RSS 100th Foundation Day : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्थापना के 100 साल किये पूरे, राष्ट्र और समाज की सेवा में कई कीर्तिमान किये स्थापित

RSS 100th Foundation Day : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने स्थापन

N4N Desk : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) अपनी स्थापना के 100 साल पूरा कर चुका है। 25 सितम्बर 1925 को इसकी स्थापना नागपुर में की गयी थी। इस लंबी यात्रा में संघ ने कई चुनौतियों का सामना किया है, लेकिन इसे आम जनता का भरपूर समर्थन मिला है। शताब्दी वर्ष के इस पड़ाव पर, संघ उन सभी लोगों को याद कर रहा है जिन्होंने इसके विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

शुरुआती संघर्ष और समर्पित कार्यकर्ता

संघ की शुरुआत में युवा कार्यकर्ताओं ने देश प्रेम से प्रेरित होकर इसे राष्ट्र सेवा का जरिया बनाया। अप्पाजी जोशी जैसे गृहस्थ कार्यकर्ताओं से लेकर दादाराव परमार्थ, बालासाहब और भाऊराव देवरस, यादवराव जोशी और एकनाथ रानडे जैसे प्रचारकों ने डॉ. हेडगेवार के मार्गदर्शन में अपना जीवन संघ को समर्पित कर दिया।

समाज का लगातार समर्थन

संघ का कार्य धीरे-धीरे समाज में अपनी जगह बनाता गया। स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था कि भारतीय लोग किसी भी सात्विक कार्य को अपनी आध्यात्मिक समझ से तुरंत पहचान लेते हैं। यह बात आरएसएस के लिए सच साबित हुई। संघ को हमेशा आम परिवारों से सहयोग और आश्रय मिलता रहा है। स्वयंसेवकों के परिवार ही संघ के केंद्र बने और महिलाओं ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

विविध क्षेत्रों में संघ की प्रेरणा

दत्तोपंत ठेंगड़ी, यशवंतराव केलकर, बालासाहेब देशपांडे और दीनदयाल उपाध्याय जैसे नेताओं ने संघ की प्रेरणा से समाज के विभिन्न क्षेत्रों में संगठन खड़े किए। आज ये सभी संगठन अपने-अपने क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव ला रहे हैं। इसी तरह, राष्ट्र सेविका समिति के माध्यम से मौसी जी केलकर और प्रमिलाताई मेढ़े जैसी मातृशक्ति ने भी राष्ट्र कार्य में अहम योगदान दिया है।

राष्ट्रीय मुद्दों पर मिला व्यापक समर्थन

संघ ने समय-समय पर राष्ट्रीय हित के कई मुद्दे उठाए, जिन्हें समाज के विभिन्न वर्गों का समर्थन मिला। 1964 में विश्व हिंदू परिषद की स्थापना में स्वामी चिन्मयानंद, मास्टर तारा सिंह और कुशोक बकुला जैसे विभिन्न धर्मों के प्रमुख लोग शामिल थे। 1981 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में हुए धर्मांतरण के विरोध में आयोजित हिंदू सम्मेलन की अध्यक्षता कांग्रेस नेता डॉ. कर्णसिंह ने की थी। उडुपी में हुए विश्व हिंदू सम्मेलन में श्री गुरुजी गोलवलकर की पहल पर सभी संतों और धर्माचार्यों ने मिलकर 'न हिन्दुः पतितो भवेत्' (कोई हिंदू पतित नहीं हो सकता) का प्रस्ताव पारित किया और 'हिंदवः सोदराः सर्वे' (सभी हिंदू भाई हैं) का उद्घोष किया।

बाधाओं के बावजूद कायम रहा कार्य

आजादी के बाद और आपातकाल के दौरान जब संघ पर प्रतिबंध लगाया गया, तब भी समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने संघ का समर्थन किया। इन संकट के समय में महिलाओं ने स्वयंसेवकों और उनके परिवारों को संभाला। इन सभी चुनौतियों के बावजूद, संघ का कार्य निरंतर आगे बढ़ रहा है। शताब्दी वर्ष के मौके पर, संघ के स्वयंसेवक देशभर में घर-घर जाकर लोगों से संपर्क करेंगे। उनका लक्ष्य बड़े शहरों से लेकर दूर-दराज के गांवों और समाज के सभी वर्गों तक पहुंचना है ताकि राष्ट्र के सर्वांगीण विकास की इस यात्रा में सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो सके।