Thawe Durga Temple तीन सौ साल से जाग्रत पीठ थावे भवानी मंदिर में नवरात्रि के नौ दिन होती है विशेष पूजा-अर्चना, पूरी होती है श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं
Thawe Durga Temple: तीन सौ साल पूर्व स्थापित थावे दुर्गा मंदिर प्राचीन जागृत शक्तिपीठों में से एक है. शारदीय नवरात्र में यहां की भक्तों की भारी बीड़ लगती है. गोपालगंज के थावे दुर्गा मंदिर दो तरफ से जंगलों से घिरा है और इस मंदिर का गर्भगृह काफी प्राचीन है. नवरात्र में यहां नेपाल, उत्तर प्रदेश, बिहार के कई जिले से श्रद्धालु पूजा-अर्चना एवं दर्शन करने आते हैं.यहां शारदीय नवरात्र में पूजा करने का विशेष महत्व है. नवरात्रि के नौ दिनों में यहां विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. नवरात्र में यहां खास मेला भी लगाया जाता है.
मां थावे दुर्गा मंदिर में शारदीय नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम रूप मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना भक्ति और श्रद्धा के साथ की गई. सुबह से ही मां के दर्शन के लिए मंदिर परिसर में भक्तों की लंबी कतार लगी रही. महिला और पुरुष दर्शनार्थी मंदिर परिसर में खड़े होकर मां के जयकारे के साथ अपनी बारी का इंतजार करते देखे गए.
इस दौरान मंदिर परिसर से लेकर गर्भगृह तक लगाए गए सीसीटीवी कैमरों से पदाधिकारी मंदिर परिसर की व्यवस्था पर नजर बनाए हुए हैं. थावे मंदिर और आसपास के इलाके में शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए पुलिस पदाधिकारी से लेकर दंडाधिकारी तक मंदिर परिसर में गश्त लगाते दिखे. महिला श्रद्धालुओं को किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़े, इसके लिए महिला पुलिस भी तैनात रही. वहीं कई ऐसे श्रद्धालु गर्भगृह के बाहर से ही दर्शन और पूजन कर रहे हैं.
इतिहास और स्थानीय लोगों के अनुसार चेरो वंश के राजा मनन सिंह खुद को मां दुर्गा का बड़ा भक्त मानते थे, अचानक राज्य में अकाल पड़ा. थावे में मां भवानी के एक भक्त रहषु अकाल में भी बाघ से दौनी करने पर चावल निकलने रहे थे यह बात राजा तक पहुंची. राजा मनन सिंह मानने को तैयार न थे. भक्त रहषु को राजदरबार में बुलाया गया. राजा ने रहषु से कहा कि मां को यहां बुलाओ. इस पर रहषु ने राजा से कहा कि यदि मां यहां आईं तो राज्य नष्ट हो जाएगा . राजा मनन सिंह नहीं माने. माई के भक्त रहषु भगत के आह्वान पर मां भवानी, जगद्जननी मां कामाख्या से चलकर पटना और सारण के आमी होते हुए गोपालगंज के थावे पहुंची. राजा को केवल माई के कंगन का दर्शन हुआ और इसके साथ हीं राजा काल कवलित हो गए. राजा के सभी भवन एकएक कर गिर गए. राज्य नष्ट हो गया.
नवरात्र में अष्टमी को यहां बलि का विधान है, जिसे हथुआ राजपरिवार की ओर से संपन्न कराया जाता है. यह स्थान हथुआराज के ही अधीन था. मंदिर की पूरी देखरेख पहले हथुआराज प्रशासन द्वारा ही की जाती थी .
रिपोर्ट- मन्नान अहमद