Bihar vidhanssbha chunav 2025: नीतीश के खिलाफ बीजेपी की नई चाल! खास जाती की थाती छीनने की कवायद,कुख्यात अशोक महतो को भी न्योता..
Bihar vidhanssbha chunav 2025: बिहार की राजनीति में जाति का प्रभाव हमेशा से रहा है। चुनाव के समय यह प्रभाव और भी ज्यादा दिखाई देता है। ऐसे में कुर्मी एकता रैली का आयोजन चुनावी रणनीति का एक हिस्सा माना जा रहा है।
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Bihar vidhanssbha chunav 2025: बिहार की राजनीति में कुर्मी एकता रैली का आयोजन से आगामी विधानसभा चुनावों के संदर्भ में जातीय गोलबंदी और राजनीतिक रणनीतियों की गोलबंदी के तौर पर देखा जा सकता है। यह रैली 19 फरवरी को पटना में आयोजित की जा रही है, जिसका मुख्य उद्देश्य कुर्मी समुदाय को एकजुट करना है। इस रैली के आयोजक बीजेपी के अमनौर विधायक कृष्ण कुमार मंटू पटेल हैं, जो इस बात पर जोर दे रहे हैं कि यह रैली केवल सामाजिक एकता के लिए है, न कि किसी राजनीतिक दल के बैनर तले।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद कुर्मी जाति से आते हैं और पिछले 20 वर्षों से बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। 31 वर्ष पूर्व, नीतीश ने कुर्मी चेतना रैली का आयोजन किया था, जो उनके राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उस समय उन्होंने लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर काम किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी बनाई और सत्ता में आए। अब जब एनडीए नेता कुर्मी एकता रैली का आयोजन कर रहे हैं, तो यह सवाल उठता है कि क्या यह नीतीश कुमार की वोट बैंक में सेंधमारी करने की कोशिश है।
वहीं इस रैली का आयोजन ऐसे समय पर हो रहा है जब बिहार विधानसभा चुनाव में केवल नौ महीने बचे हैं। हाल ही में हुई चंद्रवंशी एकता रैली और तेली साहू हुंकार रैली जैसे आयोजनों से स्पष्ट होता है कि सभी राजनीतिक दल जातीय आधार पर वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। मंटू पटेल ने कहा कि इस रैली में कई अन्य जातियों के नेता भी शामिल होंगे, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बीजेपी और जेडीयू दोनों ही अपने-अपने तरीके से कुर्मी समुदाय को अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर रहे हैं।
सूत्र के अनुसार, कुख्यात अशोक महतो को भी इस रैली में आमंत्रित किया गया है। उनका नाम विवादों से जुड़ा हुआ है, लेकिन उनकी उपस्थिति इस बात का संकेत हो सकती है कि एनडीए अपनी रणनीति को मजबूत करने के लिए किसी भी तरह की सहयोगिता को अपनाने के लिए तैयार है।
बहरहाल कुर्मी एकता रैली से बिहार की राजनीति में क्या बड़े उलटफेर करकेगी देखना बाकी है। इतना तो तय है कि चुनाव से पहले जातीय आधार पर वोट बैंक को साधने की कोशिशें चल रही हैं और किस प्रकार विभिन्न दल अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए रणनीतियाँ बना रहे हैं। यदि नीतीश कुमार अपने वोट बैंक को बनाए रखने में सफल होते हैं तो आगामी चुनाव परिणामों पर इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा, इसमें कहीं कोई शक सुबहा नहीं है।