One Nation One Election...तो 2029 में एक साथ नहीं होंगे सारे चुनाव, 'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर अब आगे का रास्ता क्या है? समझिए
One Nation One Election: भारत में “वन नेशन-वन इलेक्शन” का विचार एक महत्वपूर्ण राजनीतिक मुद्दा बन गया है। यह विचार 2014 से चर्चा में है और इसके तहत लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराने की योजना बनाई गई है।

One Nation One Election: केंद्र सरकार 'एक देश एक चुनाव' के प्रस्ताव को 2029 से पहले संसद में पारित कराने का प्रयास कर रही है, लेकिन इसका कार्यान्वयन 2034 में ही संभव होगा। सरकार ने एक साथ चुनाव कराने के लिए एक रोडमैप तैयार किया है, जिसमें 2029 के बाद इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएंगे। इसमें जन जागरूकता अभियान चलाना शामिल है। सरकार ने लोकसभा और विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के लिए प्रस्तावित विधेयक को लोकसभा में पेश करने के बाद संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया है।
लोकसभा स्पीकर ने सरकार की मांग को स्वीकर किया और इस विधेयक को जेपीसी के पास भेज दिया। 21 सदस्यों की कमेटी में संबित पात्रा (BJP), बांसुरी स्वराज (BJP), पीपी चौधरी (BJP) डॉ. सीएम रमेश (BJP), परषोत्तमभाई रूपाला (BJP), अनुराग सिंह ठाकुर (BJP), विष्णु दयाल राम (BJP), भर्तृहरि महताब (BJP), डॉ. अनिल बलूनी (BJP), विष्णु दत्त शर्मा (BJP), प्रियंका गांधी वाड्रा (कांग्रेस), मनीष तिवारी (कांग्रेस), सुखदेव भगत (कांग्रेस), डॉ. श्रीकांत एकनाथ शिंदे (शिवसेना- शिंदे गुट), चंदन चौहान (RLD), बालाशोवरी वल्लभनेनी (जनसेना पार्टी),धर्मेन्द्र यादव (समाजवादी पार्टी), कल्याण बनर्जी (TMC), टीएम सेल्वागणपति (DMK), जीएम हरीश बालयोगी (TDP), सुप्रिया सुले (NCP-शरद गुट) शामिल है।
बहरहाल स्पीकर इस बात का निर्णय ले सकते हैं कि जेपीसी की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखा जाए या नहीं। यदि रिपोर्ट पटल पर रखी जाती है तो सदस्य उस पर चर्चा करने का अनुरोध कर सकते हैं। मोदी सरकार की अगली चुनौती इस विधेयक को संसद से पास कराने की होगी. चूंकि वन नेशन वन इलेक्शन से जुड़ा बिल संविधान संशोधन विधेयक है इसलिए लोकसभा और राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए विशेष बहुमत की आवश्यक्ता होगी। यानी प्रत्येक सदन में यानी कि लोकसभा और राज्यसभा में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा इस विधेयक को मंजूरी देनी होगी।स्पीकर चर्चा का समय निर्धारित कर सकते हैं.
विधेयक की स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए एक टास्क फोर्स भी सक्रिय है। सूत्रों के अनुसार, कृषि मंत्री शिवराज सिंह को 'एक देश एक चुनाव' को राजनीतिक मुद्दे के बजाय जन आंदोलन के रूप में प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी दी गई है। जन जागरूकता अभियान के लिए 17 स्लाइड्स का एक पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन भी तैयार किया गया है, जिसे जनता के बीच प्रस्तुत किया जाएगा। जागरूकता बढ़ाने के लिए आरएसएस, एनजीओ, सामाजिक संगठनों और प्रबुद्ध वर्गों को भी जिम्मेदारी सौंपी जाएगी।
यहीं नहीं ये बिल संविधान संशोधन है, इसलिए ये तभी पास होंगे, जब इन्हें संसद के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिलेगा। लोकसभा में इस बिल को पास कराने के लिए कम से कम 362 सांसदो और राज्यसभा के लिए 163 सांसदो का समर्थन जरूरी होगा। संसद से पास होने के बाद इस बिल को कम से कम 15 राज्यों की विधानसभा का अनुमोदन भी जरूरी होगा। यानी देश के 15 राज्यों की विधानसभा से भी इस बिल को पास करवाना जरूरी है। इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही ये बिल कानून बन सकेंगे।
वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अलग-अलग होता है। कुछ राज्यों के कार्यकाल को बढ़ाना पड़ेगा और कुछ को समय से पूर्व भंग करना पड़ेगा। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 82ए (लोकसभा) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानसभाएं) में संशोधन की आवश्यकता होगी।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित समिति ने इस विषय पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि यदि विधेयक संसद से पारित होता है, तो सभी विधानसभाओं के चुनाव 2034 तक निर्धारित किए जा सकते हैं। इसका मतलब यह है कि 2029 के बाद होने वाले सभी विधानसभा चुनावों को 2034 के लोकसभा चुनाव के साथ समन्वयित किया जाएगा। बहरहाल “वन नेशन-वन इलेक्शन” का सपना 2029 तक साकार नहीं हो सकेगा और इसके क्रियान्वयन की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, जो संभवतः 2034 तक जाएगी।