सर, रहम करिए, नौकरी चली गई तो बच्चों का चूल्हा ठंडा पड़ जाएगा...बीएलओ की गुहार, वोटर बना ‘बॉस’, सिस्टम हुआ बेबस

इस बार बीएलओ की ज़िंदगी किसी इम्तिहानगाह से कम नहीं। मतदाता सूची के पुनरीक्षण कार्य में लगे बीएलओ की हालत ऐसी हो चुकी है कि अब वे घर-घर जाकर कहते फिर रहे हैं—" फॉर्म जमा कर दीजिए, मेरी नौकरी खतरे में है!...

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सिस्टम हुआ बेबस- फोटो : social Media

Voter List:बिहार में लोकतंत्र के मजाक बनाने का आरोप विपक्षी दल लगा रहा है  सबसे बड़ी मार झेल रहे हैं वो जमीनी सिपाही जिन्हें हम बीएलओ यानी Booth Level Officer कहते हैं। इस बार बीएलओ की ज़िंदगी किसी इम्तिहानगाह से कम नहीं। मतदाता सूची के पुनरीक्षण कार्य में लगे बीएलओ की हालत ऐसी हो चुकी है कि अब वे घर-घर जाकर कहते फिर रहे हैं—" फॉर्म जमा कर दीजिए, मेरी नौकरी खतरे में है!"

तेज धूप हो या मुसलधार बारिश, बीएलओ हर गली-मोहल्ले की खाक छान रहे हैं, सिर्फ इसलिए कि कोई प्रपत्र भर दे। मगर अफ़सोस, मतदाता उन्हें गंभीरता से नहीं ले रहे। “कल आइए”, “अभी नहीं मिला”, “बाद में देंगे”, ये जुमले अब बीएलओ के लिए दु:स्वप्न बन चुके हैं।

अब तक दर्जनों बीएलओ पर निलंबन की तलवार चल चुकी है, विभागीय कार्रवाई की फाइलें तैयार हो चुकी हैं। सिर्फ बीएलओ ही नहीं, बल्कि उनके ऊपर नजर रखने वाले सुपरवाइज़िंग अफसर भी जांच के घेरे में हैं। हालात ये हैं कि कितनों से स्पष्टीकरण मांगा गया है, इसकी गिनती करना मुश्किल हो गया है।

भागलपुर में बीएलओ का मनोबल इस कदर टूटा हुआ है कि वे हाथ जोड़कर मतदाता से कह रहे हैं, “सर, रहम करिए, नौकरी चली गई तो बच्चों का चूल्हा ठंडा पड़ जाएगा।” मगर वोटर बन गए हैं राजा, जिनके आगे प्रशासन भी बेबस नजर आ रहा है।

भागलपुर में एक-एक फॉर्म के लिए आठ-दस बार चक्कर लगाना बीएलओ की नियति बन चुकी है। ऊपर से हालात ऐसे कि वार्डों में 100-200 मतदाता या तो मर चुके हैं या कहीं और शिफ्ट हो गए हैं। कोई रिटायर होकर गांव लौटा है, कोई किराये का मकान छोड़ चुका है, और बीएलओ उन सबको खोजते फिर रहे हैं जैसे गुमशुदा वोटर की तलाश में पुलिस हो।

ये कहानी किसी एक जिले की नहीं, पूरे बिहार की तस्वीर है, जहां लोकतंत्र का पहिया बीएलओ के पसीने से घूम रहा है, और अफसरशाही सिर्फ कार्रवाई का चाबुक चला रही है।