Bihar Vidhansabha Chunav 2025: इन 52 सीटों पर टिकी बिहार की किस्मत, जहां 2020 में जीत-हार का फासला रहा बेहद कम

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: चुनावी जंग की असली बाज़ी 52 ऐसी सीटों पर सिमटती दिख रही है , जहां 2020 में जीत-हार का फासला 5 हजार वोटों से भी कम रहा था।

52 सीटों पर टिकी बिहार की किस्मत- फोटो : Hiresh Kumar

Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का बिगुल बज चुका है, और अब सूबे की सियासत पूरी रफ़्तार पकड़ चुकी है। गठबंधन की गोटियां बिछ रही हैं, और उम्मीदवारों की लिस्ट पर मंथन जारी है। मगर इस चुनावी जंग की असली बाज़ी 52 ऐसी सीटों पर सिमटती दिख रही है ,  जहां 2020 में जीत-हार का फासला 5 हजार वोटों से भी कम रहा था।इन सीटों को राजनीतिक हलकों में “फैसला करने वाली फिफ्टी-टू” कहा जा रहा है, क्योंकि यही वो रणभूमि हैं जहां कुछ सौ वोट सत्ता की गद्दी पलट सकते हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव में राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जबकि भाजपा 74 सीटों पर विजयी रही। उस वक़्त एनडीए को कुल 125 सीटें, और महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। लेकिन असली कहानी उन 52 सीटों की है, जहां वोटों की धार तलवार की नोक पर थी कभी 12 वोटों से जीत, कभी 400 से हार।

हिलसा सीट पर जदयू ने मात्र 12 वोटों से जीत हासिल की थी — जो पूरे बिहार की सबसे रोमांचक सियासी कहानी बनी। वहीं बर्बिघा में 133 वोटों का अंतर, रामगढ़ में 189 वोटों से राजद की जीत, और डेहरी में 464 वोटों से महागठबंधन की फतह — यह सब बताते हैं कि मतदाता अब इमोशन से ज़्यादा इवैल्यूएशन से वोट कर रहा है।2020 के चुनाव में इन 52 सीटों पर राजद को 15, कांग्रेस को 9, और वाम दलों को 3 सीटें मिली थीं। दूसरी ओर, एनडीए खेमे में जदयू ने 13, भाजपा ने 9, जबकि वीआईपी और हम ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की थी।

इन आंकड़ों से साफ है कि ये सीटें किसी एक दल की बपौती नहीं , बल्कि “स्विंग ज़ोन” हैं, जहां मतदाता हर बार अपना मूड बदलता है।2024 के लोकसभा चुनाव में भी यह तस्वीर दिखी। इन्हीं 52 विधानसभा क्षेत्रों में से 20 पर एनडीए को बढ़त, जबकि विपक्ष केवल 6 पर आगे रहा। उदाहरण के तौर पर, दरभंगा ग्रामीण सीट — जो 2020 में राजद की झोली में गई थी । 2024 में भाजपा 24,000 से अधिक वोटों से आगे रही। यानी मतदाता का रुख अब हर चुनाव में पल-पल बदलता है।

2025 के चुनाव में यही सीटें दोनों गठबंधनों के लिए “सियासी कुरुक्षेत्र” बन चुकी हैं। एनडीए और महागठबंधन दोनों ही इन इलाकों में प्रचार यात्राओं, रैलियों और जनसभाओं का जोरदार दांव लगाने वाले हैं।कह सकते हैं —इस बार बिहार की सत्ता की चाबी पटना में नहीं, बल्कि इन 52 सीटों की गलियों में घूम रही है।