Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बेलसंड में पार्टी नहीं, उम्मीदवार का चेहरा बन रहा है फ़ैसलों की कुंजी!अंदरूनी घात, बाहरी नाराज़गी और स्थानीय प्रभाव… कौन जीतेगा ये दिलचस्प मुक़ाबला?

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: शिवहर ज़िले की बेलसंड विधानसभा में चुनावी जंग इस बार कुछ अलग है। माहौल ऐसा है जहाँ पार्टियों की पहचान पीछे छूटती दिख रही है...

बेलसंड में पार्टी नहीं, उम्मीदवार का चेहरा बन रहा है फ़ैसलों की कुंजी- फोटो : reporter

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: शिवहर ज़िले की बेलसंड विधानसभा में चुनावी जंग इस बार कुछ अलग है। माहौल ऐसा है जहाँ पार्टियों की पहचान पीछे छूटती दिख रही है और उम्मीदवार का चेहरा व स्थानीय पकड़ असली चुनावी हथियार बन चुका है। प्रचार का आज आख़िरी दिन है, नेता ताबड़तोड़ सभा कर रहे हैं, लेकिन ज़मीनी हवा बता रही है कि यहाँ वोट पार्टी के झंडे पर नहीं, बल्कि चेहरे और उसके प्रभाव पर पड़ने वाले हैं।

पहले यहाँ बाहरी भगाओ का नारा गूंजा, लेकिन जैसे ही यह आग ठंडी पड़ी, वोटरों ने नए पैमाने पर उम्मीदवारों को तौलना शुरू कर दिया। गाँवों, चौक-चौराहों, चाय की दुकानों और हाट–बाज़ारों में अब एक ही चर्चा है कि किसका चेहरा भरोसेमंद है? किसकी पकड़ मज़बूत है?

तीन बार विधायक रही सुनीता सिंह चौहान के पति राणा रणधीर सिंह चौहान इस बार बसपा टिकट से मैदान में हैं। पत्नी के 15 साल के प्रभाव और जनसंपर्क ने उन्हें क्षेत्र में भारी पहचान दी है।सलेमपुर, सुमहूति, तरियानी, नरवार बाजा इनकी पकड़ बताई जा रही है। 

जन सुराज के टिकट से मैदान में अपर्णा सिंह, जिनके पीछे इलाके के चर्चित और लोकप्रिय चेहरे नितेश सिंह महाराज की मजबूत सामाजिक पैठ है।बेलसंड में जिस तरह उनके सामाजिक कार्यों की चर्चा हो रही है, लोग कह रहे कि महाराज जी ने काम किया है, लोग उनका कर्ज़ चुका रहे हैं।

एनडीए के प्रत्याशी अमित रानू पहली बार मैदान में हैं। वे मोदी, नीतीश और चिराग के नाम पर वोट मांग रहे हैं। लेकिन चुनौती ये है कि मैदान स्थानीय चेहरों की जंग बन चुका है। यहाँ सवाल यही: है कि  क्या बड़े चेहरे स्थानीय प्रभाव को मात दे पाएंगे?

पिछली बार विधायक रहे संजय गुप्ता मैदान में हैं, पर एंटी-इनकंबेंसी का दबाव साफ़ दिख रहा है। फिर भी लालू–तेजस्वी के चेहरे पर वोटरों को साधने की कोशिश जारी है।

राजनीतिक पंडितों के अनुसार जदयू के कार्यकर्ता और पदाधिकारी बसपा उम्मीदवार के साथ खड़े हैं तो  राजद के टिकट से वंचित नेता जन सुराज उम्मीदवार की मदद में जुटे हैं यानी मुकाबला सिर्फ़ चुनावी पोस्टर पर नहीं, भीतरघात और रणनीति की बिसात पर भी लड़ा जा रहा है।बहरहाल बेलसंड में न झंडा भारी है, न पार्टी का नाम।यहाँ जनता कह रही है कि चेहरा देखेंगे, पकड़ देखेंगे, उसके बाद वोट करेंगे।एक बात पक्की है कि इस बार बेलसंड का परिणाम चौंकाने वाला हो सकता है, क्योंकि यहाँ सियासत में पार्टी नहीं, चेहरा सबसे बड़ा फैक्टर बन चुका है।

रिपोर्ट- मनोज कुमार