी महाराज !"

 स्वामीजी बोले, "मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक वासना काम अहंकार और लाभ सहित माया का कूड़ा-कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक मेरा कोई उपदेश और आशीर्वाद कुछ भी काम नहीं कर पाएगा। इसीलिए प्रथम अपने मन को शुद्ध कर लो चाहिए, कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए,रिश्ते नाते समाज के साथ छल कपट करना बंद करो...देखो चीजें खुद भी खुद सुधार जाएंगी.....माहत्मा एक नजर में हीं स्त्री के चरित्र को पहचान चुके थे।हमलोगों के साथ स्थिति ऐसी ही है...

काम इतना हीं करना है..यानी मन को शुद्ध करना है, मन अगर शुद्ध हो गया तो चरित्र भी शुद्ध हो जाएगा और अगर चरित्र शुद्ध होगा तो छल कपट और झूठ बोलना भी छूट जाएगा...फिर इस लोक से उस लोक की यात्रा भी सुलभ होगी...परिणाम हम सब लोग जानते हैं उसके बाद भी संभल नहीं पाते....श्री सीताराम कहिए...मन से लड़ाई की शुरुआत कीजिए....जीत तय है...एक एक अवगुणों पर विराम लगाने की कोशिश कीजिए....

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से...