Bihar Vidhansabha Chunav 2025: दरौंदा में विकास बनाम हकीकत का संग्राम, सड़क-नाला से लेकर सियासी समीकरण तक, चुनावी रणभूमि में जनता का फैसला तय करेगा किसका भविष्य, जानिए
बिहार विधानसभा चुनाव की घंटी बजने ही वाली है। जब बात दरौंदा विधानसभा क्षेत्र की आती है तो यहां का चुनाव हमेशा से ही विकास बनाम उपेक्षा की लड़ाई के इर्द-गिर्द घूमता रहा है।
Bihar Vidhansabha Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की घंटी बजने ही वाली है। हर सीट पर उम्मीदवार सक्रिय हैं, जनता से संवाद की कोशिशें हो रही हैं और मतदाताओं के बीच मुद्दों को लेकर गरमागरम बहस चल रही है। लेकिन जब बात दरौंदा विधानसभा क्षेत्र की आती है तो यहां का चुनाव हमेशा से ही विकास बनाम उपेक्षा की लड़ाई के इर्द-गिर्द घूमता रहा है।
दरौंदा विधानसभा क्षेत्र जो दरौंदा, सिसवन और हसनपुरा के 10 ग्राम पंचायतों से मिलकर बना है अपनी पहचान अब तक ग्रामीण इलाकों की समस्याओं और आम जनमानस के मुद्दों से जोड़ता रहा है। यहां का हर चुनावी समीकरण किसानों, मजदूरों और छोटे दुकानदारों की सोच से तय होता है। यही कारण है कि इस बार भी विकास सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है, लेकिन दिलचस्प यह है कि इस “विकास” पर जनता दो ध्रुवों में बंटी नजर आ रही है।
कथित तौर पर दरौंदा में विकास की बातें सिर्फ कागजों तक सीमित हैं। हसनपुरा-दरौंदा और दरौंदा-आंदर मुख्य सड़क आज भी जर्जर हैं। बारिश के दिनों में हालात बदतर हो जाते हैं घुटने भर पानी भर जाता है, ग्राहक नहीं आते, दुकानें सूनी हो जाती हैं। उनका तंज है कि “स्वास्थ्य मंत्री के दौरे की खबर आई तो रातों-रात सड़क बन गई, वरना आज भी खड्डों से भरी होती। यही नहीं, नाला निर्माण में भी लापरवाही का मुद्दा गूंज रहा है। नाला सड़क से ऊंचा बना दिया गया है, जिससे लोगों की दिक्कतें और बढ़ गई हैं। जनता के मुताबिक यदि यही विकास है तो यह सिर्फ दिखावे का विकास है।
2020 विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार करणजीत सिंह ने भाकपा (माले) के अमरनाथ यादव को 11,320 वोटों से हराया था। आंकड़े बताते हैं कि करणजीत सिंह को 44.09 प्रतिशत और अमरनाथ यादव को 37.15 प्रतिशत मत मिले थे। उस समय कुल 3,18,460 पंजीकृत मतदाताओं में से 1,63,163 ने मतदान किया था यानी मतदान प्रतिशत 51.11 रहा।सामाजिक समीकरण की बात करें तो अनुसूचित जाति के मतदाता 11.78 प्रतिशत (37,605) और मुस्लिम मतदाता 11.70 प्रतिशत (37,349) रहे। यह आंकड़ा साफ करता है कि दरौंदा में जीत-हार का खेल बेहद करीबी होता है और कुछ हजार वोट ही परिणाम बदल देते हैं।
दरौंदा विधानसभा सीट का गठन 2010 में हुआ। पहले चुनाव में जेडीयू की जगमतो देवी ने जीत दर्ज की। इसके बाद 2011 के उपचुनाव और 2015 में उनकी बहू कविता सिंह ने लगातार जीत हासिल कर सीट पर जेडीयू का दबदबा कायम रखा। बाद में कविता सिंह सीवान लोकसभा से सांसद बनीं।2019 का उपचुनाव दरौंदा की राजनीति का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ। निर्दलीय उम्मीदवार करणजीत सिंह उर्फ व्यास सिंह ने जेडीयू उम्मीदवार अजय कुमार सिंह को बड़े अंतर से हराकर सभी को चौंका दिया। बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए और 2020 में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीत लिया। यह जीत साफ संकेत थी कि दरौंदा की जनता समय-समय पर बदलाव का संदेश देती रहती है।
इस बार भी दरौंदा का चुनावी रण विकास के मुद्दे पर ही टिका है, लेकिन जनता का मूड बंटा हुआ है। कुछ लोग विधायक के कामों की तारीफ कर रहे हैं वृद्धा पेंशन, मानदेय वृद्धि, सड़क मरम्मत जैसे कदम उनके लिए अहम हैं। वहीं बड़ी संख्या में मतदाता अब भी सड़क, नाला और बुनियादी सुविधाओं की बदहाली से खफा हैं।राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि दरौंदा में चुनावी इतिहास हमेशा से उतार-चढ़ाव भरा रहा है। यहां जनता ने कभी किसी एक दल को स्थायी तौर पर नहीं चुना। हर चुनाव में वोटर यह देखने के मूड में रहते हैं कि किसने वादे पूरे किए और किसने नहीं। यही वजह है कि 2025 का चुनाव भी यहां बेहद दिलचस्प होने वाला है।
दरौंदा की जनता अब एक बार फिर फैसला करने को तैयार है। सियासी दांव-पेच और वादों के बीच असली सवाल यही है क्या जनता को विकास का भरोसा मिलेगा या सिर्फ कागजों पर दर्ज आंकड़े? क्या इस बार भी मतदाता बदलाव का संदेश देंगे या फिर पिछले चुनाव की तरह भाजपा उम्मीदवार को दोबारा मौका देंगे? बहरहाल इसबार यह तय है कि दरौंदा विधानसभा की लड़ाई सिर्फ नेताओं के बीच नहीं है, बल्कि यह जनता की उम्मीदों और हकीकत के टकराव की लड़ाई भी है। और इस बार मतदाता विकास की असली तस्वीर देखकर ही मतदान केंद्र तक पहुंचेंगे।