बहुमत न आने पर सत्ता हथियाने का भाजपा का बड़ा हथियार है ‘ऑपरेशन लोटस’, मोदी सरकार आने के बाद 7 राज्यों चला दांव, अब महाराष्ट्र पर निशाना

DESK. महाराष्ट्र में मचे सियासी घमासान के बीच एक बार फिर से ऑपरेशन लोटस की चर्चा जोरों पर हैं. ऑपरेशन लोटस भाजपा के लिए एक कोडवर्ड के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिसमें भाजपा सत्तारूढ़ सरकारों को अपदस्थ कर बैक डोर से सत्ता हथियाती है. यानी पूर्ण बहुमत न होने के बाद विरोधी दलों को तोड़कर अपनी सरकार बनाना. भाजपा इस खेल को पिछले कुछ साल में कई बार दोहरा चुकी है. खासकर केंद्र में वर्ष 2014 में भाजपा सरकार बनने के बाद कई राज्यों में ऑपरेशन लोटस देखने को मिला. पिछले 6 साल में भाजपा पर 7 राज्यों में ऑपरेशन लोटस चलाने का आरोप लगा जिसमें 4 राज्यों में भाजपा सत्तासीन होने में सफल रही. अब कुछ उसी तर्ज पर महाराष्ट्र में सियासी पारा गर्म है. 

वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद पहली बार ऑपरेशन लोटस देखने को मिला वर्ष 2016 में उत्तराखंड में. उत्तराखंड में 2012 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा रही. 70 सीटों वाले उत्तराखंड विधानसभा में कांग्रेस 32 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी. कांग्रेस ने 4 निर्दलियों की मदद से बहुमत का आंकड़ा 36 पा लिया. वहीं भाजपा को 31 सीटें मिलीं. ऐसे में BJP इस हार को पचा नहीं पाई. केदारनाथ हादसा के बाद कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को हटाकर 2014 में हरीश रावत को सीएम बनाया. यहीं से भाजपा ने कांग्रेस के नाराज बहुगुणा गुट को अपने पक्ष में किया. 18 मार्च 2016 को बहुगुणा समेत कांग्रेस के 9 विधायक बागी हो गए लेकिन उत्तराखंड के स्पीकर ने जब कांग्रेस के 9 बागियों को अयोग्य घोषित कर दिया तो केंद्र सरकार ने उसी दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बागी विधायकों को शक्ति परीक्षण से दूर कर दिया गया. 11 मई 2016 को बहुमत परीक्षण में रावत की जीत हुई. इस तरह सुप्रीम कोर्ट के दखल के कारण ऑपरेशन लोटस सफल नहीं हुआ. 

वर्ष 2016 में भाजपा ने एक बार फिर से अरुणाचल प्रदेश में ऑपरेशन लोटस चलाया. यहां कांग्रेस की पूर्ण बहुमत वाली सरकार के 46 में ले 42 विधायक पीपीए में शामिल हो गए. कहा गया कि यह भाजपा की ही रणनीति थी क्योंकि भाजपा ने बाद में पीपीए के साथ मिलकर सरकार बना ली. केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद यह ऑपरेशन लोटस को मिली पहली बड़ी सफलता थी. 

फरवरी 2017 में फिर गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें आई जबकि भाजपा को 13 सीट. लेकिन अचानक से भाजपा ने  रातो रात सभी छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में किया जिससे मनोहर पर्रिकर ने 21 विधायकों के समर्थन से भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हो गए. 

20 मार्च 2020 को मध्य प्रदेश की सियासत में बड़ा फेरबदल हुआ. दिग्गज कांग्रेसी नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी थी, जबकि उनके साथ उनके समर्थक 22 विधायकों ने भी अपनी विधायकी से इस्तीफा दे दिया. इस कारण कमलनाथ सरकार अल्पमत में आई और कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. बाद में एमपी में शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी. 

ऑपरेशन लोटस को चौथी बड़ी सफलता मिली कर्नाटक में. कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस की गठबंधन सरकार में 8 विधायकों ने इस्तीफा दिया. गठबंधन सरकार गिर गई. फिर विधायकों ने बीजेपी से उपचुनाव लड़ा. कर्नाटक में कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली 434 दिन चली जेडीएस-कांग्रेस सरकार को गिराकर वहां बीजेपी की सरकार बन गयी और सत्ता की कमान बीएस येदियुरप्पा ने संभाली. उस दौरान कर्नाटक विधानसभा में कई घंटो तक पक्ष और विपक्ष के बीच तीखी नोकझोंक हुई थी. 

वहीं 2018 में भाजपा ने राजस्थान की अशोक गहलोत नीत कांग्रेस सरकार को भी अपदस्थ करने की बड़ी कोशिश की. हालांकि कांग्रेस ने समय रहते अपने विधायकों पर शिकंजा कसा और सरकार बचाने में सफलता पाई. अब एक बार फिर से ऑपरेशन लोटस का नया अध्याय महाराष्ट्र में देखने को मिल रहा है. यहां शिवसेना के बागियों ने भाजपा शासित असम में डेरा जमाए रखा है. 

वहीं ऑपरेशन कमल का पहला मामला देश ने वर्ष 2004 में देखा. तब कर्नाटक में बीजेपी ने कर्नाटक में धरम सिंह की सरकार गिराने की कोशिश की थी. विपक्ष ने ही इसे ऑपरेशन लोटस का नाम दिया था. उसके बाद से जब जब भाजपा ने किसी राज्य में सत्तारूढ़ होने के लिए चालबाजी की तब तब इसे ऑपरेशन लोटस नाम दिया.