आईआईटियन की नगरी में तैयार होती है पितरों के मोक्ष के निमित दान और अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, 4 से 5 करोड़ का होता है कारोबार

GAYA :. बिहार के गया में मानपुर पटवा टोली को आईआईटियन की नगरी के नाम से जाना जाता है. लेकिन इसके साथ ही आईआईटियन की इस नगरी में वस्त्रों का बड़ा व्यापार है और हजारों पावरलूम- हैंडलूम यहां संचालित हैं. इन्हीं पावरलूम हैंडलूम में इन दिनों खट-खट की आवाज दिन-रात गूंज रही है. 

दरअसल गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष पक्ष मेले के शुरू होने में अब कुछ ही दिन का समय रह गया है. ऐसे में यहां आने वाले लाखों पिंडदानियां के लिए पटवा टोली में दिन रात गम गमछे, अंटी चादर, बेडशीट आदि का निर्माण किया जा रहा है. यहां हर साल पिंडदानियों की भीड़ को देखते हुए गमछे आदि वस्त्र बनाए जाते हैं, जो कि पितृपक्ष 2023 के लिए भी बनाए जा रहे है.

पितृपक्ष मेले को देखते हुए मानपुर के पटवा टोली में दिन -रात गमछे आदि वस्त्रों का निर्माण कार्य हो रहा है. गया जी में पितृपक्ष मेला अब शुरू होने में चंद दिनों का समय रह गया है. यहां पितृपक्ष मेले में हर साल लाखों पिंडदानी पहुंचते हैं. उनके लिए पिंडदान के निमित्त वस्त्रों की पूर्ति का काम मानपुर के पटवा टोली से ही होता है. पितरों के निमित्त वस्त्र अर्पित करने से लेकर पुरोहित पंडा को दान करने का विधान है. पितरों को अर्पित और दान के वस्त्र के रूप में गमछा का पिंडदानी खरीददारी करते हैं. यह वस्त्र मानपुर के पटवा टोली से ही बनकर बाजारों में उपलब्ध होते हैं. 

बता दें कि देश के कई धार्मिक स्थलों के लिए भी मानपुर के पटवा टोली में ही डिमांड के अनुसार कपड़ों का निर्माण होता है. इसी में एक गया जी का पितृपक्ष मेला भी शामिल है, जहां पिंडदान के कर्मकांड में निमित वस्त्र पटवाटोली के बने होते हैं.

इस तरह गया के पटवा टोली में पितृपक्ष मेले को लेकर लाखों गमछे का निर्माण हो चुका है. वहीं, अंटी चादर भी बनाए जा रहे हैं. पितृपक्ष मेले में तकरीबन 10 लाख तीर्थयात्री गया जी को पहुंचते हैं. ऐसे में एक मुश्त एक पखवाड़े में पहुंचने वाले 10 लाख तीर्थ यात्रियों के लिए मानपुर के पटवाटोली में वस्त्र का निर्माण कार्य दिन-रात अभी चल रहा है. तकरीबन 4 से 5 करोड रुपए का कारोबार पितृपक्ष वाले महीने में हो जाता है.

देश विदेश से आते है तीर्थयात्री

इस संबंध में बुनकर युवराज पटवा बताते हैं, कि पितृपक्ष में अंतर्राष्ट्रीय मेला के रूप में हमारे सामने होता है, क्योंकि यहां देश के अलावा विदेशों से भी तीर्थयात्री पहुंचते हैं. यहां पिंडदान कर्मकांड में वस्त्र दान का विधिवत विधान है. एक वस्त्र पुरोहित पंडा तो एक वस्त्र अपने पितर को पिंडदानी अर्पित करते हैं. यहां उत्पादित गमछा को पिंडदानी प्रसाद मानते हैं. 

बुनकरों का कहना है कि पितृपक्ष मेला 28 सितंबर से शुरू होने जा रहा है और हम लोगों के द्वारा अभी से ही गमछे आदि बनाने का काम किया जा रहा है, जो कि पिंडदानियों को मुहैया कराने के मकसद से हो रहा है. अब तक लाखों गमछे आदि बन चुके हैं. पितृपक्ष के दौरान करोड़ों का कारोबार हो जाता है, जो कि हमारे व्यवसाय की मंदी को भी दूर कर देता है.

कोरोना काल की मंदी से निकले बाहर

वहीं, इस संबंध में पटवा समाज के अध्यक्ष गोपाल पटवा बताते हैं, कि कोरोना कल में कम यात्री आने के कारण हम लोगों का बिजनेस चौपट हो गया था. किंतु अब हाल के दिनों में मंदी दूर हुई है. पिछले वर्ष लाखों यात्री गया जी पहुंचे थे. इस वर्ष भी लाखों यात्री पहुंचेंगे. तीर्थयात्री पिंडदान के कर्मकांड में वस्त्र का उपयोग करते हैं. पितरों के निमित्त और दान स्वरूप भी वस्त्र का उपयोग किया जाता है, तो ऐसे में हमारे पटवा टोली में फिलहाल में हजारों पावरलूम में दिन रात गमछे अंटी चादर आदि बनाए जा रहे हैं। पितृ पक्ष में इतना सेल होता है, कि हम डिमांड पूरी नहीं कर पाते हैं. यहां से बने वस्त्र जगन्नाथ पुरी भी जाते हैं. 5 लाख से अधिक वस्त्र अतिरिक्त तौर पर बिक्री हो जाते हैं. चार करोड़ का कारोबार पितृपक्ष मेले में हो जाता है। 

गौरतलब हो, कि मानपुर पटवा टोली को आईआईटियन की नगरी भी कहा जाता है. यहां खासियत यह है, कि यहां बुनकरों के दर्जनों बच्चे लगातार इंजीनियर बन रहे हैं. पटवा टोली के बच्चों ने पावरलूम के खट-खट की आवाज के बीच यह सफलता पाई है. यही वजह है कि आज यहां के बच्चे भारत ही नहीं बल्कि 18 देश में अपना परचम लहरा रहे हैं. हालांकि इसके बीच उनके परिवार का पुशतैनी धंंधा जारी है.