बिहटा के सीताराम आश्रम में स्वामी सहजानंद से मिलने आते थे सुभाष चंद्र बोस

PATNA : भारत के स्वाधीनता
संग्राम के दे केंद्र थे। एक महात्मा गांधी के नेतृत्व वाला साबरमती आश्रम और
दूसरा स्वामी सहजांनाद सरस्वती के नेतृत्व वाला सीताराम आश्रम। इन्हीं वजहों से
सोवियत संघ में हिंदुस्तान के दो ही नेताओं को तरजीह दी जाती थी। पहले महात्मा
गांधी दूसरे स्वामी सहजांनाद सरस्वती। सोवियत संघ के बुद्धिजीवियों का मानना था कि
महात्मा गांधी के बाद सहजानन्द सरस्वती ही थे जिन्होंने भारतीय समाज को बुनियादी
रूप से बदलने का गंभीर प्रयास किया।
स्वामी जी से मिलने बिहटा आते थे सुभाष चंद्र बोस
बिहाटा स्थित सीताराम आश्रम, 1927 में गठित ' पटना पश्चिमी
किसान सभा' , 1929 में बिहार
प्रांतीय किसान सभा और 1936 में अखिल भारतीय
किसान सभा का कार्यालय था। सीताराम आश्रम लगभग आठ वर्षों तक, 1936 से 1944 तक किसान सभा के
अखिल भारतीय संगठन का प्रधान कार्यालय था।
सीताराम आश्रम में
स्वामी सहजानन्द सरस्वती से मिलने 1939-40 के आसपास सुभाष चन्द्र बोस का आना जाना होता
था। यहीं पर 1940 के महत्वपूर्ण
संझौताविरोधी संघर्ष की रूपरेखा बनी।
अमेरिकी प्रोफेसर ने किया है स्वामी जी पर रिसर्च
सीताराम आश्रम में आज भी स्वामी सहजानन्द सरस्वती से जुड़ी
बहुमूल्य सामग्री संरक्षित है। उन दस्तावेज़ों पर अभी काम होना बाकी है। इसी
सीताराम आश्रम में आकर अमरीकी प्रोफेसर वाल्टर हाउज़र ने 1957 से ही स्वामी
सहजानांद सरस्वती पर काम करना शुरू किया। वे लगातार सीताराम आश्रम आते जाते रहे।
पिछले वर्षों में पटना के चर्चित चिकित्सक डॉ सत्यजीत सिंह
सीताराम आश्रम के सचिव बने। उनके बाद सीताराम आश्रम में हलचल दिखाई देने लगी। पटना कालेज के पूर्व प्राचार्य नवल
किशोर चौधरी भी सीताराम आश्रम, बिहटा के सदस्य हैं। बिहार के प्रख्यात रंगकर्मी अनीश अंकुर
का सद्प्रयास भी सीताराम आश्रम के बुनियाद को आबाद कर रहा है।
सीताराम आश्रम के जीर्णोद्धार का कार्य प्रगति पर है। इसके
अलावा स्वामी जी के आश्रम को उसके मूल स्वरूप में अक्षुण्ण बनाये रखने का प्रयास
किया जा रहा है। ये पूरा काम एन. आई.टी के पेशेवर इंजीनियरों की देख रेख में
सम्पन्न किया जा रहा है।
अमेरिका से आये दस्तावेजों का संरक्षण जरूरी
डॉ सत्यजीत ने कैलाश चंद्र झा के महवत्पूर्ण सहयोग से
अमेरिका से स्वामी जी से दुर्लभ दस्तावेज़ों को वापस मंगवाने में सफल हो गए हैं।
इसी उपलक्ष्य में बिहार के नागरिक समाज के सामने वो सभी दस्तावेज सीताराम आश्रम, बिहटा को सौंपे जाएंगे। इन दस्तावेज़ों का डिजिटाइजेशन और
संरक्षण करना बहुत बड़ी चुनौती है। राज्य
सरकार को सीताराम आश्रम का स्वामी सहजानंद सरस्वती से जुड़े दस्तावजों को भावी
पीढ़ियों को बचाने के किये सहयोग करना होगा।
बिहटा और उसके आसपास का इलाका निरंतर विकसित हो रहा है। नए
नए उद्योग धंधे और शिक्षण संस्थान खुल रहे हैं। सीताराम आश्रम, बिहटा जो आज़ादी
के आंदोलन का बिहार में एक प्रमुख केंद्र था फिर से नई भूमिका निभाने को प्रयासरत
है।