Nepal Protest : भारत के पड़ोसी देशों में खतरे की घंटी, 4 वर्षों में इन चार देशों में हुए तख्ता पलट, दो के हालत खराब

Nepal Protest : भारत के पड़ोसी देशों में खतरे की घंटी, 4 वर्ष

N4N DESK : नेपाल में जारी राजनीतिक उथल-पुथल के बीच प्रधानमंत्री को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है। सोमवार को सोशल मीडिया पर प्रतिबंध, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों के 30 घंटे के भीतर ही यह बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। इस इस्तीफे से पहले, गृह, कृषि और स्वास्थ्य मंत्रियों सहित पांच मंत्रियों ने भी अपने पद छोड़ दिए थे। इसके अलावा, विपक्षी दलों के 20 से अधिक सांसदों ने सामूहिक रूप से इस्तीफा देकर सरकार पर दबाव बढ़ा दिया था। विपक्षी दल अब संसद को भंग कर नए सिरे से चुनाव कराने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी और विपक्षी नेता दोनों ही मौजूदा सरकार की नीतियों के खिलाफ एकजुट हो गए हैं, जिससे देश में राजनीतिक संकट और गहरा गया है। हालाँकि नेपाल भारत के पडोसी देशों में पहला देश नहीं है, जहाँ मात्र 13 महीने में ही निर्वाचित सरकार को जाना पड़ा है। इसके पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में भी इस तरह का तख्ता पलट हो चुका है। 

बांग्लादेश: छात्र आंदोलन ने हिला दी शेख हसीना सरकार

बांग्लादेश में साल 2024 का छात्र आंदोलन एक ऐतिहासिक घटना बन गया, जिसे कई लोग 'दूसरा स्वतंत्रता संग्राम' तक कह रहे हैं। छात्रों के गुस्से की मुख्य वजह भ्रष्टाचार, मानवाधिकारों का उल्लंघन और आरक्षण नीति थी। जुलाई-अगस्त 2024 में प्रदर्शन हिंसक हो गए, और सरकार की गोलीबारी में 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई। विरोध के दबाव में, 5 अगस्त 2024 को तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख हसीना को इस्तीफा देकर भारत भागना पड़ा। इसके बाद सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने अंतरिम सरकार का ऐलान किया, जिसकी बागडोर नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस को सौंपी गई। इस आंदोलन की तीव्रता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति तक तोड़ दी थी। देश में अभी भी आम चुनाव नहीं हो पाए हैं और राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है।

श्रीलंका: आर्थिक बदहाली ने गोटाबाया राजपक्षे को भगाया

बांग्लादेश से पहले, श्रीलंका में भी साल 2022 में इसी तरह का जनआंदोलन देखने को मिला था। देश में आर्थिक संकट चरम पर था, और लोगों को रोजमर्रा की जरूरतों जैसे ईंधन और भोजन के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा था। 2019-2022 के दौरान विदेशी कर्ज में भारी वृद्धि और कोविड-19 महामारी ने अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था। सड़कों पर लाखों लोगों के उतरने और राष्ट्रपति आवास पर कब्जा करने के बाद, तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को आधी रात को देश छोड़कर मालदीव भागना पड़ा। बाद में उन्होंने सितंबर 2022 में औपचारिक रूप से इस्तीफा दे दिया।

अफगानिस्तान: तालिबान की वापसी और सत्ता परिवर्तन

साल 2021 में अफगानिस्तान में सत्ता परिवर्तन हुआ, जब तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया। अमेरिका-तालिबान समझौते के तहत विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान ने अपनी ताकत बढ़ाई। अगस्त 2021 में, जब तालिबान ने राजधानी की ओर कूच किया, तो तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़कर भाग गए। इस दौरान काबुल एयरपोर्ट पर भारी भगदड़ मच गई, जिसमें 170 से ज्यादा लोग मारे गए थे। 20 साल बाद अमेरिका समर्थित सरकार गिर गई और अफगानिस्तान में तालिबान का शासन फिर से स्थापित हो गया।

पाकिस्तान और मालदीव में हालत खराब

वहीँ पड़ोसी देश पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता थमने का नाम नहीं ले रही है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव के जरिए हटाए जाने के बाद से उनके समर्थकों का आंदोलन लगातार जारी है। देशभर में विरोध प्रदर्शन, रैलियाँ और जनसभाएँ हो रही हैं, जिससे मौजूदा सरकार पर दबाव बना हुआ है। इस राजनीतिक उठापटक के बीच, पाकिस्तान को सुरक्षा चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे आतंकी गुटों ने उत्तर-पश्चिम पाकिस्तान और बलूचिस्तान में अपने हमले तेज कर दिए हैं। इन हमलों में अक्सर ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे सुरक्षा एजेंसियों के लिए खतरा बढ़ गया है। वहीं, बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे अलगाववादी गुट भी सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। BLA ने बलूचिस्तान को एक आजाद मुल्क घोषित कर दिया है और इस क्षेत्र में हिंसक गतिविधियाँ जारी हैं। शहबाज सरकार को एक तरफ राजनीतिक विरोध और दूसरी तरफ आतंकी व अलगाववादी समूहों के बढ़ते हमलों से जूझना पड़ रहा है, जिससे देश में अस्थिरता और भी गहरी हो गई है। जबकि नवंबर 2023 में मोहम्मद मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति बनने के बाद से मालदीव में राजनीतिक और कूटनीतिक माहौल में बड़ा बदलाव आया है। मुइज़्ज़ू ने "भारत विरोधी" और राष्ट्रवादी वादों के साथ चुनाव जीता, जिसने भारत के साथ मालदीव के पारंपरिक संबंधों में तनाव पैदा कर दिया है। अपने चुनाव प्रचार के दौरान, मुइज़्ज़ू ने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को दरकिनार करते हुए सत्ता हासिल की, जिन्होंने बाद में पीपुल्स नेशनल फ्रंट नाम से एक नई पार्टी बना ली। मुइज़्ज़ू सरकार की नीतियों में चीन के साथ संबंधों को मजबूत करना शामिल है, जिससे भारत की चिंताएँ बढ़ गई हैं। घरेलू मोर्चे पर, मुइज़्ज़ू की सरकार अपनी पिछली सरकारों की तुलना में अधिक रूढ़िवादी नीतियों का पालन कर रही है। ये बदलाव मालदीव की विदेश नीति और आंतरिक राजनीति दोनों को एक नए रास्ते पर ले जा रहे हैं, जिसकी वैश्विक और क्षेत्रीय पर्यवेक्षक बारीकी से निगरानी कर रहे हैं। ये घटनाएं दिखाती हैं कि एशिया के कई देशों में जनता की बढ़ती नाराजगी अब सिर्फ विरोध प्रदर्शनों तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकारों को गिराने का कारण बन रही है।