जानें 38 पार्टियों के समर्थन के साथ चुनाव लड़ने की तैयारी कर एनडीए की कैसे हुई थी स्थापना, किन दलों का मिला था पहला साथ

PATNA : इस साल मई माह में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने अपने गठन रजत जयंती पूरी कर चुका है. एनडीए गठबंधन के गठन की रजत जयंती के लगभग दो महीने बाद और आगामी लोकसभा चुनाव के करीब एक वर्ष पूर्व दिल्ली में भाजपा के नेतृत्व में एक बार फिर अपने सहयोगियों के साथ चुनाव पूर्व रणनीति को धार देने के लिए यह गठबंधन जुटा है. दरअसल एनडीए भारतीय जनता पार्टी के साथ वैचारिक मेल रखने वाले राजनीतिक दलों का एक बड़ा समूह है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने दावा किया कि इस बैठक में 38 सहयोगी दलों के नेता शामिल होंगे.

बहरहाल, एनडीए की शुरुआत 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी और तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 16 दलों के साथ मिलकर की थी. गठन से लेकर आज तक एनडीए कई बड़े- छोटे ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी रहा है. इस दौरान इससे कई नए दल जुड़े तो कई पुराने दल अब साथ छोड़ चुके हैं. अपने गठन के साथ एनडीए ने अब तक का पाना सफर किनके साथ और कैसे तय किया है यह जानना दिलचस्प होगा.

वर्ष 1998 की बात है. तब देश में लोकसभा चुनाव होने थे और इसकी तैयारियां भी जोरशोर चल रही थी. चुनाव को लेकर कांग्रेस ने अपनी कमर कस रखी थी और उधर विपक्षी खेमा अलग- थलग पड़ा था. तब कांग्रेस के विजय रथ को रोकने की और विपक्षी दलों को एकजुट करने की जिम्मेदारी अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने उठाई. अपने अथक प्रयासों से 16 दलों को एकसाथ एक मंच पर लेकर आने में वो सफल रहे. इनमें कुछ दल छोटे थे तो कई बड़े.

ममता और नवीन पटनायक भी थे साथ

भाजपा के अलावा तब एनडीए में पश्चिम बंगाल से नई- नई बनी तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु और पुडुचेरी से एआईएडीएमके, बिहार और यूपी से समता पार्टी, महाराष्ट्र से शिवसेना, ओडिशा से बीजू जनता दल, कर्नाटक और नगालैंड से लोक शक्ति, पंजाब से शिरोमणि अकाली दल, तमिलनाडु से पीएमके, जनता पार्टी, एमडीएमके, हरियाणा से हरियाणा विकास पार्टी, आंध्र प्रदेश से एनटीआर तेलुगु देशम पार्टी (एलपी), पंजाब और बिहार से जनता दल, मणिपुर से मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी, सिक्किम से सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट का साथ मिला था. इसके अलावा भाजपा समर्थित चार निर्दलीय सांसद भी इसमें शामिल थे.

चुनाव में मिली 261 सीटें

तब कुल 16 पार्टियों ने एकसाथ मिलकर चुनाव लड़े और एनडीए के खाते में 261 सीटें आ गईं. भाजपा के उत्थान के लिए यह ऐतिहासिक दिन था क्योंकि भाजपा ने सबसे ज्यादा 182 सीटें जीती थीं. पार्टी ने सरकार बना ली, लेकिन ये ज्यादा दिन तक नहीं चली और 17 अप्रैल, 1999 को एआईएडीएमके ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार गिर गई. हालांकि, बाद में फिर से बाजपेयी ने सरकार बनाने में सफलता हासिल कर ली और 2004 तक वह देश के प्रधानमंत्री रहे. तब लालकृष्ण आडवाणी उपप्रधानमंत्री थे.

जार्ज फर्नांडिस बने एनडीए के संयोजक

वर्ष 1998 में जब एनडीए का गठन हुआ तो उसकी अगुआई अटल बिहारी बाजपेयी ने खुद की और साल 2004 तक वह इस जिम्मेदारी को निभाते रहे और जार्ज फर्नांडीस एनडीए के पहले संयोजक रहे. इसके बाद लाल कृष्ण आडवाणी 2004 से 2014 तक एनडीए के अध्यक्ष रहे. वर्ष 2014 से अब तक एनडीए के चेयरमैन गृहमंत्री अमित शाह हैं.

बदलते गए साथी

वर्ष 2013 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो 23 पार्टियां एनडीए में शामिल थीं. इसमें भाजपा के साथ- साथ तेलुगु देशम पार्टी, शिवसेना, डीएमडीके, अकाली दल, पीएमके, मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, अपना दल, हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल), स्वाभिमानी पक्ष, इंदिया जननायगा काची, पुठिया निधि काची, कोंगुनाडु मक्कल देसिया काची, अखिल भारतीय एनआर कांग्रेस, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए), राष्ट्रीय समाज पक्ष, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (बोल्शेविक), केरल कांग्रेस (राष्ट्रवादी), नेशनल पीपुल्स पार्टी, नागा पीपुल्स फ्रंट और मिजो नेशनल फ्रंट साथ थे. आम चुनाव में भाजपा ने अकेले 282 सीटें जीती थीं, जबकि एनडीए ने कुल 336 सीटों पर जीत हासिल की और नरेंद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने.

वहीं वर्ष 2019 में एनडीए के साथ 22 अलग- अलग राजनीतिक दल थे. इनमें से 13 के उम्मीदवारों ने चुनाव में जीत हासिल की थी. सबसे ज्यादा भाजपा के 303 सांसद चुने गए. शिवसेना के 18, जेडीयू के 16, लोक जनशक्ति पार्टी  के छह, अपना दल (एस) के दो और अकाली दल के दो सांसद चुने गए थे. तब अकाली दल भी एनडीए में शामिल थी. इसके अलावा अन्य सात दलों के एक- एक सांसद चुने गए थे. कुल 354 सीटों पर एनडीए उम्मीदवारों को शानदार जीत मिली थी.

आज 38 विभिन्न दलों के साथ तीसरी सफल पारी खेलने के लिए भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए अपनी रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए जुट गयी है. वर्ष 2014 के बाद एक अभेद्य किले के रूप में उभरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता में आज भी कोई कमी नहीं आई है. अब देखना है कि विपक्षी एकता मुहीम मोदी लहर को रोकने में कितनी कामयाब होती है या फिर एनडीए का विजय पताका यूं लहराता रहेगा.