केंद्रीय मंत्री का दबदबा, पत्नी की जमीन बचाने के लिए ओवरब्रिज का काम रुकवा दिया

रेलवे ने मंत्री की आपत्ति पर सेतु निगम को अलाइनमेंट की समीक्षा का आदेश दिया और तभी से काम ठप है।...

Railway overbridge
केंद्रीय मंत्री का दबदबा- फोटो : social Media

 Railway Over Bridge: रेलवे ने मंत्री की आपत्ति पर सेतु निगम को अलाइनमेंट की समीक्षा का आदेश दिया और तभी से काम ठप है। केंद्रीय मंत्री और टीकमगढ़ सांसद डॉ. वीरेंद्र कुमार खटीक का विरोध। मंत्री ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखकर कहा था कि मौजूदा लोकेशन पर ब्रिज बनने से ग्रामीणों की जमीन और मकान प्रभावित होंगे, जिससे स्थानीय लोगों को नुकसान होगा। उन्होंने मांग की थी कि ओवरब्रिज की लोकेशन एक किलोमीटर आगे शिफ्ट की जाए।सागर जिले के बीना–कटनी रेल सेक्शन पर नरबानी गांव के पास बनने वाला गुड़ा रेलवे ओवरब्रिज (आरओबी) पिछले 23 महीनों से अधूरा पड़ा है।

गुड़ा रेलवे ओवरब्रिज की मौजूदा लागत 19.63 करोड़ रुपए तय हुई थी। लंबाई 730 मीटर रखी गई थी। लेकिन यदि इसे एक किलोमीटर आगे शिफ्ट किया जाता है तो इसकी लंबाई 1000 से 1100 मीटर तक बढ़ जाएगी। नतीजतन लागत लगभग 60 करोड़ रुपए तक जा सकती है।

नई जगह पर अधिकांश हिस्सा निजी जमीन से होकर गुजरेगा, जिससे भारी मुआवजे का बोझ बढ़ेगा। स्पर-9 पर 282 मीटर हिस्से में लगभग 5 करोड़ रुपए का काम हुआ था, लेकिन नदी का सिरा पानी में बह गया।चावंचक में 600 मीटर का काम कराया गया, उस पर 9 करोड़ रुपए खर्च हुए। मैथियन का प्लेटफार्म भी बनाया गया, मगर बाढ़ में सब ध्वस्त हो गया।अब तक करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद काम अधर में लटका है।

पड़ताल में चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि मौजूदा अलाइनमेंट से केवल एक ही जमीन सीधी जद में आ रही है जो कि मंत्री खटीक की पत्नी के नाम दर्ज 0.05 हेक्टेयर है। माना जा रहा है कि इस जमीन पर पेट्रोल पंप और अस्पताल खोलने की योजना थी। यदि ब्रिज यहीं बनता है तो इसका व्यावसायिक उपयोग खत्म हो जाएगा और कीमत घट जाएगी।

ब्रिज का टेंडर मई 2022 में पूरा हुआ था और जनवरी 2023 में वर्क ऑर्डर भी जारी कर दिया गया था। काम शुरू भी हुआ, लेकिन 20 अप्रैल 2023 को मंत्री के पत्र के बाद रेलवे ने सितंबर में अलाइनमेंट समीक्षा का आदेश जारी किया और तभी से निर्माण कार्य ठप है।

सेतु निगम के कार्यपालन यंत्री नवीन मल्होत्रा का कहना है कि रेलवे ने निर्देश दिया है  जब तक नई डिजाइन फाइनल नहीं होती, निर्माण रोक दिया जाए। अब तक न तो पुरानी डिजाइन पर काम दोबारा शुरू हुआ और न ही नई डिजाइन तय हो सकी है। यानी “जनता की सुरक्षा” के नाम पर शुरू हुआ ओवरब्रिज 23 महीने से राजनीतिक खींचतान और निजी स्वार्थों की भेंट चढ़ा हुआ है। हादसों से बचने के लिए बनाए जा रहे इस ब्रिज की जमीनी हकीकत यही है कि करोड़ों रुपए बर्बाद हो चुके हैं और आम जनता अब भी रेलवे क्रॉसिंग पर अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर है।