पंडरवाड़ा सामूहिक कब्र खोदने का मामला : तीस्ता सीतलवाड़ को हाई कोर्ट से राहत मिलने की कम है उम्मीद
अहमदाबाद: सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को गुजरात हाईकोर्ट से किसी तरह की राहत मिलने की कम ही उम्मीद है। गुजरात हाईकोर्ट ने सोमवार को संकेत दिया कि तीस्ता सीतलवाड़ के रिकॉर्ड को देखते हुए वह पंडरवाड़ा सामूहिक कब्र खुदाई मामले में कोई राहत देने के मूड में नहीं है। दरअसल गोधरा हिंसा के बाद दिसंबर 2005 में पंचमहल जिले के पंडरवाड़ा के पास एक सामूहिक दफन स्थल से कब्र खोदने और 28 शवों को निकालने के मामले में सीतलवाड़ पर केस दर्ज । 2011 में दर्ज एफआईआर में अपना नाम शामिल होने के बाद सीतलवाड ने 2017 में अदालत में एक याचिका दायर की थी। 2006 में गुजरात पुलिस ने झूठे सबूत बनाने, सबूत नष्ट करने, कब्रगाह पर अतिक्रमण करने और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में तीस्ता सीतलवाड़ के खिलाफ केस दर्ज किया था। सोमवार को जब मामला सुनवाई के लिए आया, तो जस्टिस संदीप भट्ट ने सीतलवाड़ के वकील योगेश रवानी से कहा कि रिकॉर्ड देखने के बाद, मैं इच्छुक नहीं हूं। आपको (अदालत को) संतुष्ट करना होगा।
वकील ने कहा कि यह आधिपत्य का विशेषाधिकार है। हम अदालत को समझाने की कोशिश करेंगे क्योंकि कोई अपराध नहीं बनता है। आखिरकार यह राजनीतिक उत्पीड़न है। इस पर जज ने जवाब दिया कि यह आजकल इस्तेमाल किया जाने वाला एक बहुत व्यापक शब्द है। मामले की सुनवाई 9 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी गई।
लूनावाड़ा नगर पालिका ने सीतलवाड़ के एनजीओ सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस के पूर्व कोऑर्डिनेटर रईस खान सहित सात लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी। दंगा पीड़ितों के इन आरोपों के बाद कि उनके रिश्तेदारों को शव परीक्षण की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना दफनाया गया था। हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच का आदेश दिया।
लूनावाड़ा सामूहिक कब्र खोदने का मामला 27 दिसम्बर 2005 की एक घटना से संबंधित है। इसमें छह लोगों ने सीजेपी के तत्कालीन समन्वयक रईस खान पठान के नेतृत्व में गुजरात के पंचमहल जिले में लूनावाड़ा में पनाम नदी की तलछटी में 28 अज्ञात शवों को कब्र से खोदकर निकाला था. बाद में कब्र खोदने वालों ने दावा किया कि वे शव पंधरवाड़ा नरसंहार के लापता पीड़ितों के थे और वे उनके रिश्तेदार थे।बाद में शवों की पहचान के लिए उनकी डीएनए जांच कराई गई और उसके बाद शवों को इस्लामिक परंपरा के अनुसार बाकायदा दफन किया गया. उस समय पठान ने कहा था कि उन्होंने सीतलवाड़ के कहने पर कब्रें खोदी थीं।
राज्य सरकार ने दावा किया कि उस स्थान को कब्रिस्तान के रूप में उचित रूप से अधिसूचित करने के बाद ही दफन किया गया था। खान और सीतलवाड़ के अलग होने के बाद सीतलवाड़ का नाम खान के बयान के आधार पर शामिल किया गया था। खान ने बताया था कि शवों को निकालने का काम उनके आदेश पर हुआ था।बता दें सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगा मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और अन्य लोगों को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा क्लीन चिट दिए जाने को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी थी। सीतलवाड़ के एनजीओ ने जकिया जाफरी की कानूनी लड़ाई के दौरान उनका समर्थन किया था। तीस्ता सीतलवाड़ लंबे समय से गुजरात दंगों के बाद कानूनी मुहिम और अपने एनजीओ को लेकर चर्चा और विवादों में रही हैं। तीस्ता सीतलवाड़ के विदेशी कनेक्शन का खुलासा उनके पूर्व सहयोगी रईस खान पठान ने अदालत में जमा अपने हलफनामा में किया था।
2002 गुजरात दंगों में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले 18 साल से विषपान करते रहे। उन्होंने कहा कि आज जब अंत में सत्य सोने की तरह चमकता हुआ आ रहा है, तो अब आनंद आ रहा है। अमित शाह ने कहा, मैंने मोदी जी को नजदीक से इस दर्द को झेलते हुए देखा है। न्यायिक प्रक्रिया चल रही थी तो सब कुछ सत्य होने के बावजूद भी हम कुछ नहीं बोलेंगे। बहुत मजबूत मन का आदमी ही ये स्टैंड ले सकता है। मोदी और बीजेपी के खिलाफ करीब दो दशक से दुष्प्रचार चल रहा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपों को खारिज किया है। आप कह सकते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने ये सिद्ध कर दिया है कि सभी आरोप राजनीतिक रूप से प्रेरित थे।