सर्वाधिक गरीबी से जूझते अररिया में राजद के एमवाई पर भाजपा कितनी मजबूत, बागी बिगाड़ रहे दिग्गज का गणित
पटना. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (2015-16) रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार की 51.91 फीसदी आबादी गरीब है. किशनगंज बिहार का सबसे गरीब जिला है, जहां की 64.75 फीसदी आबादी गरीब है. वहीं, अररिया में (64.65 प्रतिशत) गरीब हैं. अररिया में 7 मई को लोकसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे. लेकिन, सीमांचल के इस सबसे गरीब लोकसभा क्षेत्र अररिया में वहां की गरीबी से ज्यादा लोकसभा चुनाव जातीय समीकरणों और भावनात्क मुद्दों पर केन्द्रित है. उद्योगविहीन इलाका, पलायन की मजबूरी, खेती में घाटा सहित हर साल आने वाली बाढ़ से अररिया का बड़ा इलाका उजाड़ सा प्रतीत होता है. ऐसे में यह बिडम्बना ही है कि इन मुद्दों से ज्यादा अररिया में जातीय-धार्मिक समीकरण चुनाव में हावी हैं.
वोटों के गणित के हिसाब से देखें तो अररिया में छह विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. इसमें अररिया (कांग्रेस), नरपतगंज (भाजपा), फारबिसगंज (भाजपा) रानीगंज (जद-यू), जोकीहाट (राजद/एआईएमआईएम) और सिकटी (भाजपा) के पास है. यानी चार सीटों पर एनडीए के विधायक हैं. वर्तमान में अररिया का प्रतिनिधित्व भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह कर रहे हैं, जो इस बार भी बीजेपी के उम्मीदवार हैं. उनका मुकाबला शाहनवाज आलम से होगा, जिन्हें विपक्षी दल इंडिया गुट के घटक राजद ने मैदान में उतारा है. एक दौर में कांग्रेस का गढ़ रहा अररिया 1998 के बाद से भाजपा और राजद के बीच सियासी मुकाबले के केंद्र में बदल गया. 2019 के आम चुनाव में भाजपा के प्रदीप ने राजद के सरफराज आलम को 1.37 लाख वोटों से हराया था.
अररिया में लगभग सभी चुनावों में निर्णायक भूमिका मुस्लिम-यादव का संयोजन से रहा है। यहां कुल मिलाकर, मुस्लिम और यादव मतदाताओं का लगभग 59 प्रतिशत हिस्सा हैं। लेकिन, अगर जमीनी स्तर पर देखा जाए तो पिछले चुनाव में यादव बड़ी संख्या में भाजपा को वोट देने के लिए तैयार हुए जिसका नजीता प्रदीप की जीत रही. इस बार भी भाजपा अपने प्रचार में इस मुद्दे पर जोर दे रही है कि अररिया के मतदाता राष्ट्रीय मुद्दे को ध्यान में रखकर वोट दें. साथ ही लालू-राबड़ी राज के 15 साल के शासन को याद दिलाते एनडीए यह भी कहती है कि सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने अररिया में असामाजिक या आपराधिक तत्वों के डर के बिना घूमने की अनुमति दी है.
राजद ने इस बार अररिया से एक जुआ खेला है, और सरफराज आलम को टिकट देने से इनकार कर दिया है, जिनके 2014, 2018 और 2019 की तरह ही मैदान में उतरने की उम्मीद थी। उनकी जगह उनके छोटे भाई शाहनवाज आलम को टिकट मिला है। सरफराज और शाहनवाज दोनों राजद के कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन के बेटे हैं। हालाँकि, उनकी मृत्यु के बाद, मतदाताओं पर तस्लीमुद्दीन परिवार का प्रभाव और पकड़ कम हो गई है। राजद के लिए यह चुनाव कई मायनों में यह तय करेगा कि क्या वह अररिया में अपने मुस्लिम-यादव वोटों को जोड़कर रख पाता है या नहीं. लेकिन राजद के एक मुश्किल राजद से बगावत कर चुनाव लड़ रहे डॉ. शत्रुघ्न कुमार सुमन हैं. राजद अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. शत्रुघ्न कुमार सुमन निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में कूद गये हैं. उनकी अपनी जाति के मतदाताओं पर मजबूत पकड़ मानी जाती है, जिनकी संख्या जिले में करीब 3 लाख है. ऐसे में यह राजद के लिए बड़ा झटका हो सकता है.
वहीं सर्वाधिक मुस्लिम मतदाता होने के कारण यहां चुनाव धार्मिक ध्रुवीकरण की ओर भी है. ऐसे में भाजपा के लिए यहाँ हिंदू वोटों की गोलबंदी प्रदीप कुमार सिंह के लिए बड़े फायदे का सौदा साबित हो सकता है. कुल 20 लाख 14 हजार 402 मतदाता वाले अररिया में इस बार का मुकाबला भी जाति और धर्म की राजनीती के बीच सिमटा प्रतीत हो रहा है.