Bihar Vidhansabha Chunav 2025: दानापुर विधानसभा में हड़कंप, किडनैपिंग के बाद पार्टी ने उतारा दूसरा उम्मीदवार, नामांकन कैंसिल

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के नामांकन के आखिरी दिन दानापुर सीट की राजनीति में ऐसा मोड़ आया जिसने पूरे चुनावी परिदृश्य को चौंका दिया।

दानापुर की सियासत में अनिश्चितता और अविश्वास का दौर- फोटो : social Media

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण के नामांकन के आखिरी दिन दानापुर सीट की राजनीति में ऐसा मोड़ आया जिसने पूरे चुनावी परिदृश्य को चौंका दिया। जनसुराज के प्रत्याशी अखिलेश कुमार नामांकन से ठीक पहले अचानक गायब हो गए। सुबह मंदिर में पूजा करने निकले अखिलेश न तो कलेक्ट्रेट पहुंचे और न ही पार्टी मुख्यालय। कुछ ही घंटे में पार्टी ने दावा किया कि उनका “अपहरण” कर लिया गया है, जबकि बाद में सूत्रों से खबर आई कि उन्हें BJP की ओर से MLC का ऑफर मिला था और वे “मैदान छोड़” गए।

यह घटना बिहार की चुनावी राजनीति में बढ़ती अस्थिरता और अविश्वास को उजागर करती है। राजनीतिक वफादारी अब विचारधारा नहीं, बल्कि अवसर और स्वार्थ का गणित बनती जा रही है। जिस सीट पर BJP के रामकृपाल यादव और RJD के रीतलाल यादव जैसे दो मज़बूत उम्मीदवार पहले से आमने-सामने हैं, वहाँ जनसुराज का उम्मीदवार गायब होना तीसरे मोर्चे की नाजुक स्थिति को दर्शाता है।

जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने जिस “नए नैतिक राजनीति” के मॉडल की बात की थी, वह इस प्रकरण से कमजोर पड़ता दिख रहा है। पार्टी की तत्काल प्रतिक्रिया—आशा सिन्हा को नया प्रत्याशी बनाना—भी तकनीकी त्रुटियों के कारण विफल रही। इससे जनसुराज की संगठनात्मक तैयारी और जमीनी मजबूती पर सवाल उठे हैं।दानापुर की यह घटना यह भी दिखाती है कि बिहार की राजनीति में “आकस्मिकता” एक स्थायी चरित्र बन चुकी है जहाँ उम्मीदवार आखिरी क्षण तक बदलते हैं, पर्चे रद्द होते हैं, और नैतिकता के नाम पर सियासी सौदे होते हैं।

RJD के रीतलाल यादव, जो स्वयं जेल से नामांकन दाखिल कर चुके हैं, और BJP के रामकृपाल यादव के बीच अब सीधा मुकाबला तय है। लेकिन यह मुकाबला सिर्फ दो नेताओं का नहीं, बल्कि उस प्रश्न का भी है कि जनता किस तरह की राजनीति को स्वीकार करती है विश्वसनीयता की या अवसरवाद की?

अखिलेश कुमार का अचानक गायब होना बिहार चुनाव 2025 का सबसे प्रतीकात्मक दृश्य बन गया है जहाँ एक प्रत्याशी का लापता होना सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि राजनीति के खोते नैतिक संतुलन का प्रतीक है।