MGNREGA: मनरेगा की हो गई विदाई, मोदी सरकार लाई नई स्कीम, अब 125 दिन मिलेगा काम, विकसित भारत-जी राम जी पर संसद में संग्राम तय
MGNREGA: केंद्र की सियासत एक बार फिर ग्रामीण भारत के भविष्य को लेकर दोराहे पर खड़ी है।...
MGNREGA: केंद्र की सियासत एक बार फिर ग्रामीण भारत के भविष्य को लेकर दोराहे पर खड़ी है। सरकार संसद में एक ऐसा बिल पेश की है, जो न सिर्फ़ महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा को इतिहास के पन्नों में धकेल सकता है, बल्कि ‘विकसित भारत 2047’ के ख्वाब को नई वैधानिक शक्ल देने का दावा भी करता है। प्रस्तावित योजना का नाम है विकसित भारत-जी राम जी योजना (VB-G RAM G), जिसके तहत हर वित्तीय वर्ष में प्रत्येक ग्रामीण परिवार को 125 दिनों के मजदूरी रोज़गार की कानूनी गारंटी दी जाएगी।
मनरेगा, जिसे 2005 में यूपीए सरकार ने संसद के ज़रिए लागू किया था, ग्रामीण गरीबों के लिए रोज़गार की ढाल और सामाजिक सुरक्षा का अहम औज़ार रहा है। 2009 में इसे महात्मा गांधी के नाम से जोड़कर MGNREGA बनाया गया और 2008 तक पूरे देश में लागू कर दिया गया। इस योजना ने गांवों में भूख, बेरोज़गारी और हिजरत पर एक हद तक लगाम लगाई। अब सरकार का कहना है कि बदलते सामाजिक-आर्थिक हालात में इस क़ानून को नए ढांचे और नई सोच की ज़रूरत है।
बिल की कॉपी के मुताबिक, सरकार Viksit Bharat Guarantee for Rozgar and Ajeevika Mission (Gramin) 2025 के ज़रिए पुराने क़ानून को समाप्त करना चाहती है। इसका मकसद एक ऐसा ग्रामीण विकास मॉडल खड़ा करना है, जो रोज़गार, आजीविका, इंफ्रास्ट्रक्चर और सैचुरेशन को एक साथ जोड़ दे। योजना उन वयस्क ग्रामीण सदस्यों पर केंद्रित होगी, जो बिना स्किल्ड मैनुअल काम करने के लिए तैयार हों।
ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक, मनरेगा ने दो दशकों तक अहम भूमिका निभाई, मगर अब “सामाजिक सुरक्षा की व्यापक कवरेज और सरकारी योजनाओं के सैचुरेशन” को देखते हुए इसे और मज़बूत, ज़्यादा प्रभावी और भविष्य उन्मुख बनाने की ज़रूरत है। उनका दावा है कि नया बिल सशक्तिकरण, विकास और तालमेल के ज़रिए एक समृद्ध ग्रामीण भारत की बुनियाद रखेगा।
हालांकि, सियासी गलियारों में बेचैनी साफ़ है। विपक्ष इसे मनरेगा की आत्मा पर वार और गांधी के नाम को मिटाने की कोशिश बता रहा है। ऐसे में जब बिल सदन के पटल पर आएगा, तो बहस नहीं, बल्कि ज़ोरदार हंगामा तय माना जा रहा है। सवाल यही है—क्या जी राम जी वाकई ग्रामीण भारत की तक़दीर बदलेगी या यह सिर्फ़ सियासी बयानबाज़ी का नया अध्याय होगा?