बारा नरसंहार: 12 फरवरी 1992 की स्याह रात की दिल दहला देने वाली घटना, 35भूमिहारों की हुई थी निर्मम हत्या

12 फरवरी 1992 को बिहार के बारा गांव में नक्सली संगठन एमसीसी द्वारा 35 भूमिहारों की गला रेतकर हत्या की गई थी। आज भी गांव के लोग उस भयावह रात को याद कर सिहर उठते हैं।

बारा नरसंहार: 12 फरवरी 1992 की स्याह रात की दिल दहला देने वा
Bara Massacre - फोटो : social media

Bara Massacre: बिहार के अनुमंडल मुख्यालय से आठ किलोमीटर दूर स्थित बारा गांव के लोग आज भी 12 फरवरी 1992 की उस भयावह रात को भूल नहीं सके हैं, जब प्रतिबंधित नक्सली संगठन एमसीसी (अब भाकपा माओवादी) ने गांव के 35 निर्दोष ग्रामीणों की निर्मम हत्या कर दी थी। इन सभी की हत्या गला रेतकर की गई थी और वे सभी एक ही जाति से संबंधित थे।

सात दोषियों को हुई फांसी की सजा

इस नरसंहार के बाद कई अभियुक्तों को सजा सुनाई गई। तीन चरणों में सजा की प्रक्रिया पूरी हुई। सबसे पहले जून 2001 में चार अभियुक्तों—नन्हे लाल मोची, कृष्णा मोची, वीर कुंवर पासवान, और धर्मेंद्र सिंह—को फांसी की सजा दी गई थी, जिसे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने भी बहाल रखा। हालांकि, राष्ट्रपति ने उनकी फांसी की सजा को बाद में उम्रकैद में बदल दिया।इसके बाद 2009 में तीन और अभियुक्तों—व्यास कहार, नरेश पासवान, और युगल मोची—को फांसी की सजा सुनाई गई। 2023 में नरसंहार के मुख्य आरोपी किरानी यादव उर्फ सूर्यदेव यादव को उम्र कैद की सजा सुनाई गई।

नौकरी और थाने की घोषणाएं आज तक अधूरी

इस दर्दनाक घटना के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने गांव में थाना खोलने की घोषणा की थी, लेकिन आज तक वहां थाना नहीं खुल पाया। नरसंहार पीड़ित 11 परिवारों के आश्रितों को अब तक सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई है।

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32वीं बरसी पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन

2025 में बारा नरसंहार की 32वीं बरसी पर गांव में शहीद स्मारक की रंगाई-पुताई कर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया जाएगा। अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन के बैनरतले यह कार्यक्रम किया जा रहा है। ग्रामीण और पीड़ित परिवार अपने परिजनों को श्रद्धांजलि देकर उन्हें याद करेंगे।

तीन दशक बाद भी काली रात की यादें ताजा

32 साल बाद भी बारा गांव के लोग उस काली रात को याद कर सिहर उठते हैं। जिन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया था, वे आज भी नम आंखों से उस भयावह वारदात को याद करते हैं।