Jharkhand assembly election 2024: हेमंत सोरेन के ऑपरेशन कोल्हान के चक्रव्यूह में फंसी बीजेपी, जानें क्या होगा नुकसान?
झारखंड विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही बीजेपी को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है—एक तरफ इंडिया गठबंधन के खिलाफ लड़ाई, और दूसरी तरफ अपने ही नेताओं के विद्रोह से निपटना।
Jharkhand assembly election 2024: झारखंड विधानसभा चुनावों के आते ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) न केवल बाहरी प्रतिद्वंद्वियों का सामना कर रही है, बल्कि उसे अपने ही पार्टी के भीतर से विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है। एक अनुशासित संगठन के रूप में पहचान रखने वाली बीजेपी को इस बार टिकट वितरण को लेकर आंतरिक असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। अब सवाल यह उठता है कि क्या बीजेपी बाहरी और आंतरिक दोनों चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर पाएगी?
आंतरिक विद्रोह: बीजेपी के नेताओं ने क्यों खोला मोर्चा?
बीजेपी के कई प्रमुख नेता पार्टी के टिकट वितरण प्रक्रिया से नाराज होकर खुलकर अपने असंतोष को जाहिर कर चुके हैं। इनमें से कुछ ने तो पार्टी ही छोड़ दी है।
सत्यानंद जा बाटुल: एक वफादार नेता से विद्रोही तक का सफर
पूर्व कृषि मंत्री सत्यानंद जा बाटुल, जो कभी बीजेपी के मजबूत नेता थे, अब पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं। उनका असंतोष इस बात से था कि उन्हें विधानसभा चुनाव के लिए टिकट नहीं मिला। बाटुल, जिन्होंने नाला विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया था, इस बात से नाराज थे कि पार्टी ने उनके स्थान पर ऐसे व्यक्ति को टिकट दिया, जो कभी पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल रहा था। उनकी नाराजगी और भी बढ़ गई क्योंकि किसी शीर्ष नेता ने उनसे इस फैसले पर कोई चर्चा नहीं की, यहां तक कि जिला अध्यक्ष ने भी टिकट के मसले पर उनसे बातचीत नहीं की।
आरएसएस से जुड़े रहे बाटुल की बीजेपी में गहरी जड़ें थीं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, बाटुल को पिछले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, इसीलिए इस बार बीजेपी नेतृत्व ने उम्मीदवार बदलने का फैसला किया। लेकिन इससे पार्टी के भीतर असंतोष और गहरा हो गया।
लुईस मरांडी: संथाल परगना में बीजेपी को झटका
बीजेपी को संथाल परगना से दूसरा बड़ा झटका तब लगा जब राज्य की पूर्व मंत्री और बीजेपी की प्रदेश उपाध्यक्ष लुईस मरांडी ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। मरांडी, जिन्होंने 24 वर्षों तक पार्टी की सेवा की, दुमका में बीजेपी का परचम लहराया, लेकिन वह इस बात से नाराज थीं कि पार्टी ने अन्य दलों से आए नए नेताओं को ज्यादा तवज्जो दी और पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं को दरकिनार कर दिया। उनका मानना था कि बीजेपी के अंदर गुटबाजी बढ़ गई है, जो दुमका जैसी महत्वपूर्ण सीट पर लगातार हार का कारण रही।
लुईस मरांडी का दुमका में गहरा प्रभाव है और उनकी विदाई बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकती है। मिली जानकारी के अनुसार, मरांडी झामुमो से जामा या दुमका सीट से उम्मीदवार हो सकती हैं। उन्होंने हाल ही में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) में शामिल होकर बीजेपी के खिलाफ अपनी नाराजगी स्पष्ट कर दी है।
ऑपरेशन कोल्हान: हेमंत सोरेन की राजनीतिक रणनीति
बीजेपी के आंतरिक संकट का फायदा उठाने में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। उन्होंने "ऑपरेशन कोल्हान" चलाकर बीजेपी के भीतर के असंतोष को अपने पक्ष में करने की रणनीति बनाई है। लुईस मरांडी के अलावा, हेमंत सोरेन ने घाटशिला के पूर्व विधायक घलक्ष्मण टुडू, बहरागोड़ा के पूर्व विधायक कुणाल षाड़ंगी, और अन्य बीजेपी नेताओं जैसे गणेश महली और बारी मुर्मू को जेएमएम में शामिल कराकर बीजेपी पर जोरदार प्रहार किया है।
हेमंत सोरेन की इस चाल से बीजेपी को न केवल झारखंड में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि पार्टी को आंतरिक विद्रोह से भी जूझना पड़ रहा है। सोरेन की इस रणनीति ने बीजेपी के चुनावी समीकरणों को हिला कर रख दिया है।
चुनावी रणनीति पर आंतरिक विद्रोह का असर
बीजेपी के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि इन नेताओं के विद्रोह से पार्टी की चुनावी रणनीति पर कितना असर पड़ेगा? अब तक बीजेपी को अनुशासन में रहने वाली पार्टी के रूप में जाना जाता था, लेकिन इस बार स्थिति जटिल दिख रही है।
डैमेज कंट्रोल की चुनौती
बीजेपी के लिए इन नेताओं के विद्रोह से निपटना आसान नहीं है। जो नेता पार्टी छोड़ रहे हैं, वे केवल नाराज कार्यकर्ता नहीं हैं, बल्कि पार्टी के महत्वपूर्ण और प्रभावशाली नेता हैं। इन नेताओं के जाने से बीजेपी के अन्य कार्यकर्ताओं में भी असंतोष की लहर पैदा हो सकती है। ऐसे में बीजेपी के लिए समय रहते डैमेज कंट्रोल करना बेहद जरूरी हो गया है।