पूर्वी चंपारण संसदीय सीट: राधा मोहन सिंह को लगाना है जीत का चौका, सातवीं बार संसद सदस्य बनने की राह में जातीय गोलबंदी की बाधा

पूर्वी चंपारण संसदीय सीट: राधा मोहन सिंह को लगाना है जीत का चौका, सातवीं बार संसद सदस्य बनने की राह में जातीय गोलबंदी की बाधा

पटना. छह बार के लोकसभा सदस्य राधा मोहन सिंह पूर्वी चंपारण संसदीय सीट से जीत का चौका लगाने के लिए चुनाव मैदान में पसीना बहा रहे हैं. 74 वर्षीय राधा मोहन सिंह भाजपा के उन नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने पहली बार 1989 में बिहार में कमल खिलाया था. तब वे मोतिहारी से लोकसभा का चुनाव जीते थे. वहीं 2008 के परिसीमन के बाद पूर्वी चंपारण बना तो 2009 से राधा मोहन लगातार यहाँ से सांसद हैं. राजपूत जाति से आने वाले राधा मोहन सिंह के वोटों का मजबूत जनाधार भी सवर्ण मतदाता ही माने जाते हैं. ऐसे में एक बार फिर से इस वर्ग के बड़े मतदाता वर्ग को अपनी ओर गोलबंद करने के लिए राधा मोहन जमकर मशक्कत कर रहे हैं. 

वहीं वहीं महागठबंधन से वीआईपी के राजेश कुशवाहा उम्मीदवार हैं. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजद सुप्रीमो लालू यादव ने एक खास रणनीति के तहत वीआईपी को यह सीट दी. साथ ही राजेश कुशवाहा को उम्मीदवार बनाकर मुकाबले को संघर्षपूर्ण कर दिया गया.  पूर्वी चंपारण में यादव और मुस्लिम (एम वाई) समीकरण मजबूत है. वहीं कुशवाहा और मल्लाह की बड़ी आबादी है. ऐसे में राजेश कुशवाहा के नाम पर इन चारों प्रमुख वोट वाले वर्ग यादव, मुस्लिम, मल्लाह और कुशवाहा को एकजुट कर महागठबंधन यहां बड़ी चुनौती देने की तैयारी में है.

जातीय समीकरण को देखें तो यहाँ करीब ढाई लाख वोट भूमिहारों के हैं. राजपूतों का वोट लगभग 1 लाख 65 हजार है. चार लाख के करीब वैश्य मतदाता भी हैं.कुशवाहों का वोट करीब सवा दो लाख है. इसी तरह यादव, मुस्लिम मतदाता भी समान अनुपात में डेढ़ लाख से ज्यादा हैं. मल्लाहों की अलग अलग उपजातियां और दलित वर्ग के मतदाता भी यहाँ प्रभावशाली हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में राधा मोहन सिंह ने 2 लाख 93 हजार 648 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी. इस बार उनके लिए फिर से तमाम वर्गों को पीएम मोदी के नाम पर गोलबंद करने की बड़ी पहल की गई है. इतना ही नहीं चुनाव में राधा मोहन के समर्थक यह कहकर भी वोट मांग रहे हैं कि अगर सातवीं बार राधा मोहन को जिताते हैं तो यह उनकी आदर्श विदाई हो सकती है. 

दूसरी ओर वीआईपी के राजेश कुशवाहा के लिए एक बड़ी चुनौती स्थानीय नेताओं से सामंजस्य की कमी को माना जा रहा है. कई ऐसे नेता थे जो टिकट को लेकर आस लगाये थे. इन सबके बीच अचानक से राजेश कुशवाहा को उम्मदीवार बना देने से कई नेताओं को निराशा हाथ लगी. ऐसे तमाम नेताओं को मनाकर अपने लिए माहौल बनाने की कड़ी मशक्कत राजेश को करनी पड़ी. साथ ही राधा मोहन सिंह के 15 वर्षों का हिसाब किताब मांगकर भी वे मतदाताओं को अपने लिए वोट करने की अपील कर रहे हैं. 

इन तमाम स्थितियों में राधा मोहन अपने काम को गिनाते हुए गंडक नदी पुल परियोजना को गिनाते हैं जिससे उत्तर बिहार और यूपी में सीधा सम्पर्क स्थापित हुआ है. वहीं एनएच 27 एए के चार लेन सड़क में उन्नयन भी प्रमुख उपलब्धी बताई जा रही है. पीएम मोदी ने पूर्वी और पश्चिम चंपारण जिलों में सिटी गैस वितरण परियोजना की शुरुआत की थी. वहीं नेपाल तक सड़कों का निर्माण और अमृत भारत में बेतिया रेलवे स्टेशन को शामिल करना और मोतिहारी में एलपीजी बोटलिंग प्लान परियोजना भी बड़ी उपलब्धी रही. इन सबसे अलग पूर्वी और पश्चिम चंपारण जिलों सहित वाल्मीकिनगर तक कई रेल परियोजना को साकार करना राधा मोहन सिंह अपने कार्यकाल के खास काम में गिनाते हैं.

25 मई को अब मतदाता यह तय करेंगे कि राधा मोहन सिंह जीत काचौका और सातवीं बार लोकसभा सदस्य बनने का सफर पूरा करने में सफल रहते हैं. वहीं राजेश कुशवाहा के नाम पर ओबीसी और दलित सहित मुस्लिम को साधने की जो कोशिश महा गठबंधन ने की है उसकी भी बड़ी अग्नि परीक्षा है. 

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