बिहार की पहली राजनीतिक हत्या की कहानी, जब बीच सड़क पर बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष को मार दी गई थी गोली

Patna: 28 मार्च 1947, अंधेरे को चीरते हुए पटना फतुहा रोड पर एक गाड़ी फर्राटे से पटना की तरफ भागी जा रही थी. फतुहा में ही सड़क के बीचोबीच खड़े एक पुलिस दल ने गाड़ी को हाथ दिखाकर रोका. गाड़ी की पिछली सीट पर बैठते हुए दुबले पतले खद्दरधारी सज्जन ने तनिक झल्लाते हुए पूछा- क्या बात है ?, जबाव आया- यह पुलिस का तस्कर विरोधी दस्ता है. हमलोग आपकी गाड़ी की तलाशी लेंगे. सशस्त्र पुलिस जमात ने ठंडे स्वर में कहा. कार में बैठे नेता ने कहा- अजीब बात है. आपलोग शायद गलतफहमी के शिकार हो गए हैं मेरा नाम प्रो अब्दुल बारी है. मैं बिहार प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष हूं.

आगे अब्दुल बारी ने कहा देखिए मैं थोड़ी जल्दी में हूं क्योंकि महात्मा गांधी पटना आ रहे हैं. उनकी अगवानी के लिए ही मैं हजारीबाग से अभी आ रहा हूं. कृप्या आपलोग मेरा समय नष्ट नहीं करें. खुद को पुलिस कहने वाले ने कहा वह सब हम नहीं जानते हैं आपके गाड़ी की तलाशी ली जाएगी. रात के बढ़ते जा रहे अंधेरे में जिरह तेज होती गई और आखिरकार उस सशस्त्र पुलिस जमात ने प्रो अब्दुल बारी को गाड़ी से खींचकर गोली मार दी. अब्दुल बारी ने वहीं दम तोड़ दिया. उन दिनों बिहार में कांग्रेस की ही अंतरिम सरकार थी. पर अपनी ही पार्टी के अंतरिम शासन में कांग्रेस अध्यक्ष की हत्या हो गई थी. आजादी के बाद 1948 में पटना के एडिशनल सेशन जज राय साहेब पी के नाग की अदालत में अब्दुल बारी हत्याकांड का मामला कुछ समय तक चल कर समाप्त हो गया.

आजादी की लड़ाई के अग्रणी सेनानी और बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष प्रो अब्दुल बारी की याद शायद ही अब आम लोगों को हो. समय की मोटी परत में दफ्न हो चुकी अब्दुल बारी की हत्या बिहार की पहली राजनीतिक हत्या मानी जाती है. बिहार के पुराने शाहाबाद जिले के कोइलवर गांव में जन्मे प्रो अब्दुल बारी को जब 1930 में महात्मा गांधी के आह्वान पर नमक सत्याग्रह के दौरान गोरे घुड़सवारों ने घोड़ों की टाप से रौंदा था तो उनता हौसला घटने के बजाए दुगुना हो गया था. 1934 में वे कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के अध्यक्ष बने थे. 1937 में वे बिहार विधानसभा के उपसभापति भी हुए थे.

अब्दुल बारी सरीखे दिग्गज नेता से पुलिस के तस्कर विरोधी दस्ते को भला क्या साबका पड़ा था. यह सवाल संपूर्ण बिहार को उस समय बेचैन कर दिया था. यों बाद में पुलिस ने क्षमा याचना की थी कि धोखे में उनपर गोली चली थी. उन दिनों कांग्रस के नेताओं तक का कहना था कि अब्दुल बारी राजनीतिक हत्या के शिकार हुए थे, क्योंकि उनकी लोकप्रियता ने बिहार के कई वरिष्ठ नेताओं के राजनीतिक अस्तित्व पर खतरनाक दस्तक देना शुरू कर दिया था. कुछ लोग यह भी कहते हैं कि अब्दुल बारी जल्दी गुस्से में आ जाते थे. सो फतुहा पुलिस ने जब उन्हें रोका तो उन्हें ये बात नागवार गुजरी, लिहाजा वे हत्थे से उखड़ गए थे. आवेश में पुलिस वाले भी आ गए और उन्हें गोली मार दी, पर इस तर्क में बहुत दम नहीं था क्योंकि अब्दुल बारी जैसे व्यक्तित्व को सिर्फ बिहार ही नहीं पूरा देश जानता था.


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