देख लीजिए पांडे जी ! बिहार में हेल्थ सिस्टम की फिर खुली पोल, ठेला पर मृतक का शव ले जाने को मजबूर हुए परिजन
NALANDA: बिहार के स्वास्थ्य विभाग की एक बार फिर पोल खुल गई है। नालंदा के सदर अस्पताल में आए दिन लापरवाही देखने को मिल रही है। इसका खामियाजा यहां आने वाले रोगी और उनके परिजनों को भुगतना पड़ता है। इतना ही नहीं शव को भी ठेला या कंधा पर उठाकर ले जाना पड़ता है। एक ऐसा ही मामला सामने आया। जहां करंट से अंबेर मोहल्ला में आटा चक्की मिल मालिक की मौत हो गयी थी।
शव को पोस्टमार्टम के बाद परिजन ठेला से घर ले गए। जबकि, अस्पताल में पांच शव वाहन मौजूद हैं। इनमें से सांसद मद से मिली तीन शव वाहन महीनों से धूल फांक रही है। इसे कोई देखने वाला नहीं है। मृतक नगर थाना क्षेत्र के निवासी संजू साव के परिजन संजय कुमार ने बताया कि रात में यहां आकर पोस्टमार्टम करवाना जंग जितने जैसी बात है। न तो कर्मी सुनते हैं न अधिकारी। शाम को ही पोस्टमार्टम के लिए पहुंचने के बाद रात 10 बजे सारी कार्रवाई की गयी। कोई भी कर्मी यह बताने को तैयार नहीं था कि शव को कैसे ले जाएं।
एम्बुलेंस कहां से मिलेगी। न तो वहां एंबुलेंस कर्मियों का नंबर ही उपलब्ध कराया गया है, ताकि उनसे संपर्क साधकर मदद ली जा सके। देर रात होने के कारण जब शव वाहन नहीं मिला तो मजबूर होकर ठेला से ही घर पहुंचे। सीएस डॉ. जितेंद्र कुमार सिंह ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए जांच का आदेश दिया है। उन्होंने कहा कि जितना सम्मान जीवित इंसान का है, उससे अधिक मृत व्यक्ति का है।
अस्पताल से ठेला या गोद में शव ले जाना अमानवीय कृत्य है। लोग दुख की घड़ी में ही यहां आते हैं। यदि उनके साथ इस तरह का व्यवहार होगा तो काफी निंदनीय है। जांच में जो भी दोषी होंगे, उनपर सख्त कार्रवाई की जाएगी। ड्यूटी पर तैनात सभी कर्मियों की जवाबदेही तय है। चाहे वह गार्ड हो या फिर डॉक्टर। गार्ड व कर्मी के रहते परिजन किस हालात में शव को इस तरह ले गए, इसकी जांच करायी जा रही है।
नालंदा से राज की रिपोर्ट