Pandit Deendayal Upadhyay : पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत का था बिहार कनेक्शन, मुगलसराय में मिले शव का मोकामा में हुआ था खुलासा, अटल-मोदी सरकार भी नहीं सुलझा पाई गुत्थी

Pandit Deendayal Upadhyay : पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत का था बिहार कनेक्शन, मुगलसराय में मिले शव का मोकामा में हुआ था खुलासा, अटल-मोदी सरकार भी नहीं सुलझा पाई गुत्थी

Bihar News : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में लगातार तीसरी बार भाजपा की सरकार बनी है. इसके पहले वर्ष 1998 से 2004 तक भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी भी देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. लेकिन भाजपा के दो -दो प्रधानमंत्री होने के बाद भी आज तक उस नेता की मौत का रहस्य अनसुलझा ही है जिसकी बुनियाद पर भाजपा आज एक वट वृक्ष की भांति बन चुकी है. वह नेता रहे भाजपा के बीजारोपण के पहले देश में दक्षिणपंथी विचारधारा को सशक्त करने और विस्तार देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय. 25 सितम्बर को हर वर्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती मनाई जाती है. लेकिन जनसंघ के सिद्धांतों को देश में विस्तार देने वाले पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत 55 वर्ष पहले कैसे हुई, आज तक यह रहस्य बना हुआ है. 


संयोग से पंडित दीनदयाल उपाध्याय का शव जिस दिन 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय के पास रेलवे ट्रैक पर मिला था उस दिन वे ट्रेन से पटना ही आ रहे थे. उनकी मौत का बिहार कनेक्शन आज भी बड़ा सवाल लिए हैं. यहां तक कि जिस ट्रेन से पंडित दीनदयाल उपाध्याय पटना आ रहे थे उस ट्रेन के पटना आने के बाद भी यहां उनके स्वागत में आए लोगों को पता ही नहीं चला कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत हो चुकी है. उनकी मौत का खुलासा तो ट्रेन जब पटना से करीब 100 किलोमीटर पूरब मोकामा पहुंची तब जाकर हुआ कि कुछ अनहोनी हो चुकी है. 


दरअसल, 11 फरवरी, 1968 को उस समय त्रासदी हुई जब पंडित दीन दयाल उपाध्याय उत्तर प्रदेश के मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाए गए. 11 फरवरी, 1968 को मुगलसराय रेलवे स्टेशन के पास पंडित दीन दयाल उपाध्याय का शव मिलने से अटकलों और साज़िशों की लहर दौड़ गई. उनकी जेब से प्रथम श्रेणी का टिकट नं 04348, रिजर्वेशन रसीद नं 47506 और 26 रुपये बरामद हुए. हालांकि जिस ट्रेन दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस से वे पटना आ रहे थे वह ट्रेन जब पटना पहुंची तब भी किसी को यह पता नहीं चला कि पंडित दीन दयाल उपाध्याय की मौत हो चुकी है. पटना में जो लोग उनके स्वागत में आए थे वह तो ट्रेन में उन्हें नहीं देखकर परेशान थे कि आखिर हुआ क्या ?


वहीं ट्रेन पटना से आगे बढ़ी ओर सुबह करीब 9.30 बजे दिल्ली-हावड़ा एक्सप्रेस मोकामा रेलवे स्टेशन पहुंची. यहां गाड़ी की प्रथम श्रेणी बोगी में चढ़े एक यात्री ने सीट के नीचे एक लावारिस सूटकेस देखा. यह वही सीट थी जिसका रिजर्वेशन पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर पटना तक था. पटना से मोकामा तक यह सीट खाली थी जबकि मोकामा से दूसरे यात्री का रिजर्वेशन था. तो जैसे ही मोकामा में वह यात्री चढ़े उन्होंने लावारिस सूटकेस देखा. उस यात्री ने रेलवे कर्मचारियों को लावारिस सूटकेस सौंपा और उसके बाद तो मानो भूचाल आ गया. 


जैसे ही उन्होंने सूटकेस का निरीक्षण किया, उन्हें कई निजी सामान मिले जो उसके मालिक की पहचान का संकेत देते थे. वहाँ करीने से मोड़े हुए कपड़े, हस्तलिखित नोट्स से भरी एक घिसी-पिटी डायरी और यहाँ तक कि एक गर्म मुस्कान वाले एक बुजुर्ग व्यक्ति की तस्वीर भी थी. साफ़ था कि यह सूटकेस किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का था. पता चला कि सूटकेस पंडित दीन दयाल उपाध्याय का था जिनके इंतजार में लोग पटना में खड़े थे. 


बाद में वर्षों की जांच के बाद भी यह रहस्य बना ही रहा कि आखिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत कैसे हुई? क्या वे ट्रेन से गिर गए थे? क्या किसी लूटपाट करने वाले का शिकार बन गए? क्या पटना आने के दौरान किसी साजिश की भेंट चढ़ गए? यह राज आज भी कई बड़े सवाल छोड़े हए है. संयोग से जिस मुगलसराय स्टेशन के पास रेलवे ट्रैक पर उनका शव मिला था उस रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर अब मुगलसराय से पंडित दीनदयाल उपाध्याय कर दिया गया है. लेकिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु के आसपास की परिस्थितियों ने ऐसे प्रश्न खड़े किये जो आज भी विद्यमान हैं. क्या यह एक दुखद दुर्घटना थी, या इसमें कोई साजिश थी? और इसका बिहार कनेक्शन तो नहीं था ? सवाल 55 वर्ष बाद भी सवाल ही रह गए हैं.  

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