Bihar Vidhansabha Chunav 2025: देवरा ढ़ोरी चटना बा..... विधानसभा प्रत्याशी का गाना “हम त ढ़ोड़ी मुदले रहीं पीयरी माटी से”...भोजपुरी गाना बना सेंसेशन, सिंगरों ने गाया ऐसा गाना की सुनकर हो जाएंगे पानी-पानी
नाभी के लिए प्रयुक्त यह शब्द आज भोजपुरी गानों का प्रतीक बन चुका है।छपरा से राजद के प्रत्याशी खेसारी गाते हैं हम त ढ़ोड़ी मुदले रहीं पीयरी माटी से...कोई सिंगर ढ़ोरी को कुंआ बना देता है. ....
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: हाल ही में रिलीज़ हुए कुछ गानों ने सोशल मीडिया पर तूफ़ान मचा दिया है। ये गाने केवल मनोरंजन का साधन नहीं बने बल्कि कई बार सामाजिक संदेश देने की कोशिश भी करते नजर आए। लेकिन भोजपुरी संगीत की दुनिया में हमेशा से एक विषय चर्चा का केंद्र रहा है – ढ़ोड़ी। नाभी के लिए प्रयुक्त यह शब्द आज भोजपुरी गानों का प्रतीक बन चुका है।छपरा से राजद के प्रत्याशी खेसारी गाते हैं हम त ढ़ोड़ी मुदले रहीं पीयरी माटी से...कोई सिंगर ढ़ोरी को कुंआ बना देता है. “देवरा ढ़ोरी चटना बा” से लेकर “देवरा ढ़ोड़िए के आशिक बा” तक, ढ़ोड़ी पर गाए गए गानों ने दर्शकों के बीच अपनी खास पहचान बना ली है।
भोजपुरी गानों में ढ़ोड़ी का जिक्र केवल पारंपरिक अर्थ तक सीमित नहीं है। पावरस्टार पवन सिंह कभी ढ़ोड़ी में बियर डालते हैं, तो खेसारी लाल यादव उसे पियरी माटी से ढक देते हैं। कुछ गायक इसे तकनीक और आधुनिक जीवन शैली से जोड़ देते हैं – “ढोरी में 32 जीबी रैम बा” जैसी पंक्तियाँ युवाओं के बीच चर्चा का विषय बन जाती हैं। यहां तक कि अभिनेत्री अक्षरा सिंह गाती हैं, “भर जाता ढ़ोड़ी मोर पसीने से”, और एक गायक तो ढ़ोड़ी में दूध-भात खाने को जन्नत तक पहुँचने का माध्यम बताते हैं।
भोजपुरी गानों की यह फूहड़ता केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रहती। सार्वजनिक वाहन से लेकर मोबाइल तक, ये गाने समाज में एक अजीब असहजता पैदा करते हैं। ढ़ोड़ी का इस तरह चित्रण सुनने वालों को कभी शर्मिदा कर देता है। गायक अमित पटेल ने तो रोगों का कारण भी ढ़ोड़ी से जोड़ दिया – “सटाईं न सलेंसर ढ़ोड़ी में ध ली कैंसर” जैसी पंक्तियाँ सुनकर परिवार के साथ बैठकर भी हँसने या गुनगुनाने में लोगों को झिझक होती है।
भोजपुरी गानों में अश्लीलता केवल मनोरंजन का साधन नहीं; यह समाज पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। अक्सर महिलाओं का असहज चित्रण किया जाता है, जिससे स्त्रीद्वेषी भाषा और जातिगत वर्चस्वता की झलक मिलती है। युवा पीढ़ी इन गानों की ओर आकर्षित होती है, जो फूहड़ और उत्तेजक होते हैं, और इसका परिणाम यह होता है कि भोजपुरी संस्कृति की समृद्ध परंपरा कुछ हद तक क्षीण होती दिखाई देती है। शादी और पार्टी जैसे आयोजनों में भी “भर जाला ढ़ोड़ी मोर पसीने से” जैसे गाने बजाए जाते हैं, जो कई बार आम लोगों के लिए असहजता पैदा करते हैं।
बहरहाल भोजपुरी संगीत में ढ़ोड़ी पर आधारित गाने मनोरंजन का साधन तो हैं, परंतु इनकी अश्लीलता और समाज पर पड़ने वाला प्रभाव अनदेखा नहीं किया जा सकता। यह हमारे सांस्कृतिक परिदृश्य और सामाजिक मान्यताओं पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। मनोरंजन और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन आवश्यक है, वरना यह संगीत केवल फूहड़ता और अश्लीलता का प्रतीक बनकर रह जाएगा।
रिपोर्ट- रितिक कुमार