Health News:एंटीबायोटिक दवाएं ले रहे हैं तो सावधान, दवा का बेक़ाबू इस्तेमाल बन रही साइलेंट इन्फेक्शन बम, रिपोर्ट दहला देगी
डॉक्टर्स का कहना है कि एंटीबायोटिक दवाओं का मनचाहा और बार-बार सेवन जिस तेज़ी से बढ़ रहा है, वह शरीर में एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस यानी रोगाणुरोधी प्रतिरोध को जन्म दे रहा है एक ऐसा ख़तरा, जो आने वाले कल में महामारी की शक्ल ले सकता है।..
Health News: दवाओं का असंयमित इस्तेमाल और बिना चिकित्सक की सलाह के खुद से दवा लेना आजकल एक खतरनाक चलन बनता जा रहा है। सिरदर्द, खांसी, बुख़ार और ज़ुकाम जैसी मामूली कोशिशों में लोग बेझिझक दवा खा लेते हैं, जबकि डॉक्टर्स कई दफा इसके खिलाफ आगाह कर चुके हैं। आईजीआईएमएस के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ रोहित उपाध्याय का कहना है कि एंटीबायोटिक दवाओं का मनचाहा और बार-बार सेवन जिस तेजी से बढ़ रहा है, वह शरीर में एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस यानी रोगाणुरोधी प्रतिरोध को जन्म दे रहा है एक ऐसा खतरा, जो आने वाले कल में महामारी की शक्ल ले सकता है।
रोगाणुरोधी प्रतिरोध उस वक़्त पैदा होता है जब बैक्टीरिया, फफूँद या दूसरे रोगाणु उन दवाओं के प्रति बचाव की क्षमता विकसित कर लेते हैं, जो उन्हें मिटाने के लिए दी जाती हैं। नतीजा यह होता है कि दवा असर नहीं करती और रोगाणु मरने के बजाय और फैलते रहते हैं। ऐसी हालत में मरीज का इलाज मुश्किल और कई बार नामुमकिन हो जाता है, क्योंकि दवा का हर वार बेअसर साबित होता है।
एक मेडिकल अध्ययन के मुताबिक़ मुल्क में 83 फ़ीसदी मरीज ऐसे बहु-दवा प्रतिरोधी जीवाणु लेकर अस्पताल पहुँच रहे हैं। दुनिया में यह सबसे ऊँचा आंकड़ा भारत का है है। भारत, इटली, अमरीका और नीदरलैंड के हजार से ज्यादा मरीजों पर किए गए तुलनात्मक अध्ययन में पाया गया कि भारत का यह ग्रा इन तमाम मुल्कों से कई गुना ज्यादा है। भारत में 70.2 फीसदी मरीज़ों में ईएसबीएल पैदा करने वाले जीव और 23.5 फीसदी में कार्बापेनम-प्रतिरोधी कीटाणु पाए गए, जिन पर आख़िरी लाइन की दवाएं भी असर नहीं करतीं। इसका मतलब यह है कि मामूली संक्रमण भी अब इलाज से बाहर निकलने लगा है और आम दवाएं नाफ़े-मंद नहीं रहीं।
खतरा सिर्फ़ अस्पतालों तक सीमित नहीं। यह अब समाज-स्तरीय महामारी बन चुका है। बिना नुस्खे दवा मिल जाना, वायरल बीमारी में भी जीवाणुरोधी दवा खा लेना, दवा का कोर्स बीच में छोड़ देना, खेतों में दवाओं का बेतहाशा उपयोग, गंदा पानी और ग़ैर-क़ाबिल-ए-भरोसा सफ़ाई व्यवस्था ये सारी वजहें मिलकर एक ऐसे सुपर-बग संकट को जन्म दे रही हैं जो लाखों ज़िंदगियों को दांव पर लगा सकता है।
आईजीआईएमएस के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. रोहित उपाध्याय बताते हैं कि भारत में हर साल तकरीबन 58 हज़ार नवजात एंटीबायोटिक रेज़िस्टेंस के चलते जान गंवा देते हैं। यह मर्ज़ आईसीयू, कैंसर, किडनी और कमजोर प्रतिरक्षा वाले मरीजों के लिए और भी घातक रूप ले लेता है। साधारण ऑपरेशन तक खतरे से भर जाता है, क्योंकि अगर संक्रमण को काबू करने वाली दवा ही काम न करे, तो हालात बेकाबू हो जाते हैं।
डॉ. रोहित ने सावधान किया कि अगर तुरंत कदम न उठाए गए तो भारत बहुत जल्द एंटीबायोटिक के बाद के युग में दाख़िल हो सकता है, वह दौर जहाँ साधारण न्यूमोनिया, मूत्र-मार्ग संक्रमण या मामूली बुख़ार भी जानलेवा बन सकता है। उनका कहना है कि बिना पर्ची दवा बिकने पर सख़्त पाबंदी जरूरी है। बीमारी वायरल हो तो दवा से परहेज़, डॉक्टर द्वारा बताई गई पूरी दवा-खुराक चलाना, और सफ़ाई-सुथराई पर पूरा ध्यान रखना अब इलाज़ नहीं बल्कि मजबूरी है।
डॉ रोहित के अनुसार भारत के पास अब वक़्त बहुत कम है। अगर आज समझदारी और सतर्कता नहीं दिखाई गई, तो 2030 तक रोगाणुरोधी प्रतिरोध देश में मौत का सबसे बड़ा कारण बन सकता है। यह एक ख़ामोश लेकिन बेहद खतरनाक महामारी है एक ऐसा संकट जिसका इलाज अभी हमारे हाथ में है।