स्वतंत्रता और बिहार : महात्मा गांधी ही नहीं चंपारण की भूमि पर आए थे भगत सिंह, उनकी शहादत का बदला भी बिहार के लाल ने लिया था

पटना. आजादी के स्वतंत्रता संग्राम में बिहार की अग्रणी भूमिका रही थी. यहां तक कि तब के क्रांतिकारी आदोलन कई वीर सेनानी बिहार से जुड़े रहे और इसमें भगत सिंह भी ऐसे वीर थे जो उस दौर में बिहार आए. भगत सिंह ही उसी चंपारण में आए थे जहाँ महात्मा गांधी आए. उन्होंने बिहार से ही एक ऐसी योजना बनाई जिससे अंग्रेजी हुकूमत के होश उड़ गए थे. 

दरअसल, स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में हथियार खरीदने के लिए पैसा एकत्रित करने के लिए भगत सिंह वर्ष 1929 में मुजफ्फरपुर आये थे. पहले यहीं डाका डालने की योजना बनी, लेकिन दो दिन रुकने के बाद वे चंपारण चले गये. भगत सिंह के मित्र केदार मणि शुक्ल उनको चंपारण लेकर आये थे. यहां क्रांतिकारी कमलनाथ तिवारी सहित अन्य क्रांतिकारी मौजूद थे. भगत सिंह उदयपुर जंगल में वेश बदलकर करीब दो सप्ताह तक ठहरे थे. केदार मणि शुक्ल के घर से उनके लिए खाना बन कर जाता था. कहा जाता है कि उस दौर में बिहार के कई क्रातिकारियों से उनके सम्पर्क रहे. विशेषकर बिहार से हथियार लेकर देश के अलग अलग हिस्सों में ले जाने के लिए उन्होंने यहां खास योजना बनाई. हालांकि उस दौर में जब अंग्रेजी हुकुमत को इसकी जानकारी मिली तब उनके कई साथियों पर इसके खिलाफ कार्रवाई हुई. 

बिहार से भगत सिंह के जुड़ाव की महत्ता ऐसे ही समझी जा सकती है कि भगत सिंह की शहादत का बदला भी बिहार के लाल ने ही लिया था. इनका नाम था बैकुठ शुक्ल. बैकुंठ शुक्ल का जन्म 15 मई, 1907 को पुराने मुजफ्फरपुर के लालगंज थानांतर्गत जलालपुर गांव में हुआ था. उनके पिता राम बिहारी शुक्ल किसान थे. बैकुंठ शुक्ल ने1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय सहयोग दिया और पटना के कैंप जेल गए. जेल प्रवास के दौरान वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के संपर्क में आए और क्रांतिकारी बने. अंग्रेजी हुकूमत के दबाव में रेवोल्यूशनरी पार्टी के ही सदस्य फणींद्र नाथ घोष सरकारी गवाह बने. जिसके कारण 1931 में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को लाहौर षडयंत्र कांड में फांसी की सजा हुई. विश्वासघात की सजा देने का बीड़ा बैकुंठ शुक्ल ने उठाया और 9 नवंबर 1932 को घोष को मारकर इसे पूरा किया.

बैकुंठ शुक्ल का विवाह 1927 में हुआ और उनकी पत्नी का मिजाज और हौसला भी वही था जो बैकुंठ शुक्ल का. दोनों के कोई संतान नहीं हुए. दोनों ने अपना जीवन भारत माता को समर्पित कर दिया था. आजादी ही उनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था. कहा जाता है कि गांधी जी से मिलने के बाद ये खुलकर स्वतंत्रता की लड़ाई में कूद गए थे. दोनों पति-पत्नी आंदोलनों में हिस्सा लेने लगे. जब चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और योगेंद्र शुक्ल बिहार आए तो बेतिया के जंगल में छिपकर अभ्यास करते थे. इनके साथ बैकुंठ शुक्ल भी जुड़े. असेंबली बम विस्फोट मामले में जब सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरू को फांसी की सजा मिली तो एक आक्रोश शुक्ल के अंदर पनप चुका था.

बैकुंठ शुक्ल को दी गयी फांसी : तीनों की फांसी एक गद्दार के बयान पर तय हुई थी. फणींद्र बोस तब बेतिया में ही छिपा था. बताया जाता है कि क्रांतिकारियों ने उसे खत्म करने का ठान लिया था. इसका जिम्मा बैकुंठ शुक्ल को ही दिया गया. सरकारी संरक्षण मिलने के बाद भी फनींद्र बोस को शुक्ल ने मौत के घाट उतार दिया था. मौके पर से बरामद सामग्री से इस हत्या में शुक्ल का हाथ पाया गया. जिसके बाद बैकुंठ शुक्ल को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था. 14 मई 1934 को गया केंद्रीय जेल में बैकुंठ शुक्ल को फांसी की सजा हुई.