Brij Bihari Murder Case : 4 दिसम्बर 1994 को छोटन शुक्ला की हत्या होने के बाद मुजफ्फरपुर का राजनीतिक परिदृश्य बदल गया. साथ ही बदल गया बिहार के क्राइम कैपिटल मुजफ्फरपुर के बाहुबलियों का समीकरण भी. छोटन शुक्ला की हत्या और फिर डीएम जी. कृष्णैया की भीड़ द्वारा हत्या से बिहार से दिल्ली तक की सरकार हिल गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव को मुजफ्फरपुर में बड़े स्तर पर पुलिस की तैनाती करनी पड़ी ताकि जातीय संग्राम न पैदा हो जाए. लेकिन छोटन शुक्ला के भाई भुटकुन शुक्ला ने तो पहले ही ऐलान कर दिया भाई के खून का बदला खून से लेंगे. यानी बृज बिहारी प्रसाद से बदला लिया जाएगा.
भुटकुन शुक्ला ने बड़े भाई छोटन शुक्ला की हत्या का बदला लेने की आग में अपने सारे घोड़े खोल दिए थे. उनका एक मात्र मकसद बृज बिहारी को सबक सिखाना था. इधर मोतिहारी वाले मंटू तिवारी भी मामा देवेंद्र शुक्ला की हत्या का बदला लेने के लिए बृज बिहारी के खिलाफ मोर्चाबंदी में लगे थे. तो बृज बिहारी के दो बड़े दुश्मन एक हो गए. भुटकुन शुक्ला और मंटू तिवारी तो साथ आए ही इसी दौरान तिरहुत में यूपी के सबसे बड़े माफिया श्री प्रकाश शुक्ला की भी एंट्री हो गई. पहले ही श्री प्रकाश शुक्ला और देवेंद्र दुबे की दोस्ती थी. लेकिन जब देवेंद्र दुबे की हत्या हुई तो श्री प्रकाश भी बिहार में अपनी जड़ों को मजबूत करने में परेशानी झेलने लगे.
छोटन शुक्ला की हत्या से एक और बाहुबली परेशान थे. मोकामा वाले सूरजभान सिंह. दरअसल, सूरजभान थे भले मोकामा के लेकिन 1990 के शुरुआती दौर में ही सूरजभान ने अपने कदम मोकामा से बाहर बढ़ा लिए थे. इसका एक बड़ा कारण था सूरजभान सिंह के गुरु रामलखन सिंह. दरअसल, मोकामा में सूरजभान की अदावत नाटा सिंह से थी. और नाटा सिंह की दोस्ती अशोक सम्राट से थी. वहीं अशोक सम्राट जिसके पास बिहार में सबसे पहले एके 47 आया था. अशोक सम्राट के जिले बेगूसराय में उसके गुरु रतन सिंह थे. राम रतन सिंह का ठेकेदारी का विवाद बेगूसराय के ही रामलखन सिंह से था जिसके साथ सूरजभान थे. कहा जाता है कि अपने साथी अशोक सम्राट के कारण ही नाटा सिंह ने मोकामा में सूरजभान को कई बार परेशान भी किया. कई बार गोलियां भी चली. खबरों के अनुसार सूरजभान पर अशोक सम्राट ने एक बार जबर्दस्त हमला किया जिसमें वो बच गए लेकिन उनका दोस्त मनोज सिंह मारा गया जो बेगूसराय का ही रहने वाला था. सूरजभान और सम्राट की लड़ाई में काफी लोग मारे गए.
लेकिन सूरजभान ने तब तक मोकामा से बाहर निकलकर अपनी पहचान यूपी तक बना ली थी. गोरखपुर रेल मंडल के टेंडरों पर उनकी पकड़ मजबूत होने लगी थी. इधर 1994 में अशोक सम्राट भी मारा गया. पुलिस से भागते हुए वो जिस घर में छिपा था, उसे भीड़ ने जला दिया. यह सूरजभान के लिए बड़ी राहत देने वाली खबर थी. साथ ही उनके गुरु रामलखन सिंह के लिए भी. सूरजभान की दोस्ती श्री प्रकाश शुक्ला से भी होने की बातें तब तक आने लगी थी. देवेंद्र दुबे से भी सूरजभान की दोस्ती हो गई थी. लेकिन पहले देवेंद्र दुबे और फिर छोटन शुक्ला की हत्या ने सूरजभान को हिला दिया. तो इन सबके बीच दुश्मन का दुश्मन दोस्त के फॉर्मूले से भुटकुन शुक्ला, मंटू तिवारी और राजन तिवारी को अब श्री प्रकाश शुक्ला और सूरजभान का साथ मिल गया. और इन सबके एकलौते दुश्मन हो गए बृज बिहारी प्रसाद. यानी मोतिहारी के देवेंद्र दुबे, मुजफ्फरपुर के शुक्ला ब्रदर्स और मोकामा के सूरजभान का M -3 कनेक्शन.
तो छोटन शुक्ला की हत्या से बदला लेने को आतुर भुटकुन शुक्ला ने बृज बिहारी के खिलाफ एक बड़ी प्लानिंग की. इधर बृज बिहारी अब लालू यादव सरकार में मंत्री हो चुके थे. बृज बिहारी मंत्री थे तो आयोजनों में जाना होता था इसलिए वो दुबे और शुक्ला के खौफ में कमांडो के बीच रहने लगे. लालू ने उनकी सुरक्षा में कमांडों की तैनाती कर दी.
इधर तिरहूत के अंडरवर्ल्ड में इस बात के पुख्ता प्रमाण थे कि मुजफ्फरपुर के संजय सिनेमा ओवरब्रीज के पास बृजबिहारी गली के करीब छोटन शुक्ला की दिसंबर 1994 में एके-47 से हत्या करने वालों में शार्प शूटर ओंकार सिंह और उसके ही लोग शामिल थे. यानी बृज बिहारी के आदमी. तो वर्ष 1996 में भुटकुन के हाथ लगा बृजबिहारी प्रसाद का सबसे खास गुर्गा ओंकार सिंह. मुजफ्फरपुर के जीरो माइल पर खून की होली खेलने की प्लानिंग की गई. सुबह सबेरे चारों तरफ से घेरकर बृजबिहारी के कथित शॉर्प शूटर ओंकार सिंह सहित सात लोगों की हत्या कर दी गई. ये सभी बृजबिहारी के सबसे खास गुर्गों में से थे. जीरो माइल से ही सीतामढ़ी और दरभंगा जाने का रास्ता है. यहीं गोलंबर के पास चारों तरफ से घेर कर एके-47 की नली ओंकार सिंह पर खोल दी गई. बताते हैं कि उस वक्त एक नहीं, दो नहीं, बल्कि एक दर्जन से अधिक एके-47 से करीब पांच से छह सौ राउंड फायर झोंक दिए गए थे. कहा जाता है कि उस दिन 'ऐ भुटकुन, फायर झोंक..छोटन का बदला ले.. ...' कहते हुए ओंकार सिंह और उसके सात लोगों को छलनी कर दिया गया. लेकिन भुटकुन का बदला ओंकार नहीं बृज बिहारी था.
तो ओंकार की मौत के बाद बृज बिहारी और ज्यादा सतर्क हो गया. लालू यादव के लिए अपने इस खास नेता की जान बचाने की चुनौती थी. बृज बिहारी भी भुटकुन शुक्ला के गुस्से से वाकिफ था. कहते हैं यहीं से बृज बिहारी ने एक अनोखी सेटिंग की. साजिश थी भुटकुन शुक्ला को उसके ही घर में अपनों के बीच ही मार देने की.उसने दीपक सिंह नाम के युवा शूटर को भुटकुन शुक्ला के गैंग में शामिल करवा दिया था। दीपक सिंह चंद समय में ही भुटकुन शुक्ला का विश्वासपात्र बन गया था. वह भुटकुन शुक्ला के बॉडीगॉर्ड के रूप में हमेशा साये की तरह उसके साथ रहता था. भुटकुन शुक्ला को मारने के मौके तलाशे जाने लगे, लेकिन भुटकुन को मारना इतना आसान काम भी नहीं था. अपनी कमर में हमेशा आॅटोमेटिक जर्मनी मेड रिवॉल्वर रखने वाला भुटकुन शुक्ला मुजफ्फरपुर के अंडरवर्ल्ड का सबसे शातिर खिलाड़ी था. मुंह से बोलने से ज्यादा उसकी रिवॉल्वर बोलती थी. ऐसे में उस पर वार करना खुद को मौत को दावत देने के समान था.
साल 1997 मेंअगस्त का महीना था. भुटकुन शुक्ला अपने गांव में ही था. नारायणी नदी यानी गंडक में स्रान करने के बाद भुटकुन शुक्ला अपने घर में हथियारों को साफ कर रहा था. जैसे ही उसने अपनी आॅटोमेटिक रिवॉल्वर साफ करने के लिए खोली दीपक सिंह को मौका मिल गया. वहीं पास में खड़े दीपक ने अपने हाथ में मौजूद एके-47 का मूंह भुटकुन शुक्ला की तरफ खोल दिया. पलक झपकते ही भुटकुन शुक्ला लाश हो चुके थे.
भुटकुन शुक्ला की मौत ने सबको हिला दिया चाहे मंटू तिवारी और राजन तिवारी हों या फिर श्री प्रकाश शुक्ला और सूरजभान... लेकिन शुक्ला ब्रदर्स को खत्म करना आसान नहीं था. तो भुटकुन शुक्ला की मौत के बाद छोटे भाई मुन्ना शुक्ला ने भी ऐलान किया - हम खून का बदला खून से लेंगे. हम बदला देवेंद्र दुबे का भी लेंगे, हम बदला छोटन और भुटकुन शुक्ला का लेंगे. खून के बदले खून होगा!