Bihar vidhan sabha monsoon session: सदन बना संग्राम, कुर्सी उछली, टेबल पलटी, मार्शलों से भिड़े विपक्षी विधायक ,लोकतंत्र शर्मिंदा!

लोकतंत्र का पवित्र मंदिर उस वक्त राजनीतिक अखाड़ा बन गया, जब विपक्षी विधायकों ने मर्यादा की तमाम सीमाएं लांघते हुए वेल में कूदकर उत्पात मचा दिया।...

Bihar vidhan sabha monsoon session
लोकतंत्र शर्मिंदा!- फोटो : social Media

Bihar vidhan sabha monsoon session:बिहार विधानमंडल के मानसून सत्र का दूसरा दिन हंगामे, उग्रता और शर्मनाक घटनाओं से इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गया। लोकतंत्र का पवित्र मंदिर उस वक्त राजनीतिक अखाड़ा बन गया, जब विपक्षी विधायकों ने मर्यादा की तमाम सीमाएं लांघते हुए वेल में कूदकर उत्पात मचा दिया।

वोटर पुनरीक्षण रोकने और कानून-व्यवस्था पर चर्चा की मांग को लेकर राजद और वाम दलों के विधायक आगबबूला हो गए। उन्होंने कुर्सियां हवा में उछालीं, टेबल पलटने की कोशिश की, और मार्शलों से धक्का-मुक्की करते हुए सत्ता पक्ष की ओर बढ़ने का प्रयास किया। कागज फाड़कर मुख्यमंत्री और स्पीकर की ओर फेंके गए, मानो लोकतंत्र के चेहरे पर कालिख पोती जा रही हो।

राजद विधायक रणविजय साहू और विजय कुमार ने रिपोर्टर टेबल पलटने की कोशिश की, जबकि विधायक सतीश दास और सुरेंद्र राम को उनके साथी तीन बार रिपोर्टर टेबल पर चढ़ाने की कोशिश करते दिखे। हर बार मार्शलों ने उन्हें रोका, लेकिन सदन की गरिमा पहले ही वेल में धंस चुकी थी।

सदन की पहली पाली सिर्फ 22 मिनट और दूसरी 30 मिनट ही चल पाई। इस हंगामे के बीच 6 विधेयक पारित कर दिए गए—बिना किसी बहस या विचार-विमर्श के, जैसे लोकतंत्र महज़ खानापूरी बनकर रह गया हो।

विधानसभा अध्यक्ष नंदकिशोर यादव ने वोटर पुनरीक्षण पर चर्चा के लिए एक शर्त रखी—पहले विपक्षी विधायक अपनी सीटों पर लौटें। लेकिन विपक्ष तो जैसे हंगामे के लिए कसम खाकर आया था। उन्होंने ना शर्त मानी, ना मर्यादा। महिला विधायकों को रोकने के लिए महिला मार्शलों की तैनाती करनी पड़ी।

सत्ता पक्ष स्तब्ध और निरीह दिखा, जबकि विपक्ष की उग्रता किसी आंदोलन की तरह नहीं, सुनियोजित अराजकता की शक्ल में सामने आई। इससे पहले कभी इतने सुनियोजित और उग्र प्रयास नहीं देखे गए कि रिपोर्टर टेबल पर चढ़ा जाए या विधानसभा की सम्पत्ति हवा में फेंकी जाए।

इस पूरे घटनाक्रम ने साबित कर दिया कि अब राजनीतिक असहमति विमर्श में नहीं, विध्वंस में तब्दील हो रही है। सवाल यह नहीं कि विपक्ष क्या चाहता है, सवाल यह है कि वह लोकतांत्रिक गरिमा की कितनी कीमत पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।