BPSC : जिस देश में गुरू की महिमा को बखानते हुए गुरु पूर्णिमा पर संदेशों की बाढ़ से आपका दिमाग आपको किसी दूसरे लोक में ले जाता हो, वहीं इसके ठीक उलट शिक्षा माफिया एक सिंडीकेट के रूप में बच्चे की प्राइमरी क्लास से लेकर आला दर्जे की नौकरी दिलाने की ठेकेदारी ले रहा हो, तो यह सोचना भी बेमानी है कि जो शिक्षित होता दिखाई दे रहा है या यूं कहें शिक्षित होते दिखाया जा रहा है, वह ‘वास्तव में शिक्षित’हो भी रहा है या टूल किट बन रहा है?
ईपीडब्ल्यू में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अठावन हजार करोड़ रुपए का कोचिंग का धंधा है जो साल 2028 तक करीब एक दशमलव तीन लाख करोड़ का हो जाना है। ‘इंसानों को सपने बेचो’ कांस्पेट पर चलने वाला यह धंधा अब तक अनरेग्युलेटेड है जिसका टारगेट आडियंस भारतीय मध्यम वर्ग के बच्चे हैं. 73 प्रतिशत शिक्षित आबादी वाले को नये बाज़ार के रूप में, कैसे यह इंडस्ट्री इस्तेमाल कर रही है। आइए समझने की कोशिश करते हैं कैसे चलता है कोचिंग इंडस्ट्री का गोरखधंधा.....
70वीं बीपीएससी में पेपर लीक की खबरों के बीच बीते सोमवार को आर्थिक अपराध इकाई की ओर से प्रेस कॉन्फ्रेंस की गई। पटना के बापू परीक्षा सेंटर पर परीक्षा के दिन 13 दिसम्बर को हंगामा हुआ था। इसको लेकर ईओयू की ओर से कहा गया कि उसमें तीन कोचिंग संस्थान संलिप्त हैं। ये तीनों संस्थान ईओयू के रडार पर हैं। तीनों कोचिंग संस्थान पर कार्रवाई की तैयारी हो रही है।
पहले भी रडार पर आए कोचिंग संस्थान
ये पहली बार नहीं जब बिहार का है जहां रेलवे परीक्षार्थियों ने कोचिंग संचालकों के इशारे पर ‘कथित धांधली’ को लेकर जो उत्पात मचाया गया, वह अवश्यंभावी था, 6 कोचिंग संचालकों के खिलाफ मामला भी दर्ज कर लिया गया परंतु एक बार फिर यह बात उठी है। अब जो कोचिंग क्लासेस का कारोबार है, उसमें षड्यंत्र, खून-खराबा, कालाधन और सियासत सभी कुछ है। तभी तो बिहार में कोचिंग संचालकों के खिलाफ मामला दर्ज होते ही विपक्ष इन ‘कोचिंग सर’ के हित साधने में लग गया है। ये जिस तरह पेपर सेट करवाते हैं, टेस्ट पेपर की मार्किंग में पक्षपात की साजिशें रचते हैं, प्रतिस्पर्धी संस्थानों व सरकारी संस्थानों को बदनाम करते हैं, वह किसी शिक्षा-व्यवसाय का हिस्सा नहीं हो सकता।
एक आंकड़े के अनुसार प्राइमरी के 80% और उच्च शिक्षा के 96% छात्र कोचिंग लेते हैं। हजारों करोड़ रुपये का कारोबार है यह, जिसका कोई हिसाब नहीं। कोई पूछने वाला नहीं है, फिर चाहे नारायण मूर्ति चेता रहे हों या फिर शैक्षिक गुणवत्ता का आंकलन करने वाली एजेंसियां, कि देश की अहम सेवाओं के लिए प्रतिभा स्तरहीन होती जा रही है। आखिर शिक्षा के इस धंधे में किसकी जवाबदेही है, स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई क्यों नहीं हो रही। मध्यवर्ग पहले बच्चे को महंगे स्कूल में पढ़ाते हैं, सारी जिंदगी फीस, डोनेशन देकर उनकी कमर टूट जाती है। फिर उसे कॉलेज भेजते हैं। फिर सारी जिंदगी की स्कूल फीस के बराबर कोचिंग का खर्च उठाते हैं। बावजूद इसके यह निश्चित नहीं कि बच्चा प्रतियोगिता परीक्षा पास करेगा या नहीं। ये सिलसिला अंतहीन है आखिर कहीं तो इसे खत्म करना ही होगा।
नौकरी दिलाने के नाम पर दुर्गति
शिक्षा को रोजगार से जोड़ने की प्रवृत्ति ने ही शिक्षा और नौकरी दोनों की ही दुर्गति कर दी है, हाल ही में कुछ उदाहरण ये बताने के लिए काफी हैं।सॉल्वर गैंग, कोचिंग माफिया, फर्जी मार्कशीट मामला,यूपी टीईटी, रेलवे परीक्षा, पेपर लीक,नकल माफिया…अब ये शब्दभर नहीं रहे बल्कि हमारे नैतिक पतन को दर्शाते रोजमर्रा के उदाहरण बन गए हैं। हम इन्हें सुनने और इन मुद्दों पर सरकारों को गरियाने के इतने आदी हो चुके हैं कि कोचिंग से शुरू होने वाला शिक्षा माफिया का ये सफर कहीं रुकता नहीं दिखता।हमने शिक्षा को कामयाबी और नौकरी से ऐसा जोड़ा कि कोचिंग न लेने पर फेल हो जाने का भूत पीछा ही नहीं छोड़ता।
सरकारी नौकरी का‘लालच’बना जंजाल
हमें अब अपने अपने गिरेबानों में झांककर ये देखना होगा कि सरकारी नौकरी या प्रतियोगी परीक्षाओं में पास होने के लिए हम कौन सी कीमत अदा कर रहे हैं। लगभग पांच दशकों की गिरावट का निम्नतम स्तर है ये कि आज चपरासी के लिए भी प्रतियोगी परीक्षा करवानी पड़ रही है और उच्चशिक्षित भी इस नौकरी के लिए लाइन में लगे हैं, ये सिर्फ बेरोजगारी की बात नहीं है, ये बात है सरकारी नौकरी के उस ‘लालच’ की जो कोचिंग संस्थानों के पौ बारह किए हुए है और एक पूरे के पूरे सिंडीकेट को पनपाने की दोषी है।
अगली कड़ी में जानिए कौन हैं वो तीन कोचिंग संस्थान...
कुलदीप भारद्वाज की रिपोर्ट