Religion: जब वृंदावन में खीर के भंडारे में तुलसीदास हुए अपमानित, तब भाव-भक्ति ने बांकेबिहारी को रघुनाथ बना दिया

religion: वृंदावन में उपेक्षित बैठे तुलसीदास बिना पात्र के भंडारे में खीर से वंचित रहे। किंतु उनके भाव की तीव्रता ने बांकेबिहारी को रघुनाथ स्वरूप में प्रकट होने को विवश कर दिया।लीला सिद्ध कर गईजहाँ भाव शुद्ध हो, वहाँ भगवान स्वयं सेवा में आ जाते है..

जब वृंदावन में खीर के भंडारे में तुलसीदास हुए अपमानित- फोटो : Meta

Religion: तुलसीदास जी ने भगवान शंकर की आज्ञा का पालन किया और नाभा जी के भंडारे में जाने के लिए चल दिए। लेकिन थोड़ी देर हो गई। जब गोस्वामी जी वह पहुंचे तो वह संतो की बहुत भीड़ थी उनको कही बैठने की जगह नहीं मिली तो जहा संतो के जूते-चप्पल पड़े थे वो वही ही बैठ गए। अब सभी संत जान भंडारे का आनंद ले रहे थे और अपने अपने पात्र साथ लए थे जिसमे प्रशाद डलवा रहे थे। आज भी वृन्दावन की रसिक संत भंडारे में अपने-अपने पात्र लेकर जाते है। तुलसीदास जी कोई (बर्तन) नही लाये।

अब भंडारा भी था तो खीर का था क्योकि बांकेबिहारी को खीर बहुत पसंद है आज भी राजभोग में 12 महीने खीर का ही भोग लगता है, अब जो प्रसाद बाँट रहा था वो गोस्वामी जी के पास आये और कहा बाबा -तेरो पात्र कहां है बाबा। तेरो बर्तन कहा है। बर्तन हो तो कुछ जवाब दे। उसने कहा की बाबा जाओ कोई बर्तन लेकर आओ, मै किस बर्तन में तोहे खीर दूँ। इतना कह कर वह चला गया थोड़ी देर बाद फिर आया तो देखा बाबा जी वैसे ही बैठे है ,फिर उसने कह बाबा मैंने तुमसे कहा था की बर्तन ले आओ मै तोहे किस्मे खीर दूँ ?

इतना सुनते ही तुलसी दास मुस्कराने लगे और वही पास में एक संत का जूता पड़ा था वो जूता परोसने वाले के सामने कर दिया और कहा इसमें खीर डाल दो।

तो वो परोसने वाला तो क्रोधित को उठा बोला – बाबा! पागल होए गयो है का-इसमें खीर लोगे? उलटी सीधी सुनाने लगा संतो में हल चल मच गई श्री नाभा जी वहाँ दौड़े आये।तो गोस्वामी जी के आँखों में आंसू भर आये और कहा की ये जूता संत का है और वो भी वृन्दावन के रसिक संत का , और इस जूते में ब्रजरज पड़ी हुई है और ब्रजरज जब खीर के साथ अंदर जाएगी तो मेरा अंतःकरण पवित्र हो जायेगा।

जैसे ही सबने गोस्वामी जी की ये बात सुनी तो उनके चरणों पर गिर पड़े। सर्व वन्ध महान संत के ऐसे दैन्य को देखकर सब संत मंडली अवाक् रह गई सबने उठकर प्रणाम किया। उस परोसने वाले ने तो शतवार क्षमा प्रार्थना की। ऐसे है हमारे बाबा तुलसीदास जी महाराज।

अब बारी थी बांकेबिहारी के दर्शन की।बाबा तुलसीदास जी जानते थे श्री राम ही श्री कृष्ण है,और कृष्ण ही राम है। वृन्दावन में सभी भक्त जन राधे-राधे बोलते हैं । तुलसीदास जी सोचने लगे कोई तो राम-राम कहेगा। लेकिन कोई नही बोलता। जहाँ से देखो सिर्फ एक आवाज राधे राधे। श्री राधे-श्री राधे।क्या यहाँ राम जी से बैर है लोगो का। देखिये तब बाबा कितना सुन्दर गा उठते हैं उनके मुख से जो निकला-

वृन्दावन ब्रजभूमि में कहाँ राम सो बैर

राधा राधा रटत हैं आक ढ़ाक अरू खैर।

जब बाबा तुलसीदास ज्ञानगुदड़ी में विराजमान श्रीमदनमोहन जी का दर्शन कर रहे थे। श्रीनाभाजी एवं अनेक वैष्णव इनके साथ में थे।इन्होंने जब श्रीमदनमोहन जी को दण्डवत प्रणाम किया तो परशुरामदास नाम के पुजारी ने व्यंग किया-

अपने अपने इष्टको, नमन करे सब कोय।

बिना इष्ट के परशुराम नवै सो मूरख होय।।

श्रीगोस्वामीजी के मन में श्रीराम—कृष्ण में कोई भेदभाव नहीं था, परन्तु पुजारी के कटाक्ष के कारण आपने हाथ जोड़कर श्रीठाकुरजी से कहा। हे ठाकुर जी! हे राम जी! मैं जनता हूँ की आप ही राम हो आप ही कृष्ण हो लेकिन आज आपके भक्त में मन में भेद आ गया है।आपको राम बनने में कितनी देर लगेगी आप राम बन जाइये ना!

कहा कहों छवि आज की, भले बने हो नाथ।

तुलसी मस्तक नवत है, धनुष बाण लो हाथ।।

ये मन की बात बांके बिहारी जी जान गए और फिर देखिये क्या हुआ-

कित मुरली कित चन्द्रिका, कित गोपिन के साथ।

अपने जन के कारणे, कृष्ण भये रघुनाथ।।

देखिये कहाँ तो कृष्ण जी बांसुरी लेके खड़े होते है गोपियों और श्री राधा रानी के साथ लेकिन आज भक्त की पुकार पर कृष्ण जी साक्षात् रघुनाथ बन गए है। और हाथ में धनुष बाण ले लिए है। बोलिए सियावर रामचंद्र की जय।

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की कलम से.....