Stampede In Maha Kumbh 2025: News4Nation Explainer 1954 में नेहरू के लिए महाकुंभ में मौनी अमावस्या पर मची भगदड़ में मारे थे 1000 लोग,अब तीसरी बार हुई भगदड़ में 31 लोगों की गई जान...

बुधवार को मौनी अमावस्या के अवसर पर संगम तट पर भगदड़ की घटना घटित हुई। इस हादसे में 31 श्रद्धालुओं के मारे जाने की सूचना प्राप्त हो रही है। इससे पहले मौनी अमावस्या के दिन तीन बार भगदड़ की घटना घट चुकी है।

Stampede In Maha Kumbh 2025

Stampede In Maha Kumbh 2025:  बुधवार को मौनी अमावस्या के अवसर पर संगम तट पर भगदड़ की घटना घटित हुई। इस हादसे में कई श्रद्धालुओं के मारे जाने की सूचना प्राप्त हो रही है। बचाव कार्य के तहत 40 से अधिक एंबुलेंस मरीजों को अस्पताल ले जाने में जुटी हुई हैं। सुबह साढ़े सात बजे तक 31 शव एसआरएन अस्पताल के मर्चरी में पहुंच चुके थे, लेकिन प्रशासन द्वारा मृतकों की संख्या की आधिकारिक पुष्टि अभी तक नहीं की गई है। इससे पहले मौनी अमावस्या के दिन तीन बार भगदड़ की घटना घट चुकी है।  इससे पहले वर्ष 1954 के महाकुंभ में मची भगदड़ से करीब एक हजार लोगों की मौत हो गई थी. इसी प्रकार 2013 में कुंभ स्नान कर वापस लौट रहे 36 लोगों की मौत प्रयागराज स्टेशन पर मची भगदड़ में हुई थी. कई लोगों को तो कफन तक नसीब नहीं हुआ था. लेकिन, रविवार 19 जनवरी को कुंभ के टेट में लगी आग से किसी को कोई नुकसान नहीं हुआ. इस घटना के साथ आज आपको बतायेंगे कि वर्ष 1954 और 2013 की घटना भी. लेकिन सबसे पहले रविवार की घटना की चर्चा करते हैं. 

पहली भगदड़ में मारे गए थे एक हजार लोग

नेहरू के लिए 1954 में मची थी भगदड़, 1000 लोगों की हुई थी मौत आजाद भारत का वर्ष 1954 में पहला महाकुंभ इलाहाबाद यानी अब के प्रयागराज में लगा था. इस महाकुंभ में 3 फरवरी को मौनी अमावस्या पड़ा था. इसमें स्नान करने के लिए लाखों लोग संगम पहुंचे थे. सुबह से हो रही बारिश के कारण चारों तरफ कीचड़ और फिसलन थी. हालांकि प्रशासन की ओर से महाकुंभ को लेकर बड़ी तैयारी की गई थी. संगम के करीब ही अस्थाई रेलवे स्टेशन बनाया गया था. बड़ी संख्या में टूरिस्ट गाइड अपॉइंट किए गए थे. बुलडोजर से उबड़-खाबड़ जमीनों को भी समतल की गई थीं. इसके साथ ही सड़कों पर बिछी रेलवे लाइनों के ऊपर पुल बनाए गए थे. पहली बार कुंभ में बिजली के खंभे लगाए गए थे. महकुंभ में पहली बार करीब एक हजार खंभे और  9 अस्पताल खोले गए, ताकि कोई बीमार पड़े या फिर हादसे होने पर उसका फौरन इलाज हो सके. 

 मौनी अमावस्या के दिन संगम पहुंचे थे नेहरु

वर्ष 1954 के 3 फरवरी को  मौनी अमावस्या था. इसको लेकर लाखों लोग संगम स्नान के लिए पहुंचे थे.इस बीच सुबह करीब 8-9 बजे मेले में खबर फैली कि प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू आ रहे हैं. इस खबर के बाद संगम में स्नान करने आई भीड़ पंडित नेहरू को देखने के लिए उमड़ पड़ी. भीड़ उस ओर दौडी जस तरफ नागा साधु ठहरे हुए थे. भीड़ को  अपनी तरफ भीड़ आती देख नागा साधुओं को लगा कि भीड़ उनपर हमले को आ रही है. इस कारण संन्यासी तलवार और त्रिशूल लेकर भीड़ पर हमला करने के लिए  दौड़ पड़े. भगदड़ मच गई. जो एक बार गिरा, वो फिर उठ नहीं सका. जान बचाने के लिए लोग बिजली के खंभों से चढ़कर तारों पर लटक गए. कहा जाता है कि भगदड़ में एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. यूपी सरकार इस हादसे से इंकार करती रही. उसका कहन था कि इस  हादसा में किसी की मौत नहीं हुई है, लेकिन एक फोटोग्राफर की तस्वीर ने सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया और राजनीतिक हंगामा खड़ा हो गया. पंडति नेहरू को संसद में इसपर बयान तक देना पड़ा था. इस हादसे में करीब एक हजार लोगों की मौत हुई थी.

खुद के ऊपर गंगा का पानी तक नहीं छिड़का था नेहरू

पीवी राजगोपाल इस घटना की चर्चा अपनी किताब ‘मैं नेहरू का साया था’ में करते हुए  लिखते हैं कि ‘उस रोज मौनी अमावस्या थी. लाल बहादुर शास्त्री चाहते थे कि पंडित नेहरू प्रयाग जाएं और कुंभ में स्नान करें. उन्होंने यह बात नेहरू से भी  कही. उन्होंने नेहरू से हा था कि ‘इस प्रथा का पालन लाखों लोग करते आए हैं. आपको भी करना चाहिए.’लाल बहादुर शास्त्री की बात सुनने पर नेहरू ने शास्त्री से कहा था कि - ‘मैंने तय कर लिया है कि नहाऊंगा नहीं. पहले मैं जनेऊ पहना करता था. फिर मैंने जनेऊ उतार दिया. यह सच है कि गंगा मेरे लिए बहुत मायने रखती हैं. गंगा भारत में लाखों लोगों के जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन मैं कुंभ के दौरान इसमें स्नान नहीं करूंगा.’ राजगोपाल पीवी अपनी किताब में  लिखते हैं- 'उस रोज सुबह नेहरू नाव में बैठे. उनके परिवार के लोग भी साथ थे. सभी ने संगम में डुबकी लगाई, लेकिन नेहरू ने स्नान तो दूर, खुद के ऊपर गंगा का पानी तक नहीं छिड़का था’

जब एक के बाद एक हुए थे तीन विस्फोट 

यह वाक्या वर्ष 1989 का है. प्रयागराज में महाकुंभ लगा था. शाम का वक्त था, कुंभ के संगम क्षेत्र में ‘चलो मन गंगा यमुना तीरे’ कल्चरल प्रोग्राम चल रहा था. इसी क्रम में करीब 6 बजे के आस पास बम फटने जैसी कोई  आवाज आई. सभी लोग चौंके. लेकिन,फिर प्रोग्राम देख रहे लोगों ने इसे यह सोचकर नजरअंदाज कर दिया कि शायद कोई पटाखा फटा होगा. कुछ सेकेंड बाद एक और धमाका हुआ. इस धमाके के बाद सभी  लोग चौंक गए. फौरन प्रोग्राम छोड़कर  बाहर निकल गए. लेकिन बाहर  सब कुछ सामान्य था. इस बीच एक और धमाके की आवाज से मेले क्षेत्र में भगदड़ की स्थिति उत्पन्न हो गई. जिधर से आवाज आ रही थी, सभी लोग उधर ही  बढ़ने लगे. इसी बीच  लोगों की नजर  बांग्ला भाषा में लिखे एक अखबार में विस्फोटक रखे हुए पर पड़ी. इसकी सूचना पुलिस को दी गई, पुलिस उसे  बरामद कर लिया. 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार 'प्लेटफॉर्म नंबर 6 के फुटओवर ब्रिज पर पैर रखने तक की जगह नहीं थी. इसके बाद भी स्नान करने आए लोग अपने घर जाने के लिए आगे बढ़ रहे थे. इतने में एक महिला गिर पड़ी. उसे बचाने के लिए लोगों ने भीड़ को धक्का दिया, ताकि जगह बन पाए, इसी बीच जीआरपी ने लाठी भांज दी और फिर भगदड़ मच गई. जिससे कई लोगों की मौत हो गई. इस हादसे ने सरकार और प्रशासन की व्यवस्था का पोल खोलकर रख दिया था. रेलवे अस्पतालों में हादसे के वक्त ताले लगे थे, प्लेटफॉर्म पर न तो वक्त रहते स्ट्रेचर पहुंच पाया और न ही कोई एंबुलेंस. कपड़े में बांधकर, चादर में लपेटकर अपने लोगों को लोग अस्पताल पहुंचा रहे थे.' मौत के बाद अस्पताल के बाहर मुंहमांगे दामों पर कफन बिकने लगे थे. किसी ने हजार रुपए में कफन खरीदे तो किसी को 1200 रुपए देने पड़े थे.कई लोगों को तो कफन तक नसीब नहीं हुआ था. प्रशासन की ओर से  शवों को उनके घर तक पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं कर पाया था.

दूसरी भगदड़ (2013): 2013 में भी इसी दिन भगदड़ की घटना घटी जिसमें कई लोगों की जान गई थी। उस समय भीड़ नियंत्रण के उपायों की कमी के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई थी।

तीसरी भगदड़ (2025):  29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या पर फिर से भगदड़ मच गई। इस घटना में अभी तक 31 श्रद्धालुओं की मौत होने की आशंका जताई जा रही है और कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। प्रशासन ने राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया है और घटना की जांच के आदेश दिए हैं।

कौशलेंद्र प्रियदर्शी की रिपोर्ट

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