Bihar School: भवन का इंतजार करते हजारों स्कूल, खुले आसमान तले पढ़ाई, जर्जर दीवारों में सपनों की किरचें
Bihar School: बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत किसी अधूरे खाके जैसी है जहाँ नींव रखी तो गई, पर दीवारें अब तक खड़ी नहीं हो सकीं।...
Bihar School: बिहार के सरकारी स्कूलों की हालत किसी अधूरे खाके जैसी है जहाँ नींव रखी तो गई, पर दीवारें अब तक खड़ी नहीं हो सकीं।मुजप्फरपुर में एक हजार से अधिक स्कूलों में छात्रों की संख्या के अनुपात में कक्षाओं का अभाव है, और इस कमी का सबसे बड़ा शिकार बन रही है बच्चों की पढ़ाई।
खुले आसमान तले ‘कक्षा’
भवन के अभाव में बच्चों को कभी बरामदे में, तो कभी खुले मैदान में बैठकर पाठ पढ़ना पड़ता है। कुछ स्कूल तो मठ, वक्फ और अन्य अस्थायी भवनों में ‘मेहमान’ की तरह संचालित हो रहे हैं। शिक्षा की गुणवत्ता और बच्चों की सुरक्षा दोनों पर यह व्यवस्था गहरे सवाल खड़े कर रही है।
जर्जर दीवारों का खतरा
मुजफ्फरपुर के मीनापुर, सरैया, गायघाट, औराई, साहेबगंज समेत दर्जन भर प्रखंडों में कई स्कूल ऐसे भवनों में चल रहे हैं, जिनकी दीवारें समय की मार झेल-झेल कर थक चुकी हैं। नया निर्माण न होने के कारण बच्चों की पढ़ाई इन जर्जर दीवारों की छांव में ही जारी हैजहाँ बारिश की हर बूंद और हवा का हर झोंका खतरे का पैगाम लेकर आता है।
मुजफ्फरपुर जिले में ऐसे हजारों स्कूल हैं जो स्थापनाकाल से ही अपने भवन के इंतजार में हैं। कई तो आज़ादी से पहले खुले थे, लेकिन अब तक ज़मीन और भवन के मामले में हाथ खाली हैं। यहां छात्र न सिर्फ किताबों के पन्ने पलटते हैं, बल्कि हर दिन उम्मीद का पन्ना भी खोलते हैं कि शायद अगली बार कक्षा की छत उनके सिर पर होगी।
संख्या बढ़ी, कक्षाएं नहीं
कई स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है, पर कक्षाओं की संख्या वहीं की वहीं है। एक कमरे में इतने छात्र ठुंसे होते हैं कि शिक्षक के लिए व्यक्तिगत ध्यान देना मुश्किल हो जाता है। जब जगह कम पड़ती है, तो बरामदे या क्षतिग्रस्त हिस्सों में क्लास लगती है जहाँ सुरक्षा भगवान भरोसे होती है।
रिपोर्ट पर होगा निर्माण कार्य
अब शिक्षा विभाग ने सिविल वर्क की प्रक्रिया में बदलाव किया है। स्कूल के प्रधानाध्यापक (एचएम) की रिपोर्ट के आधार पर तय होगा कि कहाँ भवन या मरम्मत की आवश्यकता है। यह रिपोर्ट ई-शिक्षा कोष पोर्टल पर दर्ज होगी, और राज्य मुख्यालय स्तर से एजेंसी निर्माण का काम करेगी। सर्व शिक्षा अभियान के डीपीओ सुजीत कुमार दास के मुताबिक, जिन स्कूलों को भवन की दरकार है, उन्हें प्राथमिकता से भवन दिया जाएगा।
पर सवाल यह है कि जब तक रिपोर्ट से लेकर निर्माण तक की यात्रा पूरी होगी, तब तक कितने और बरसात, कितनी और धूप, और कितनी और हवाएँ इन बच्चों के कंधों पर बिना छत के बीत जाएँगी?
रिपोर्ट- मणिभूषण शर्मा