Bajpatti Assembly Seat: 2010 में बना नया गढ़, अब राजद के कब्जे में

बाजपट्टी विधानसभा सीट पर पहली बार 2010 में चुनाव हुआ, जहां जदयू की रंजू गीता ने जीत हासिल की। लेकिन 2020 में यह सीट राजद के मुकेश यादव के खाते में चली गई। जानिए इस सीट का पूरा चुनावी इतिहास और जातीय समीकरण।

सीतामढ़ी (बिहार): सीतामढ़ी जिले की बाजपट्टी विधानसभा सीट का सियासी सफर 2010 में शुरू हुआ, जब परिसीमन के बाद इस सीट का गठन हुआ। पहले ही चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का प्रभाव दिखा और जनता दल (यूनाइटेड) की उम्मीदवार डॉ. रंजू गीता ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2015 में भी उन्होंने सीट बचाई, लेकिन 2020 में बाजपट्टी की बागडोर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के हाथों में चली गई।

2010 के पहले चुनाव में जदयू की रंजू गीता को 44,726 वोट मिले और उन्होंने राजद के मो. अनवारूल आलम को हराया, जिन्हें 41,306 वोट मिले थे। तीसरे स्थान पर निर्दलीय रविंद्र कुमार शाही रहे। 2015 में रंजू गीता ने रालोसपा की रेखा कुमारी को 16,946 वोटों से हराकर दूसरी बार जीत हासिल की। इस बार उन्हें 67,194 वोट मिले, जबकि रेखा कुमारी को 50,248 वोट। 2020 के चुनाव में बाजपट्टी की तस्वीर बदल गई। राजद के मुकेश कुमार यादव ने डॉ. रंजू गीता को 2,704 वोटों से हराकर सीट छीन ली। मुकेश को 71,483 (40.21%) और रंजू गीता को 68,779 (38.69%) वोट मिले। यह मुकाबला कांटे का था। रालोसपा की रेखा कुमारी इस बार तीसरे स्थान पर रहीं। कुल 55.86% मतदान हुआ। डॉ. रंजू गीता को दूसरी जीत के बाद नीतीश सरकार में गन्ना उद्योग मंत्री बनने का मौका मिला था, लेकिन तीसरी बार वह सीट नहीं बचा सकीं।

बाजपट्टी में मुस्लिम और यादव मतदाता सबसे प्रभावशाली हैं, जो हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। मुस्लिम मतदाता लगभग 30.6% (97,403) हैं। इसके अलावा ब्राह्मण समुदाय की संख्या भी उल्लेखनीय है और ये भी वोट की दिशा तय करने में अहम होते हैं।

अनुसूचित जाति के मतदाता करीब 9.1% (28,966) हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति के मतदाता बेहद कम (0.02%) हैं। बाजपट्टी पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र है, जिसमें कुल ग्रामीण मतदाता लगभग 3.18 लाख हैं। बाजपट्टी की राजनीति में अभी भी जातीय समीकरण की अहम भूमिका है। 2025 का चुनाव यह तय करेगा कि क्या राजद यहां अपनी पकड़ बनाए रख पाएगा या फिर जदयू वापसी करेगी। मुस्लिम-यादव गठजोड़ और ब्राह्मण समर्थन के समीकरण को साधना किसी भी दल की जीत की कुंजी होगा।